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हेमचन्द्र विक्रमादित्य

शत्रुघ्न प्रसाद

प्रकाशक : सत्साहित्य प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1989
पृष्ठ :366
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1604
आईएसबीएन :00000

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हेमचन्द्र नामक एक व्यापारी युवक की कथा जिसने अकबर की सेना से लड़ने का साहस किया!


उनसठ


हेमचन्द्र ने बादशाह आदिलशाह और शादी खां से सलाह कर सासाराम की शासन-व्यवस्था को ठीक किया। उसने पाया कि उसे देखकर प्रजा में एक नया विश्वास जगा है। लोगों में नया उत्साह है, इसीलिए प्रजा ने भीगी आंखों से उसे चुनार के लिए विदाई दी। लेकिन बादशाह आदिलशाह रिआया को प्यार नहीं दे सके। उनकी आंखों में तो नादिरा बस गयी, वे बोल पड़े-'हेमचन्द्र ! क्या विकरमा जीत ऐसे ही थे ?'

'बादशाह सलामत का मतलब नहीं समझा।'

'तुमने एक तरफ मोहम्मद खां को पस्त किया है तो दूसरी तरफ मेरी नादिरा को भी भगा दिया है।'

'इस हालत में नादिरा आपकी खिदमत नहीं करती। वह खिदमत करने नहीं आयी थी, मैंने भगाया नहीं है। वह खुद।'

'तुम्हारी नाराजगी के खौफ से भागी है- यह मेरा दिल कह रहा है, उससे फिर मुलाकात होगी-ऐसा लग रहा है।'

'आप अभी इलाज और आराम के बारे में ख्याल रखें। सेहत ही हजार न्यामत है, और मुझे मुगलों से मुकाबला करने का हुक्म दें।'

मुकाबला तो करना ही है। विकरमाजीत जरूर जीतेगा। अभी तो आराम कर लो।'

'मैं तो शहर-दर-शहर भटकने के लिए इस दुनिया में आया हूं। मेरी जिन्दगी में आराम कहां! एक गुजारिश है कि पास के तीर्थ में जाने की इजाजत मिले।'

'जरूर तीरथ कर आओ, यह सारी फौज तुम्हारे साथ है। अब मालवा से लाहौर तक तुम्हारी शमशीर चमकेगी। जीत के झंडे लहरायेंगे, मुगलों का पूरा सफाया होना है।'
'आपका हुक्म सर-आंखों पर-आप की दुआएं मेरी झोली में।' 'मैं-एक बूढ़ा भी साथ रहूंगा, हेमचन्द्र !' शादी खां के शब्द थे। 'तब तो हमारी फौज पेशावर तक पहुंच जायेगी।'

शादी खां मुस्करा उठे, पीठ थपथपा दी। काफिला बढ़ता रहा, सभी चुनार आ पहुंचे। धर्मपाल ने बता दिया कि आगरा और ग्वालियर के बीच की एक खंडहर में सबको सुरक्षित कर दिया है। चुनार के बाद चलने पर सबसे भेंट हो सकती है। हेमचन्द्र का अन्तर संतुष्ट हुआ। उसने बादशाह और बेगमों के निवास का प्रबन्ध किया, शादी खां से राय ली कि वह अयोध्या की ओर जा रहा है। वह उधर ही से आगे बढ़ेगा, वे फौज के साथ कुच करें। कालिंजर में भेंट हो जाएगी। पहले मालवा को जीत लेना है, फिर आगरा की ओर कदम बढ़ेंगे। शादी खां ने इस राय को मान लिया।

दोनों साथ ही विश्राम करने लगे। हेमचन्द्र की आंखों में कभी डरी हुई पारो का चेहरा झलक उठता था और कभी आगरे में हुमायूं का अट्टहास....!

