लोगों की राय

ऐतिहासिक >> हेमचन्द्र विक्रमादित्य

हेमचन्द्र विक्रमादित्य

शत्रुघ्न प्रसाद

प्रकाशक : सत्साहित्य प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1989
पृष्ठ :366
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1604
आईएसबीएन :00000

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

56 पाठक हैं

हेमचन्द्र नामक एक व्यापारी युवक की कथा जिसने अकबर की सेना से लड़ने का साहस किया!


चौवन



'हुजूर! जौनपुर की फतहयाबी पर मेरी मुबारकबादी कबूल करें।' नादिरा रात की महफिल के खत्म होने पर हेमचन्द्र की रावटी (खेमा) के पास आकर चहक उठी।

हेमचन्द्र अपनी रावटी के पास खड़ा था। गजराज सिंह और विजयवाहन को विश्राम के लिए विदा कर रहा था। उसी समय नादिरा चूंघरू की रुनझुन के साथ आ पहुंची। गजराज और विजय दोनों जाने लगे।

'आप तो महफिल में मुबारकबादी दे चुकी हैं। फतहनामा सुना चुकी हैं, बादशाह सलामत ने कबूल किया है। सबने कबूल किया है।' हे मचन्द्र ने जवाब दिया।

'शायद आपने कबूल नहीं किया है। दूर-दूर जो रहते हैं, इसलिए नजदीक आ गयी हूं।'

'शहंशाहे हिन्दुस्तान शमशीर और साकी दोनों को प्यार करते हैं। उनके लिए सही है, मैं एक सिपहसालार हूं। मुझे दिनरात शमशीर को गले लगाना पड़ता है। इसलिए धुंघरू से दूर रहना है।'

'धुंघरू घायल की दवा है, हुजूर ! नादिरा की आंखों में आबेहयात है, और आप दूर-दूर...! क्या कोई गुस्ताखी हो गयी है मुझसे !'

'अपने बादशाह के ऐशगाह के धुंघरू पर नजर लगाना मुनासिब नहीं है, नादिरा ! मैं एक वफादार सिपाही हूं। मुझे माफ कर दो। एक बात और है, बादशाह को बंगाल से पंजाब तक दौड़ना है, इसलिए उन्हें धुंघरुओं से बेहोश नहीं कर देना।'

'हुजूर ! मैं फारस से बेहोश करने नहीं, धुंघरू की आवाज से खुश करने आयी हूं। थकी जिन्दगी को आबेहयात पिलाने आयी हूं। बादशाह तो खुश हैं, सिर्फ आप नाराज लगते हैं।'

इस खुशी में मेरी भी खशी है, मैं नाराज नहीं हैं, नादिरा ! देख लो, आज बादशाह और बादशाहत के सामने जिन्दगी और मौत का सवाल आ खड़ा हुआ है। इसलिए धुंघरुओं पर खुश होकर जवाब देना भूलना नहीं है। आज आराम करना है और कल सासाराम की ओर कूच करना है।' यह कहकर हेमचन्द्र ने मुंह फेर लिया।

नादिरा मजबूरी में मुड़ गयी। बुदबुदाती हुई चली गयी- यह काबू में नहीं आता। सरवर साहब और हजर इब्राहिम खां दोनों ने बादशाह के साथ इसे भी बेहोश कर देने के लिए कहा था। बादशाह तो बेहोशी में आ रहे हैं, लेकिन यह शख्स तो अजीब है। इस पर हुस्नोअदा का कोई असर नहीं पड़ता है, ऐसा लगता है कि यह सरवर साहब के मतलब को समझता है। जान-बूझकर दूर रहने की कोशिश करता है। दिलेर तो है, लेकिन दिलरुबा से दूर-दूर भागता है। देखा जाएगा–कभी-न-कभी इसे दिलबस्तगी की जरूरत पड़ेगी।

