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हेमचन्द्र विक्रमादित्य

शत्रुघ्न प्रसाद

प्रकाशक : सत्साहित्य प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1989
पृष्ठ :366
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1604
आईएसबीएन :00000

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हेमचन्द्र नामक एक व्यापारी युवक की कथा जिसने अकबर की सेना से लड़ने का साहस किया!


अट्ठावन



'शादी खां साहब ! वैद्य की दवा से थोड़ा आराम लग रहा है।' आदिलशाह ने करवट बदलते हुए कहा।

'हुजूर ! बनारस का मशहूर वैद्य है। बनारस से ही दवाएं आयी हैं, आराम तो मिलना चाहिए।' शादी खां ने बताया।

'सचमुच रात में अच्छी नींद आई थी, लेकिन आपने मेरी शराब को बन्द कर दिया। नादिरा के धुंघरू को भी गूंजने से रोक दिया, यह तो अच्छा नहीं हुआ।
'वैद्य ने शराब से दूर रहने की हिदायत की है। नादिरा तो दुश्मनों की ओर कहर ढाने के लिए आई थी, कहर ढाकर चली गई।'
'मुझे यकीन नहीं होता, हेमचन्द्र की वजह से ही उसे भागना पड़ा है।'
‘आपको यकीन करना पड़ेगा, जहांपनाह ! उसका पीछा भी किया गया है, लेकिन वह निकल गई।'

'मैंने उसे इतना प्यार दिया, दौलत दी। और वह बीमार बादशाह ‘पर मेहरबान नहीं हुई !'

'तवायफ किसी पर मेहरबान नहीं होती।'

'दिल पर पत्थर रखकर बर्दाश्त कर रहा हूं। लाचारी है, नादिरा की खोज होनी चाहिए।'
'आपका हुक्म है तो जरूर खोज की जाएगी, लेकिन आपको खुले मैदान की रावटी में रहना ठीक नहीं है। हम रोहतास के किले में डेरा डालें या चुनार के किले में ?'

'मैं सासाराम से हटना चाहता हूं, रात में एक ख्वाब मंडरा रहा था। उसी ख्वाब की वजह से उठ गया, देखा कि मरहूम बादशाह शेरशाह मुझ पर नाराज हैं। कह रहे हैं कि तुमने दिल्ली-आगरा को गंवा दिया, सासाराम में उनका मजार है। वे ख्वाब में आते रहेंगे, अब यहां नहीं रहना है।' आदिलशाह ने कहा।

'तब तो यहां से हट जाना ठीक है, बादशाह सलामत !'
'चुनार ही ठीक रहेगा।'
'चुनार का किला मजबूत भी है, उसी को मरकज बनाकर हम जंग करेंगे। दिल्ली-आगरे को वापस ले लेंगे, हेमचन्द के लौटते ही चुनार चल पड़ेगे।'
शादी खां की इस बात पर बादशाह ने सर हिलाया, और शहद के साथ दवा खा ली। पर्दे से बेगमें झांक रही थीं।

शादी खां ने दवाओं के बारे में बांदी को समझा दिया। बादशाह से इजाजत ली और रावटी से बाहर आए। फौजी छावनी का चक्कर लगाने लगे, एक रावटी के पास आते ही हार, कंगन और नथ के शब्द सुनायी पड़े। उनके पैरों की आहट पाते ही बातचीत बन्द हो गयी। वे रुके रहे, भीतर सन्नाटा छाया रहा। वे चुपचाप आगे बढ़ गए, लेकिन उनके दिमाग में वह बातचीत गूंज रही थी। रावटी में वह सरदार भी था, जिसने खबर की थी कि नादिरा को भगा दिया गया। वजीरे आलम हेमचन्द का इशारा था क्योंकि नादिरा की वजह से बादशाह को नुकसान हो रहा था। तो क्या इन लोगों ने उसके जेवरात छीन लिये हैं ? ये आपस में बांट रहे थे ? अफगानों में यह गिरावट आ चुकी है ! तभी तो हाथ से हुकूमत निकली जा रही है। रावटी में चला जाना चाहिए था। सच्चाई दिखायी पड़ जाती, वे दूर चले आये हैं। सामने मकबरे की मीनार दिखायी पड़ रही है। उस शेरदिल शेर खां ने अपनी तलवार की ताकत से अफगानी सल्तनत को कायम किया था। हिन्दुस्तान के इस कोने से उस कोने तक अफगानों का परचम 'फहर रहा था। मुगलों को भागना पड़ा था, और आज बादशाह आदिलशाह की अपनी खैरियत नहीं है। भांजे का कत्ल किया, तख्त ‘पर बैठ गये। अफगानी मिल्लत के नाम पर मदद मिली, लेकिन हिन्दुस्तान के बादशाह बनकर साकी की शराब में डूब गए।