शादी खां ने चुनारगढ़ के सहारे मरहूम शेरशाह की लड़ाइयों का किस्सा सुनाना आरम्भ किया। हेमचन्द्र शेरशाह और मुगलों की लड़ाइयों का किस्सा सुनने लगा। वह मुगल का अट्टहास भूल गया, वह हारे हुए और भागते हुए हुमायूं की झलक पाने लगा।

शाम हो गयी थी, दीपक जलने लगे। उसी समय पहरेदारों की आवाज सुनायी पड़ी। पहरेदारों ने किले के पास छिपे और भागते हुए लोगों को पकड़ लिया था। नादिरा अफगान फौज को देखकर भाग रही थी, वह पकड़ में आ गयी। क्षण भर के लिए घबरायी, फिर हिम्मत करके उसने बादशाह सलामत के सामने ले चलने के लिए कहा। पहरेदार बादशाह के पास ले जाने लगे। अफगान सरदार को जानकारी मिल गयी, उसकी हालत खराब होने लगी। अब वह छिपने या भागने की बात सोचने लगा।

शादी खां और हेमचन्द्र दोनों को पता चल गया कि कोई औरत पकड़ी गयी है। वह रक्कासा नादिरा ही है, वह उठकर बाहर आया। उसने बादशाह के सामने ले जाने से रोकना चाहा। वह वजीरे आजम है, वह कसूरवार को सजा दे सकता है। लेकिन शादी खां ने रोक दिया। बादशाह बर्दाश्त नहीं करेंगे, उन्हें समझाना मुश्किल है। हेमचन्द्र ने सर हिलाकर बादशाह के सामने ले जाने का हुक्म दे दिया।

नादिरा बादशाह के सामने पहुंच गयी। उसने अपनी लूट और अपनी बेइज्जती की कहानी सुना दी। सिसक-सिसक कर अपनी कहानी सुनायी। वजीरे आजम हेमचन्द्र की साजिश की ओर भी इशारा किया।

बादशाह आदिलशाह का गुस्सा उबल पड़ा। उन्होंने खांसते हुए अफगान सरदार को तलब किया। वह अफगान सरदार छिप गया। उसकी खोज हो रही थी। उसका पता नहीं चल रहा था। बादशाह का गुस्सा बढ़ता जा रहा था। अफगान सरदार की सन्दूकची में कुछ जेवर बरामद हो गए थे। अब उसे वजीरे आजम भी नहीं बचा सकते थे। वह पकड़ में आ गया, बादशाह के सामने लाया गया। उसने भी हेमचन्द्र के हुक्म की बात की, बादशाह होंठ काट कर रह गए। और कुछ लमहों के बाद गुनहगार सरदार को चुनार के किले से गिरा देने की सजा तजबीज कर दी। सरदार कांप उठा, नादिरा मुस्करा उठी। उसने हेमचन्द्र के गुनाह पर भी फैसला करने को कहा। बादशाह पशोपेश में पड़ गए, वे भीतर-ही-भीतर बेचैन हो उठे। वे तो हेमचन्द्र की तलवार की ताकत पर ही बादशाह बने हुए थे।

उन्होंने नादिरा को समझाने की कोशिश की-'हेमचन्द्र ने भगा देने का हुक्म दिया होगा। लूटने और बेइज्जत करने का हुक्म नहीं दिया होगा, इस शैतान ने तुम्हें लूटा है, इसे सजा मिल रही है। अब हेमचन्द्र को माफ कर दो।

'आप माफ कर सकते हैं, मेरा दिल तो धधक रहा है।' नादिरा ने आवेश में कहा।
'नादिरा ! मैं तेरे लिए बेचैन था, तू मिल गई। कसूरवार को सजा मिल गई। अब तुम्हें कोई भी मेरे पहलू से हटा नहीं सकता। हेमचन्द्र को अपनी गलती महसूस करने का मौका दो।'

'आप अफगान बादशाह होकर एक काफिर को इतना बड़ा ओहदा दे चुके हैं। उसका गरूर बढ़ता जा रहा है, आप अपने लिए ख्याल रखें।

'वह इसके लायक है, नादिरा ! और मेरी मजबूरी भी है, और मेरी कमजोरी तुम हो।'

नादिरा चुप रह गई। बादशाह की ओर बढ़ती हुई दिल में कह रही थी-बादशाह और वजीर में फर्क डालने के लिए यहीं रहना है, उसे तो फायदा ही है।

हेमचन्द्र ने नादिरा के बारे में सोचना बन्द कर दिया। शादी खां ने सो जाने के लिए कहा। दूर से एक चीख सुनाई पड़ी, अफगान सरदार को किले से फेंक दिया गया।

प्रभात की लाली दिखाई पड़ी। हेमचन्द्र, धर्मपाल, गजराज सिंह और खेमराज के साथ अयोध्या के लिए चल पड़ा। बहादुर खां, हाजी -खां और विजयवाहन शादी खां को साथ देने के लिए रह गए।

