ऐतिहासिक >> हेमचन्द्र विक्रमादित्य हेमचन्द्र विक्रमादित्यशत्रुघ्न प्रसाद
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हेमचन्द्र नामक एक व्यापारी युवक की कथा जिसने अकबर की सेना से लड़ने का साहस किया!
पचपन
विजय के उल्लास के साथ अफगान फौज लौट रही थी। आदिलशाह की बेगमों की घबराहट दूर हो गयीं। नगाड़ों का बजना बड़ा अच्छा लगा, रावटियों के बीच खुशियां छा गयीं। फौज मस्ती में धीरेधीरे आ रही थी। बेगमों की नजरें बादशाह को देखने के लिए उतावली थीं। ऊंचे आसमान तक उड़ती धूल के बीच केवल झडे दिखायी पड़ रहे थे। हाथी और घोड़ों के आकार झलक उठते थे।
शाही फौज आ गयी, लेकिन बादशाह घायल थे। बेगम चिहुंक उठीं, खुशी से दमकते चेहरे पीले पड़ गये। उनकी बेचैनी बढ़ गयी, लेकिन घायल बादशाह ने सबको इशारे से भरोसा दे दिया। हकीम इलाज के लिए दौड़े आये, बेगमें खिदमत में लग गयीं। हेमचन्द्र आ पहुंचा, वह भी थोड़ा घायल था। बादशाह को बचाने में घायल हो गया था, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी थी। उसी जोश ने उसे कामयाबी दिला दी, और वह विजयी बनकर लौटा। ताज खां की मौत हो चुकी थी, सासाराम पर कब्जा हो गया, उसके सिपाही रोहतास के किले की ओर भाग गये। किले को घेरने के लिए बहादुर खां और गजराजसिंह जा चुके थे।
हकीम ने बादशाह के घावों की मरहम-पट्टी कर आराम करने की सलाह दी, और फिर वह हेमचन्द्र के इलाज के लिए मुखातिब हुआ, हेमचन्द्र हकीम के साथ अपनी रावटी में आया। हकीम ने घावों को साफ करना शुरू किया, वह दर्द को भुलाने के लिए सोच रहा थासफलता का सिलसिला शुरू है, वह विजयी होता जा रहा है, परन्तु आगरा पर इब्राहिम का अधिकार हो गया। अब आदिलशाह हिन्दुस्तान के शहंशाह नहीं हैं। यह मालूम नहीं हो सका है, मालूम होता है। बंगाल में मोहम्मद खां सुल्तान बन चुका है, उधर जाना है, लेकिन आगरा में पारो-पार्वती फिर संकट में पड़ चुकी है। जमाल और नूरी पर भी विपत्ति आ गयी होगी, सरवर चूक नहीं सकता। वह बेचैन हो उठा, दर्द से कराह उठा, हकीम साहब घबरा गये। वह क्या बताए? जासूस से पूरी बात की जानकारी भी नहीं मिल सकी है।
हकीम ने जख्मों में दवा लगा दी, पट्टियां बांध दी, साथ ही आराम करने की ताकीद की। हेमचन्द्र ने मन्द मुस्कान से हकीम साहब को विदा किया और वह आराम करने लगा, पर भीतर बेचैनी बढ़ गयी। वह सो नहीं सका, उसने आगरा से आये जासूस को बुलवाया। उसी समय नादिरा के एक नौकर ने खबर दी कि कोई बाहर से आया है जिससे नादिरा छिपकर गुफ्तगू कर रही है, उसे अपना नौकर कहकर साथ में रख रही है।
यह जानकर हेमचन्द्र बौखला गया। वह अपने घावों को भूल गया, दर्द भूल गया। उनकी साजिश यहां भी! मुगलों के लिए रास्ता साफ हो रहा है ! खुदगर्जी और ऐय्याशी में अफगानों का दिमाग खराब हो गया है। उसने सोचा कि उसे जल्द गिरफ्तार करना है, उसने निर्देश दे दिया।
आगरे का जासूस आया, हेमचन्द्र पूरी जानकारी के लिए बेताब हो उठा। उसने विस्तार से बताया कि इब्राहिम ने फौज की मदद से तख्त पर कब्जा कर लिया है। सरवर और हरखलाल उसके मददगार हैं। लक्ष्मीभवन पर पहरा बैठा दिया गया, परिवार कैद में है। जमाल साहब भी कैद कर लिये गए, लेकिन।'
'लेकिन क्या ?'
'धर्मपाल साहब ने हथियार बन्द लोगों के जरिए सबको कैद से छुड़ा लिया है, सारे शहर में जलजला आ गया।'
यह सुनकर हेमचन्द्र ने आंखें मूंदकर हाथ जोड़े। उसे लगा कि सब कुछ पा लिया और फिर पूछा।
'शादी खां साहब तो लाहौर गये थे, उनका क्या हुआ ?'