दूसरे दिन सुबह हेमचन्द्र बादशाह के पास पहुंचा। वे जौनपुर के शाहो महल में आराम फरमा रहे थे. नींद टटी नहीं थी। नादिरा का मदहोश चेहरा दिखायी पड़ा, हेमचन्द्र सामने से हट गया। वह चली गयी, बादशाह ने हेमचन्द्र को बुला लिया। और लेटे-लेटे कहा-'हेमचन्द्र ! तुम्हें जंग में थकान नहीं आती क्या ? थोड़ा आराम कर लो। फिर कूच का डंका बजेगा।'

'हुजूर के फैसले के मुताबिक आज सासाराम को ओर कूच करना है। सभी आराम कर चुके हैं, ज्यादा आराम करने पर बागी-पेशावर के नजदीक आ जायेंगे।'

'जंग और फतह के बाद जश्न की रात गलत है ?'

'हुजूर ! रक्कासा सिर्फ नाचना और नचाना जानती है। बादशाह थलामत को इतनी बड़ी हुकूमत को संभालना है। बाबर घोड़े की पीठ पर रहकर हिन्दुस्तान को जीत सका था। हम इस बात को नहीं भूल सकेंगे।'

'ओफ हो ! बोलो क्या चाहते हो ?'
'सासाराम के लिए कूच का डंका बजे, वहां मरहूम शहंशाह के मकबरे के दीदार का मौका भी है।'
'यह तो ठीक कह रहे हो, हेमचन्द्र! तो आज दिन भर आराम कर शाम को हम कूच कर दें।'
'जी, हां ! यही ठीक रहेगा ! एक फिक्र की बात है।'
'कामयाबी के बाद फिक्र क्या?' 'आगरे की खबर नहीं मिल रही है।
आगरे में सिपहसालार इब्राहिम खां हैं, मेरे नजदीकी हैं। सालारे आजम शादी खां साहब हैं। फिक्र क्या ?'
'हम राजधानी से बहुत दूर हैं, जहांपनाह ! बगावत की लपटें हैं, उधर मुगलों के कदम बढ़ चले हैं। इसलिए उधर की फिक्र।'
'हमारे कदम भी बढ़ रहे हैं। बगावत की लपटों पर पानी डाला जा रहा है, हम मुगलों को मसल देंगे।'
'और इसलिए इधर का काम खत्म कर जल्द लौटना है। तब तक बेगमें और नादिरा यहीं आराम करें।। 'सारा काम तेरे मुताबिक हो रहा है, हेमचन्द्र ! अपनी बेगमों
और नादिरा को तो मेरे साथ चलने दो।'
'फारस की यह रक्कासा मदहोश करने के फन में माहिर है। और हमें होश में रहना है।'
'तुम्हें होश में रहना है, हेमचन्द्र ! और मेरे लिए थोड़ी-सी मदहोशी...! तुम पर यकीन है कि मुझे होश में रखोगे।'

हेमचन्द्र चुप रह गया। अधिक बहस उचित नहीं है, वह इजाजत लेकर अपनी रावटी में चला आया। हाजी खां और बहादुर खां के साथ फौज की कवायद देखने के लिए निकला। गजराज सिंह, विजयवाहन और खेमराज चुस्त-चौकस थे। सिपाहियों में जोश था, मन को संतोष हआ। लौटते वक्त सोचा-ताज खां ने जौनपुर और सासाराम को अपने प्रभाव में लाकर बंगाल को भी शिकंजे में कस लिया है। मोहम्मद खां ताज की साजिश से खुदमुख्तार हो गया है। निपट कर ही लौटना है, उसे सफलता मिल रही है। एक पुकार से वही सिपहसालार है, उधर से धर्मपाल का संवाद नहीं मिल सका है। संवाद मिल जाता तो संतोष के साथ पैर बढ़ते।

संध्या में कूच का डंका बजा। फौज बढ़ चली, गोमती के तट से गंगा तट की ओर हेमचन्द्र का मन दौड़ने लगा। बनारस और उसके बाद सासाराम...और उसके बाद मुंगेर, भागलपुर होते गौड़।