खुदा की मेहरबानी से हेमचन्द्र फरिश्ता बनकर आ गया है। इसने अपनी अक्ल से अफगानों, हिन्दी मुसलमानों और हिन्दुओं की एक ताकत खड़ी कर दी है। एक बड़ी बात हो रही है, और हमारे बादशाह नादिरा के लिए गमगीन हैं।

सामने से कुछ लोग आ रहे थे, थोड़ा ताज्जुब हुआ। वे पूछ बैठे'आप लोग कौन हैं ? इधर कैसे आ गए ?'
'हम मालत्रा से आ रहे हैं। शुजात खां का फरजंद दौलत खां खदमुख्तार हो गया है। हम जान बचाते हुए आए हैं।' एक ने बताया।
'बादशाह बीमार हैं और सभी को खुदमुख्तारी का शौक जग गया है। हम उसे सबक सिखायेंगे, आप लोग आराम करें।' शादी खां ने जवाब देते हुए वफादार सिपाहियों और सरदारों को आराम के लिए इशारा कर दिया।

मालवा से आए हुए सिपाही आगे बढ़ गए। शादी खां कभी मकबरे की मीनार को देखते, कभी तालाब की ओर और फिर आसमान में टकटकी लगाये रह गए। आसमान में उठने-गिरने का बिम्ब बन रहा था, मिट रहा था। तो क्या हारा हुआ भागा हुआ मुगल फिर दिल्ली में आ जाएगा? अहमद खां सिकन्दर तो बन गया पर हुमायूं को रोक नहीं सका। टुकड़े-टुकडे हुए और दूसरे के निवाले बनने लगे। हिन्दुओं की यह बीमारी अफगानों में फैल चुकी है। हजारों जात में बंटे हिन्दू मिलकर खड़े नहीं हो सकते, हरेक एक-दूसरे से अकड़ता है, जलता है। हेमचन्द्र दिलेर और दानिशमंद है, और इसने अपनी एक शख्सीयत बना ली है। राजा होने के काबिल है, लेकिन हिन्दू ही इसे नहीं बनने देंगे। इनके यहां राजा-महाराजाओं की एक जात है। फौजी लड़ाकों की जात है, हेमचन्द्र तो सौदागर (बक्काल) है। शायद इसीलिए जयपुर, जोधपूर और मेवाड़ के राजे इसे मदद नहीं करेंगे। लेकिन इसकी मदद से अफगानों का राजा फिर से खड़ा हो रहा है। हिन्दू रिआया के साथ अच्छा सलूक किया जाए तो पूरी मदद मिल सकेगी। इन्हें अच्छे सलूक की ख्वाहिश है। हर इंसान को यही ख्वाहिश होती है।

दूर धूल उड़ती दिखायी पड़ी। हाथो पर अफगान झंडा फहराता नजर आया, जरूर फतहयाब हेमचन्द्र लौट रहा है। मोहम्मद खां नहीं हो सकता। उसी वक्त जासूस ने खबर दी कि जनाब हेमचन्द्र मोहम्मद खां को जीतकर लौट रहे हैं।

