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हेमचन्द्र विक्रमादित्य

शत्रुघ्न प्रसाद

प्रकाशक : सत्साहित्य प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1989
पृष्ठ :366
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1604
आईएसबीएन :00000

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हेमचन्द्र नामक एक व्यापारी युवक की कथा जिसने अकबर की सेना से लड़ने का साहस किया!


छप्पन



आदिलशाह ने अपनी बेगमों की मदद से रेशमी चादर और ताजे फूलों का गजरा मरहूम शेरशाह के मजार पर चढ़ाया। बेगमों ने अगरबत्ती जलायी, सबके सिर झुक गए। अचानक झुके हुए आदिलशाह खांसने लगे, पैर कांपने लगे, जख्मों से खून रिसने लगा। हेमचन्द्र ने संभाल लिया, दुआओं के साथ लौट चले।


मकबरे से निकलने के बाद हेमचन्द्र पोखर के पास आया। पोखर में झांका, उसका चेहरा झलकने लगा। मकबरे की मीनार भी झलकती दिखायी पड़ी। मीनार के आसपास उसका चेहरा प्रतिबिम्बित हो रहा था। मीनार की ऊंचाई को छू लेना चाहता है, उसका संकल्प कालगति के साथ जुड़कर बढ़ जाना चाहता है ! वह युद्धों में विजय पा रहा है लेकिन पश्चिम में हुमायूं बढ़ता आ रहा है। आगरा में इब्राहिम ने ताज पहन लिया है और वह सुदूर पूर्व में है। और पूर्व में बंगाल जाना है पर बादशाह बीमार हैं। खिदमत में नादिरा है। नादिरा इब्राहिम। की भेजी हुई रक्कासा-तवायफ है। उसने बादशाह को बांध लिया है। अपनी हसीन हरकतों से कमजोर आदिल शाह को बेहोश कर दिया है। कालगति उसके संकल्प में साथ नहीं दे रही है ?

चाचा शादी खां को इधर आना चाहिए, अगर वे साजिश से बच गए हों तो उनको इधर आ ही जाना है। उसे बंगाल जाना है, बंगाल के मोहम्मद खां को रास्ते पर लाना है।

आगरा में पारो, जमाल मोहन, नूरी, धर्मपाल और योगीजी बुला रहे हैं। मोहम्मद खां को आजाद छोड़कर कैसे लौटा जाय ? लौटना ठीक नहीं होगा। उधर पारो बिलख रही है, क्या पारो बार-बार आत्महत्या करेगी? ऐसा नहीं होगा, उसकी तलवार का मोल क्या रह जायेगा ? वह अपहरण बलात्कार और आत्महत्या के जुल्म को रोककर ही जी सकेगा।

उसने चेहरा उठाया। पोखर की दूसरी तरफ मन्दिर का शिखर दिखाई पड़ा, मन्दिर छोटा-सा है। उसकी छाया जल में पड़ रही है, छाया मीनार की छाया से दूर-दूर है। दोनों दो तरफ हैं, मीनार ऊंची है, तनी हुई है। मन्दिर का शिखर छोटा है, झुका हुआ-सा लगता है। कबीरपंथी साधु और मंझन ऐसे शायर कोशिश कर रहे हैं कि सभी साथ-साथ रहें। दोनों में टकराव न हो, कोई तना हुआ और कोई झुका हुआ न रहे, पर मन्दिर तो आतंकित है। सब जगह टूटे हुए हैं, मथुरा का कृष्ण जन्म मन्दिर देख लिया है। टूटा हुआ, बिखरा हुआ है ! अब लौटते हुए अयोध्या में बाबर के विध्वंस को देखना है। उसी बाबर का बेटा दिल्ली की ओर आ रहा है, और वह इधर है, उसे भी शीघ्र लौटना है।

