ऐतिहासिक >> हेमचन्द्र विक्रमादित्य हेमचन्द्र विक्रमादित्यशत्रुघ्न प्रसाद
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हेमचन्द्र नामक एक व्यापारी युवक की कथा जिसने अकबर की सेना से लड़ने का साहस किया!
बावन
तीसरे दिन हरखलाल सरवर को साथ लेकर तांत्रिक के पास पहुंचा। तांत्रिक ने रात के अंधेरे में श्मशान में शव-साधना की तैयारी की। उसे एक अधजला शव मिल गया था। हरखलाल और सरवर अली- दोनों तांत्रिक की कुटिया में मौजूद थे। हरखलाल सोच रहा था कि वह इस तंत्र-साधना से हेमचन्द्र को झुका सकेगा, वह खुद नगर सेठ बनेगा। अनाज और कपड़े के व्यापार पर उसका एकाधिकार हो जाएगा। सोहनलाल का लक्ष्मीभवन खंडहर हो, आंसू बहाएगा। उसके मन को शांति मिल सकेगी। तांत्रिक सिद्ध पुरुष हैं। इन्हीं का चमत्कार है कि सोहनलाल चल बसे। लगता है कि सरवर को पूरा विश्वास नहीं हो सका है, आज बहुत समझाने पर आया है। रूमाल से काम नहीं होना था, साथ रहना आवश्यक था, अब वह अपनी आंखों से देखेगा। उसमें अपने आप विश्वास पैदा होगा। वह उसके साथ दरगाह भी जाएगा। उनका भी चमत्कार देखेगा, उसे विश्वास है कि इन साधुफकीरों से काम बनेगा।
सरवर सोच रहा था कि वह काफिरों के तंतर-मन्तर को देखने आ गया है। कैसे यह फकीर जिन्न-भूत को अपने काबू में कर लेता है ! अगर यह काबू में कर लेता है तो बड़े-से-बड़ा काम हो सकता है। उधर दरगाह का फकीर कुछ करने वाला है, वह तो करिश्मा कर दिखायेगा। हरखलाल भी देख सकेगा, पहले यहां देखना है, स्याह रात में आदमी की लाश के साथ इबादत औत पूजा-पाठ का नजारा-यह ख्याल कर रोंगटे खड़े हो रहे हैं। ये कौन-कौन जादू जानते हैं ! सुबह में सिपहसालार के पास पहुंचना है, उन्होंने बुलाया है। उनका पूरा एतबार हो चला है, उसे सियासत का मजा मिलने लगा है। जोड़-तोड़, झूठ-फरेब और खून-खराबी से ताकत हासिल कर लेना-यही सियासत है। इस तन्तर-मन्तर से भी मदद मिल जाय जो अच्छा ही है, हर्ज क्या है ! वैसे इस पर यकीन नहीं है, लेकिन थोड़ा यकीन करना पड़ता है। किसी तरह कामयाबी मिले, वह हेमचन्द्र और जमाल को मात देना चाहता है,
वह इन दोनों को बर्दाश्त नहीं कर सकता। इसीलिए तो वह सियासत में आ गया। आते ही रास्ता दिखाई पड़ने लगा, मजहब मददगार जो है, इस सियासत में आम आदमी रिआया की जरूरत नहीं है। महज तिकड़मबाजी और ताकत की आजमाइश है। हुकूमत में घुस जाना है, और फिर जिन्दगी के मजे...। दुश्मनों को कुचल दो, आम आदमी को फुसला लो। सरवर अली मुस्करा उठा, मशाल की रोशनी में तांत्रिक का भयानक चेहरा दिख रहा था, वह सिहर उठा।
तांत्रिक दोनों को लेकर श्मशान की ओर जाने लगा, उसी समय घाट पर आग धधक उठी। आग की लपट की रोशनी में कुछ लोग दिखाई पड़े, तांत्रिक ठिठक गया। उसे लगा कि शव जल रहा है, उसका क्रोध दहक उठा, उसके पैर आगे बढ़े। हरखलाल को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, क्या शव जलने लगा ? अपने आप जलने लगा? किसी ने जला दिया ? यह भूतों का उपद्रव है या हेमचन्द्र का ? वह तांत्रिक के साथ साहस कर चला। उसे विश्वास हो गया कि शव ही जल रहा है। नया शव तो नहीं है, ये लोग कौन हैं ?