जौनपुर पर कब्जा होने के बाद बनारस तक कोई प्रतिरोध नहीं हुआ। इसलिए आदिलशाह की फौज सासाराम आ पहुंची, खेमों का शहर बस गया। हेमचन्द्र ने हाजी खां, बहादुर खां और गजराज सिंह से सलाह-मशविरा कर ब्यूह की रचना की, उसी समय आगरा का संवादिया आ पहुंचा। उसने वजीर हेमचन्द्र को बताया कि इब्राहिम खां सूर आगरा में खुद बादशाह बन गया है, लाहौर में अहमद खां ने सिकन्दर शाह के नाम से अपने को पंजाब का सुल्तान ऐलान कर दिया है।

यह सुनकर हेमचन्द्र स्तम्भित रह गया। दो क्षण के बाद सोचा कि किसी ने अंधेरे में प्रहार कर दिया है। और वह बेहोश हो रहा है, लेकिन वह होश नहीं खोएगा। अंधेरे की साजिश को चकनाचूर करेगा, उसका संकल्प...

हेमचन्द्र युद्ध के मैदान में जा पहुंचा।

उधर इब्राहिम का जासूस नादिरा के पास आ पहुंचा। नादिरा ने उसे अपने नौकर के रूप में रख लिया, जिससे किसी को शक न हो। जब बांदियां काम करके चली गयीं तब उसने बातचीत शुरू की—'हुजूर इब्राहिम खां का क्या हुक्म है ?'

'इब्राहिम खां तख्तनशीन हो चुके हैं, दिल्ली से दोआब तक उनके कब्जे में है।' जासूस ने बताया।

'मेरी तरफ से बधाई है, लेकिन मैं जहांपनाह से बहुत दूर हूं। अगर दरबार के जश्न में बुलावा हो तो में तैयार हूं।'

'अभी आपको इधर ही रहना है, आदिलशाह और हेमचन्द दोनों को बेहोश रखना है।'

'पूरी कोशिश कर रही हूं। बादशाह बेहोशी की हालत में आ रहे हैं, लेकिन यह काफिर काबू में नहीं आ रहा है।'

'सरवर अली साहब...वजीरे आजम का...।'
'वजीरे आजम के ओहदे पर सरवर साहब ! खुदा बड़े मेहरबान हैं !'
हां, उन्हीं का इशारा है कि ये दोनों बेहोशी में न आवें तो दोनों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा कर दिया जाय।'
'हां, यह नुस्खा तो आजमाया जा सकता है।'
'जब तब ये दोनों एक-दूसरे से जुदा होकर सर नहीं तोड़ते हैं, तब तक आगरे का तख्त...।'
'ख्याल तो दुरुस्त है !'
'बादशाह इब्राहिम खां आपका इन्तजाद करेंगे, आपको शाहीमहल में जगह देने के लिए तय कर चुके हैं।'
यह सुनकर नादिरा उस जासूस की ओर देखती रह गयी। जासूस के दिल की धड़कनें बढ़ गयीं। नादिरा मुस्करा उठी, उसने जासूस को मिठाइयों से भरी तश्तरी पेश की। जासूस ने समझा कि वह जन्नत में पहुंच चुका है।

नादिरा सोचने लगी कि वह धुंघरुओं से जमीन-आसमान को झुमा दे। फारस की एक रक्कासा के हाथों में हिन्दुस्तान की सल्तनत ! वह कितनी खुश-किस्मत है ! इब्राहिम खां और सरवर अली दोनों उसके आशिक हैं। दोनों उसके तबस्सुम पर जांनिसार हैं, यहां आदिल शाह उसे छोड़ने को तैयार नहीं। पर वह आगरे में बेगम कहलाएगी अभी तो इन दोनों को...!

शाही रावटी में बेग में जंग की खबर पाने के लिए बेचैन थीं। वे अपने बादशाह सलामत की कामयाबी के लिए इबादत कर रही थीं। बांदियां दरवाजे पर झांक जातीं। हर आवाज पर कान लगाये हुए थीं, जब-तब चौंक जातीं। बेगमें कुरानशरीफ को पढ़ने में मशगूल हो गयीं। लेकिन भीतर की बैचैनी बढ़ रही थी। इसी बेचैनी में वक्त कट रहा था।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book