हेमचन्द्र अफगान सल्तनत के वजीरे आजम के रूप में गंगातट से सरयू तट की ओर बढ़ा। रास्ते में प्रजा समझती कि तुरकों की फौज आ रही है। वह भयभीत हो जाती, लोग घरों में छिप जाते। बेटीबहुओं को सबसे पहले छिपा देते। खेत-खलिहान को भगवान भरोसे छोड़ देते। परन्तु हेमचन्द्र सबके भय को मिटाने का प्रयत्न करता। गांव के लोगों से मिलता और उन्हें समझाता आगे बढ़ता जाता। परगने और सरकार के हाकिमों को हिदायत देता अयोध्या के पास आ पहुंचा। धर्मपाल ने कहा- 'वजीरे आजम ! हम सरयू जी में स्नान कर दर्शन के लिए चलेंगे।

खेमराज ने व्यंग्य किया-'मुगल बादशाह की शैतानियत को देखने के लिए स्नान करना है !'
'राम तो कण-कण में विराजमान हैं ! यह तो उनकी जन्मभूमि है। यह हमारा विश्वास है, हमारे विश्वास को कोई तोड़ नहीं सकता, हम स्नान कर जन्मभूमि के दर्शन करेंगे। हेमचन्द्र ने समझाया।

हजारों लोग पवित्र जन्मभूमि के उद्धार के लिए रक्त दे चके हैं, हम भी रक्त देंगे।'- गजराज सिंह बोला।

'अभी किससे युद्ध करना है ? अफगान राज है ! राज के वजीरे आजम हेमचन्द्र हैं !' धर्मपाल ने प्रश्न कर दिया।

'ठीक कह रहे हो, धर्मपाल ! अफगान बादशाह इतने उदार और समदर्शी नहीं बन सके हैं कि विध्वस्त मन्दिर अपनी प्रजा को सौंप दें। मुझे अभी भी यह अधिकार नहीं मिला है।'

'आपको अधिकार पाना है, यह राज हमारी तलवार पर टिका है।' गजराज सिंह ने संकेत दिया।

'विकरमाजीत को सचमुच विकरमाजीत बनना है।' यह खेमराज के शब्द थे।

हेमचन्द्र की दृष्टि सरयू की लहरों पर केन्द्रित हो गयी। सभी स्नान करने लगे थे, अन्त में उसने भी स्नान किया, स्नान के बाद सभी रामजन्मभूमि मंदिर के सामने आ गये। मन्दिर नहीं मंदिर का अवशेष दिखायी पड़ा, लगा कि किसी साधु का क्षत-विक्षत और संज्ञाहीन शरीर है, और उस पर कोई खड़ा होकर कहकहे लगा रहा है। कुछ लोग दूर-दूर खड़े हैं, उनके हाथ जुड़े हुए हैं, आंखों में आंसू हैं। वे आहों के साथ राम का नाम ले रहे हैं।

एक बूढ़ा लाठी टेकता आ गया, अफगान साम्राज्य के वजीरे आजम और सिपहसालार के सामने आने का साहस किया। कोई रोक नहीं सका।

बूढ़े ने गंभीर स्वर में कहा-'हुजूर! आज से 27 वर्ष पहले बाबर ने एक फकीर-हजरत फजल अब्बास की सलाह पर मन्दिर को तोड़ डाला। मन्दिर की ईंटों और पत्थरों से ही इसे बनाया गया है। हर ईंट साक्षी है, आप देख लें। मेरे टूटे हुए पैर और मेरे घर में दो विधवा बहुएं साक्षी हैं। हमने मन्दिर की रक्षा के लिए रक्त बहाया है।

‘रानी जयराज कुमारी ने बाबर के बेटे हुमायूं से युद्ध किया। जीत-- हार का सिलसिला चलता रहा। अन्त में रानी ने वीरगति पायी, संन्यासी महेश्वरानन्द ने संन्यासियों और गांव के साहसी वीरों को लेकर मन्दिर के उद्धार के लिए अपना बलिदान दिया। मेरे दो बेटे मारे गये। मैं अपंग होकर आंसू बहाने के लिए बच गया हूं। सबको बलिदान की कथा सुनाता हूं जिससे बलिदान की परम्परा कायम रहे। मन्दिर का उद्धार हो, मन्दिर जैसा ही अपने देश का भी उद्धार हो।'

हेमचन्द्र को रोमांच हो आया, वह कभी टूटे मन्दिर को देखता और कभी अपंग बूढ़े आदमी को।

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