सरवर के कदम रुक गये, वह डर गया था, फिर उसने देखा कि दोनों उधर जा रहे हैं। वह भी आहिस्ता-आहिस्ता जाने लगा, लेकिन वह इस ख्याल से परेशान हो उठा कि कहीं जिन्न की हरकत न हो। वह यहां क्यों आ गया ? उसे इधर नहीं आना चाहिए था, कहीं कुछ हो गया तो वह कहीं का नहीं रहेगा। घाट पर ये लोग कौन हो सकते हैं ? ये जिन्न-भूत तो नहीं लगते ! क्या ये हेमचन्द्र के ताबेदार हैं ? क्या इनको मालूम था ? हेमचन्द्र के लोग हर जगह मौजूद हैं ? वह सिहर उठा।
तांत्रिक हाथ में त्रिशूल लिये आ पहुंचा। कुछ लोग अधजले शव को जला रहे थे, सबके हाथों में लाठियां थीं, पगड़ी में चेहरे छिपे हुए थे, नदी में नाव लगी हुई थी। तांत्रिक ने ऊंची आवाज में उन्हें डांटा और त्रिशूल लेकर उछल गया, वे लोग डरे नहीं। तांत्रिक के पैर रुक गए, कोई डर नहीं रहा है। शव जल रहा है, जब साधना शुरू ही नहीं हुई तो वह क्या कर लेगा ? अचरज की बात है ये लोग तांत्रिक बाबा से डर नहीं रहे हैं। उसके पैरों से नीचे धरती खिसक रही थी। हरखलाल का माथा चक्कर खा रहा था। सरवर को अपने पर गुस्सा आ रहा था, उसे कुछ हथियारबन्द साथियों के साथ आना चाहिए था।
दूसरी बार तान्त्रिक ने अपने चेहरे को और भयानक बनाया। कुछ बुदबुदाकर मंत्र बोलकर उन्हें डांटा, उन पर झपटा। वे लोग धीरेधीरे हटने लगे और झटके से अपनी नाव पर सवार हो गये। सरवर ने कोशिश की कि वह उन्हें पहचान ले, उनसे उलझ जाय, लेकिन वह अकेला था, निहत्था था। कुछ कर नहीं सकता, सिर्फ उन्हें पहचानने की कोशिश कर रहा था। उनकी नाव खुल चुकी थी, सरवर ने हिम्मत की, वह दूसरी नाव में सवार हो गया, नाव चल पड़ी।
सरवर अंधेरे में कैसे पहचाने ? कोई आवाज भी नहीं आ रही थी। वह अपने दिमाग पर जोर दे रहा था। अचानक उसने सोचा कि कहीं वे हमला कर बैठे तो इस दरिया में उसकी कब्र बन जायेगी। उसने फिर बेवकूफी की है। आवाजें आयीं, वह समझ गया कि ये हेमचन्द्र के तरफदार हैं, इनमें जमाल भी हाजिर है, तो वह भी सियासत में दखल देने लगा। हिन्दी मुसलमानों और काफिरों की जमात है। ये हेमचन्द्र के गुट में हैं और वह अफगान-पठान है, ये अफगानों पर हावी होना चाहते हैं। यह नहीं होगा, भले ही मुगल आ जायें।
उसने देखा कि नाव बढ़ती जा रही है। रात के स्याह सन्नाटे में छप-छप की आवाज आ रही है। उसने मांझी को उस पार चलने के लिए कहा। उसकी नाव रुककर उस पार जाने लगी, पहली नाव बढ़ गयी थी। सरवर उस पार पहुंचकर नाव पर लेटा रहा। कभी वह नदी की तरफ देखता कि कहीं वे लोग उसकी तरफ तो नहीं आ रहे हैं और कभी गुस्से में होंठ काटने लगता। मांझी समझ रहा था। मन ही मन मुस्कराकर अपनी नाव में सो गया। सरवर को नींद नहीं आ सकी।
सुबह होते ही वह इब्राहीम खां की हवेली के दरवाजे पर पहुंचा। पहरेदार पहचान गये, बाइज्जत बैठने और इन्तजार करने के लिए कहा गया, वह बेवक्त पहुंच गया था। इब्राहिम खां ऐशगाह में था, उसे इन्तजार करना था।
घण्टे भर के बाद सिपहसालार इब्राहिम खां से मुलाकात हुई। सरवर ने सारा किस्सा नमक-मिर्च के साथ बयान कर दिया। जमाल अहमद एक हिन्दी मुसलमान को गिरफ्तार करने और उसके रोजगार -को बन्द करने की सलाह भी दे दी। रात की खुमारी में अधलेटे इब्राहिम खां ने सब सुना। पलकें बन्द कर गौर किया और फिर कहा—'सरवर अली ! खतरा लेकर खबररसां बने हो, बहुत खूब ! सलाह भी सही है, लेकिन थोड़ा रुकना चाहिए।'
'ऐसा क्यों ? जमाल हमारे खिलाफ है, हेमचन्द्र की जमात को तोड़ना मुनासिब है।'
'जमाल हेमचन्द्र का रिश्तेदार है और हेमचन्द्र कमजोर नहीं है। वजीर उसके साथ हैं, अभी वजीरों को अपने माकूल बनाना है, उसके बाद हेमचन्द्र की जमात को मसल दिया जायगा, जमाल पर नजर रखो, अभी इतना ही !'