'वे भी कैद से बच गये हैं, लेकिन वे आगरा लौट नहीं सके हैं, शायद इधर आ जायें।' हेमचन्द्र का मन सन्तुष्ट हुआ, वह विश्राम करने लगा।
दूसरे दिन बादशाह को जख्मों के दर्द से आराम मिला, उन्होंने नादिरा के नाच की ख्वाहिश की, महफिल का इन्तजाम होने लगा। हेमचन्द्र रोक नहीं सका, सोचा कि महफिल के बाद ही आगरे के जलजले की खबर मिले।
महफिल में नादिरा आ गयी, इस बीच इब्राहिम के जासूस को पकड़ने के लिए सिपाही लपक पड़े। वह भागने की कोशिश में था। वह गिरफ्त में आ ही रहा था, पीछे से उस पर हमला हुआ, वह कटे दरख्त-सा गिर पड़ा। आंखों की पुतलियां भय से खुली रह गयीं, सिर्फ लाश कब्जे में आ सकी।
नादिरा का नाच पूरा हुआ, बादशाह ने इनाम दिया। नादिरा ने कोनिश कर कबूल किया, उसी समय हेमचन्द्र ने कहा- 'बादशाह सलामत की खिदमत में कुछ कहना है।'
'आप कुछ भी कह सकते हैं इस फतह की खुशी में।' बादशाह ने मुस्कराते हुए जवाब दिया।
'आगरा से अपना जायूस आया हुआ है, इसी वक्त खबर देना चाहता है, और जनाब इब्राहिम खां का जासूस भी आ गया है। वह भी आपके सामने पेश है।'
नादिरा का सर झुक गया, इनाम उसकी हथेली में था, उसकी हथेली कांप रही थी।
बादशाह बोल उठे-'अपना जासूस और इब्राहिम खां का जासूस, यह क्या?
'अपने जासूस से खबर सुन लें, फिर इब्राहिम खां साहब के जासूस का मतलब साफ झलक जायगा। हेमचन्द्र ने बताया।
नादिरा ने जाने की इजाजत मांगी, हेमचन्द्र ने मधुर स्वर में कहा-'आप अभी यहीं रहें। महफिल को गमगीन न बनायें। घायलों पर कुछ तो रहम करें।' यह सुनकर बादशाह खुश हो गये। नादिरा की परेशानी बढ़ गयी, लेकिन उसने परेशानी को जाहिर नहीं होने दिया। उसे लगा कि वह पकड़ में आ गयी।
जासूस ने खड़ा होकर बाअदब आगरे के हालात का बयान पेश किया।
आदिलशाह ने महसूस किया कि ताज की कलगी गिरकर धूल में मिल गयी। ताज हिलने लगा है, जख्मों का दर्द बढ़ गया।
उसी समय इब्राहिम खां के जासूस की लाश भी आ गयी। हेमचंद्र ने कहा-'यह नादिरा की रावटी में मौजूद था, वहीं गिरफ्तार किया जा रहा था, किसी ने पीछे से मार डाला। इसका क्या मतलब है ? नादिरा बता सकती है।'
नादिरा ने अपने को संभाल कर जवाब दिया-'जहांपनाह ! आपकी खिदमत से मुझे हटाने की साजिश चल रही है। उसी साजिश के तहत मेरे नौकर को मारा गया है, और उसे जासूस बताया जा रहा है। जासूसी का कोई सबूत नहीं है। अगर मुझ पर शक है तो मुझे ‘फारस लौट जाने की इजाजत दी जाये।'
आदिलशाह ख्यालों में डूब गये, उन्हें जहीन दिलेर और जवांमर्द हेमचन्द्र की तलवार का सहारा चाहिए तभी उनका ताज बचेगा। जिन्दगी को जीने के लिए नादिरा के धुंघरू के बोल भी, नादिरा रक्कासा है, फारस की है, यह क्या जासूसी करेगी? यह फकीर मिजाज हेमचन्द्र की नफरत है, उन्हें तो नादिरा बेहद पसंद है। इस गुलाबी नशा के बगैर जिन्दगी क्या ! लेकिन अब कोई एतबार के लायक नहीं रह गया। इब्राहिम ने भी दगा. अब वह हिन्दुस्तान का बादशाह नहीं सिर्फ जौनपुर और सासाराम...वह भी हेमचन्द्र की बदौलत...हेमचन्द्र निहायत जरूरी है, एक काफिर ही सबसे बड़ा सहारा है।
बादशाह आदिलशाह हेमचन्द्र की ओर देखते रह गये और फिर बोल उठे-'अब हेमचन्द्र इस अफगान सल्तनत के वजीरे आजम हैं। इनकी सलाह से इस सल्तनत को चलना है। इस जमाने में किसी पर यकीन करना बहुत मुश्किल है, नादिरा चाहे तो लौट सकती है। अगर वह वफादारी का सबूत दे तो उसे एक मौका मिल सकता है। वजीरेआजम के मुताबिक उस पर निगाह रखी जायगी।'
नादिरा ने झुककर सलाम-बन्दगी की, और वफादारी के लिए एक मौका पाकर अपने को खुश-किस्मत माना।
हेमचन्द्र मन मसोस कर रह गया, क्रोध को पी गया। सोचा कि यह कमजोरी मौत की राह है। एक बार और मौका देना है, क्या इसी सल्तनत के आधार पर मुगलों से मुकाबला संभव है और प्रजा को अपना अधिकार पाना है। वैसे अब सभी असम्भव लग रहा है पर वह असंभव को सम्भव करने की चेष्टा करेगा ! संकल्प कालगति से मिलकर आगे।
नादिरा बादशाह के इशारे पर जाने लगी।
हेमचंद्र ने घोषणा की- 'हम सासाराम की जीत की खुशी में अफगान सल्तनत को कायम करने वाले मरहूम शेरशाह के मकबरे पर चलेंगे। हम सर झुकाकर चाहेंगे कि वे इस सल्तनत पर अपनी दुआएं बरसा दें। उनका लगाया हुआ गुल फूलता-फलता रहे। अपनी खुशबू से सारे हिन्दुस्तान को खुशबू देता रहे। जो बेरहमी से इसे काटना चाहेंगे उनके चेहरे लहूलुहान हो जायेंगे।'
सबने सर हिला-हिलाकर इस ऐलान का समर्थन किया, बादशाह आदिल शाह ने मकबरे की ओर चलने की तैयारी करने का हुक्म दे दिया।
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