शादी खां सब भूल गए। हेमचन्द्र, फतह के परचम और खुशियों की सौगात- इन तीनों ने शादी खां को घेर लिया। उन्हें महसूस हुआ कि मकबरे की मीनार पर नूर बरस रहा है। तालाब की मौज में जीत का जश्न शुरू हो गया है, वे हेमचन्द्र को गले लगाने के लिए उतावले हो उठे। कामयाबी तो इसके कदमें को चूमने के लिए हमेशा बेचैन है।

फौज नजदीक आ गयी। हाथी पर हेमचन्द्र दिखायी पड़ा, शादी खां ने हाथ उठाकर बधाई दी। हेमचन्द्र हाथी से उतर आया, वह शादी खां के पैरों पर झुका। शादी खां ने उठाकर सीने से लगा लिया, सिपाही 'जिन्दाबाद' के नारे लगा रहे थे।

दोनों बादशाह के पास खुशखबरी सुनाने जा पहुंचे। उसी समय केश-दाढ़ी बढ़ाये और फटे-चिथड़े पहने धर्मपाल आ पहुंचा। हेमचन्द्र के पैर रुक गए। गले से शब्द फूट पड़े-'धर्मपाल ! इस रूप में और लोग कहां हैं ?'

सभी लोग सुरक्षित हैं। भागते-छिपते सुरक्षित स्थान पर पहुंच गए हैं। मुझे मजबूरी में आना पड़ा है।'

'कौन-सी मजबूरी है ? स्पष्ट करो।'

'हुमायूं ने दिल्ली और आगरे पर कब्जा कर लिया है। फिर से मुगलों का राज्य...। सिकन्दरशाह को भागना पड़ा है।'

हुमायूं आगरे में..! जो सोचा, नहीं हो सका ! अफगान सरदारों का इतना पतन ! अब मैं क्या करूं ? कितना खून दूं ? चाचा जी ! आप ही बतायें।'

'यह इम्तहान है, बेटे ! जो सोचा है, वही होगा। वक्त की मौज को तुम काबू में करोगे। मेरी दुआएं तेरे साथ हैं, घबराना नहीं।' शादी खां ने भरोसा दिलाया।

धीरे-धीरे हेमचन्द्र के मन की विकलता दूर हुई। तीनों बादशाह के पास आये, जीत की खबर दी। आदिलशाह ने खुश होकर कहा'हेमचन्द्र ! तुम विकरमाजीत हो।'

हेमचन्द्र ने सर झुकाकर इस बधाई को स्वीकार किया। लेकिन सिकन्दरशाह की बेवकूफी और कमजोरी की बात भी खुल गयी। जीत और हार का माहौल अजीब-सा बन गया। इसी माहोल में तय हुआ कि चनार के किले को मरकज बनाकर जंग करना मुनासिब है। चुनार चलकर थोड़ा आराम हो, बादशाह अपनी सेहत के लिए वहीं रहें। और फिर हेमचन्द्र मालवा या आगरा की ओर कूच करे।

हेमचन्द्र सोच रहा था-पारो को भागना और छिपना पड़ रहा है। जमाल मोहन और नूरी को भी भागना पड़ा है, योगीराज को कितना कष्ट उठाना पड़ा ! सचमुच कालगति उसकी परीक्षा ले रही है। उसके संकल्प की दृढ़ता की परख कर रही है ! श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर को विध्वंस करने वाला फिर आ गया। उसने बहुत कुछ संभाला, पर ये अफगान संभल नहीं सके। वह आयोध्या जाएगा। सुना है कि वीरों ने कई बार जन्मभूमि मन्दिर के उद्धार के लिए युद्ध किया है। रक्त दिया है, पशु नहीं, मानव मानव के रक्त का प्यासा है। उसे रक्त चाहिए, वह रक्त देता रहा है और देता ही रहेगा।

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