उसने पोखर के पानी में फिर झांका। आकाश की नीलिमा जल पर छायी हुई थी, उसमें उसका चेहरा दिखाई पड़ा। उसे लगा कि उसका चेहरा एक पंछी बनकर अनन्त आकाश में उड़ान भर रहा है। उड़ान भरता ही जा रहा है, उसके पंख नहीं थके हैं। पर आकाश का ओर-छोर भी तो नहीं है, बाजों का भय भी है। उसे भय तो कभी नहीं हुआ, योगी शिवनाथ ने उसे अभय बना दिया है। आज वह पारो के लिए शंकाकुल है। आगरे की हालत...मां दुर्गा कुंवर और पारोपार्वती "वह विवश है।

उसने देखा कि उसके पास बहता-बहता एक फूल आ गया है। तट से टकराकर रुक गया, छोटी छोटी लहरों में हिलता रहा। उसने फूल को उठा लिया, वह फूल को लिये आगे बढ़ गया।

हकीम बादशाह को देख रहे थे, ढाढ़स बंधा रहे थे। उन्होंने दवाइयों की तजबीज कर आराम करने की सलाह दी। बेगमों की आंखों में बेचैनी झलकने लगी। नादिरा दर्दमंद बनकर हाजिर थी। हेमचन्द्र आ पहुंचा। उसने हकीम से बातचीत की। उसने समझने की कोशिश की, और फिर हकीम से बोला-'क्या काशी से किसी अच्छे वैद्य को बुलाया जाय?'

हकीम ने सर हिलाकर जवाब दिया- 'जरूर बुलाइए। बादशाह सलामत को पूरा आराम मिले, इन्हें कहीं जाना-आना नहीं है।'

बादशाह ने कहा- 'हेम चन्द्र ! मुझे आराम करने दो, सब ठीक हो जाएगा। तुम बंगाल को फतह कर जल्द लौटो, गजराज सिंह और बहादुर खां रोहतास से लौट आए न ?'

'हां, वे लौट आए हैं। ताज के सिपाही मारे गए हैं या कैद हो गए हैं। अब हमें बंगाल जाना है, आपके इकबाल से फतह करके ही लौटूंगा।'

नादिरा सोच रही थी कि बादशाह आदिलशाह उसकी खिदमत में आराम करते रहें, और वह काफिर बंगाल में मर-खप जाये।

हेमचन्द्र की दृष्टि बार-बार बादशाह से होकर नादिरा पर जा लगती थी। इससे कैसे छुटकारा मिले ! कुछ उपाय करना होगा, वह बंगाल जा रहा है, इस बीच इसे हटाया जा सकता है। यह सोचता हुआ वह अपनी रावटी में आया। गजराज सिंह, खेमराज,विजयवाहन, बहादुर खां और हाजी खां से सलाह की। फौज को कूच करने का आदेश मिला, तैयारी होने लगी।

दूसरे दिन प्रातःकाल हेमचन्द्र ने बादशाह से भेंट कर बंगाल जाने के लिए विदाई मांगी। साथ ही उनकी खिदमत और हिफाजत के लिए इन्तजाम किया, उसने एक अफगान सरदार को नादिरा पर कड़ी नजर रखने की हिदायत दी।

डंके और नगाड़े की आवाज पर अफगान फौज चल पड़ी। सूर्य का तेज हेमचन्द्र के लिए प्रेरक बन रहा था, उसे अनुभूति हुई कि तेजस्वी सूर्य आशीष दे रहे हैं। वह पूर्व दिशा में जा रहा है, सूर्य के देश की ओर जा रहा है। उधर तो सूर्यास्त हो रहा है, भटकती हुई पारो प्रतीक्षा कर रही है। पता नहीं, जमाल मोहन और नूरी किस हालत में हैं ! और यहां नादिरा का जहर फैल रहा है। गनीमत है कि वह उस जहर से बचा रहा, अब उस जहर को शान्त करना पड़ेगा। उस तवायफ ने बादशाह को इस हालत में पहुंचा दिया, लेकिन उन्हें होश नहीं आया। अभी भी समय है, उन्हें होश आ जाना चाहिए। वह बादशाह के लिए रक्त दे रहा है, और वे उस रक्कासा को अपना खून दे रहे हैं। ऐसे ऐयाश बादशाह के लिए वह काल से खिलवाड कर रहा है। यह भी विवशता है, परन्तु उसने एक नयी परम्परा का आरम्भ किया है। सफल होने पर दोयम दर्जे की जिन्दगी से हिन्दुस्तान की प्रजा को जजिया से छुटकारा हो सकता है। गांव उजड़ने से बच सकेंगे, और सभी मिलकर रह सकेंगे।

लेकिन अरबों, तुर्कों और अफगानों के मन से विजेता और शासक का अहंकार कैसे दूर होगा? वे तो समझते हैं कि वे तलवार से जीतकर हुकूमत कर रहे हैं। प्रजा को गरदन झुकाकर रहना है। वे जब चाहें, दीन-हीन प्रजा की गरदने उड़ा सकते हैं।

हिन्दुओं और हिन्दी मुसलमानों के बीच का सम्बन्ध कैसे अच्छा हो ? दोनों का रक्त एक ही है, दोनों एक ही मिट्टी के हैं। बहादुर खां क्या दूसरे हैं ?

बादशाह आदिलशाह की फौज हेमचन्द्र के सेनापतित्व में आगे बढ़ रही थी।

सालारे आजम शादी खां लाहौर से बचते हुए लौट आए। उनके कुछ सिपाही टूटकर अहमद खां यानि सिकन्दर शाह से मिल गये थे। अपने थके-मादे और भूखे-प्यासे सिपाहियों के साथ सासाराम पहुंच गए। रास्ते में मालूम हो गया था कि हेमचन्द्र ने जौनपुर और सासाराम को जीत लिया है। शादी खां की थकान और निराशा कम हो गई थी, लेकिन सासाराम पहुंचते ही मालूम हुआ कि आदिलशाह बीमार हैं, वे आराम फरमा रहे हैं। हेमचन्द्र फौज के साथ आगे बढ़ गया है। शादी खां सबसे पहले आदिलशाह से मिलने आए। खांसते हुए बादशाह को नजदीक से देखा। बगल में नादिरा को देखा, समझ गए कि शराब और रक्कासा ने बादशाह के जहन को खोखला बना दिया है। इनको लाहौर, दीपालपुर और आगरा की कौन-सी खबर दी जाये ? इनकी फीकी हंसी को बरबाद न किया जाय, अगर वे पहले आ जाते तो हेमचन्द्र के साथ ही चल देते। अब तो यहीं रहकर उसकी कामयाबी के लिए दुआएं करनी हैं।

आदिलशाह बोल उठे- 'शादी खां साहब ! आप थके हुए हैं, आराम करें। हेमचन्द्र कामयाब होकर लौटेगा, हम फिर एक साथ सलाह करेंगे।'

‘जी, हां ! थोड़ा आराम करना चाहता हूं।'
'उधर मगरिब की कोई अच्छी खबर!'
‘अभी तो कुछ नहीं-हेमचन्द्र को लौटने दें।'

बादशाह शादी खां की ओर देखने लगे, समझने की कोशिश करने लगे कि इसका क्या मतलब हुआ?

शादी खां सोच रहे थे कि बीमार बादशाह को कैसे बताया जाय कि अहमद खां सिकन्दरशाह बनकर पंजाब में हुकूमत करने लगा है। वह इब्राहिम को हराकर दिल्ली और आगरा पर कब्जा कर चुका है, और हुमायूं लाहौर पर कब्जा कर दिल्ली की ओर बढ़ रहा है। हालत बदतर है, अफगान सल्तनत टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर रही है। उन्हें भागना पड़ा है, यहां बादशाह बीमार हैं। एक ही उम्मीद है-हेमचन्द्र। वह फतह करके लौटे। यही रोशनी की लकीर हो सकती है। रोशनी की इसी लकीर के सहारे हम हिन्दुस्तान के नक्शे को बदलने की कोशिश कर सकते हैं।

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