सरवर कुछ लमहों के लिए चुप रह गया, उसने सोचा कि इब्राहिम खां का ख्याल दुरुस्त है। ये सियासत के दांव हैं। अभी उसे सीखना है, उसने मुंह खोला-'आप सही हैं। फौज के जरिए वजीरों को अपना तरफदार बनाइए, यह काम जरूरी है।'
'हां, यही करना है, आज जनाब शादी खां लाहौर जा रहे हैं। उसके बाद कार्रवाई शुरू होगी।'
'उधर हुमायूं और इधर हेमचन्द्र से निपटना है। मैं हेमचन्द्र के गुर्गों पर नजर रखूगा।'
'हां, कड़ी निगाह रखनी है, सही वक्त पर कार्रवाई की जायगी।'
'शाह हरखलाल ने बताया है कि एक जोगी-फकीर हेमचन्द्र का गुरु है।'
'हरखलाल को फुसलाये रखो, काम का आदमी है, उसी से रसद की खरीद की जायगी, जमाल को चोट देना जरूरी है।'
'जी, हां ! यही तरीका ठीक है वाह-वाह ! मान गया, हुजूर !' यह कहकर सरवर मुस्करा उठा, और ख्याली पुलाव भी पकाने लगा- जमाल को बरबाद होना है, नूरी को आगोश में आ जाना है।
उधर अपनी कुटिया में योगी शिवनाथ धर्मपाल और जमाल के साथ विचार कर रहे थे, कह रहे थे।
'हरखलाल और सरवर के गुट का मनोबल तो कुछ टूटा। सरवर बौखला गया होगा, वह इब्राहिम खां को भड़का सकता है।'
'मैं चाहता था कि सरवर को जमनाजी की लहरों में...। पर उपद्रव बढ़ सकता था।' जमाल ने रोष में कहा।
'अवसर अच्छा था, हम सोच नहीं सके, उपद्रव तो बढ़ सकता था पता लगने पर। अब शत्रु क्रोध में है, सावधान रहना है। शादी खां साहब लाहौर के लिए चल पड़े होंगे। इब्राहिम पर अंकुश कैसे रहे ?' योगी ने चिन्ता प्रकट की।
'आप कहें तो वजीरों से मिलकर बादशाह के प्रति वफादारी को समझने की कोशिश करें।' धर्मपाल ने विचार रखा।
'एक सुझाव दिया जा सकता है, बादशाह की कामयाबी के लिए किले के मैदान में इबादत हो। शाही इमाम इसे संपन्न करें। सभी इकठे होकर दुआएं करें।' योगीजी ने बताया।
'जी हां ! यह सुझाव ठीक है। इससे इब्राहिम पर अंकुश लगाया जा सकता है।' जमाल ने कहा।
धर्मपाल और जमाल दोनों संध्या में वजीरों से सम्पर्क की योजना से निकल पड़े। उन्होंने देखा कि फौज की चहलकदमी बढ़ गयी है। लगभग सभी वजीरों के मकान पर फौज की टुकड़ियां तैनात हैं, वे उधर जा नही सके, एकाध जगह प्रयत्न किया तो पूछताछ शुरू हो गयी। दोनों को हटना पड़ा, शादी खां के मकान में छिपना पड़ा। लगा कि वे अंधेरे में कैद हैं। रास्ते पर नंगी तलवार लिये राक्षसों का पहरा है। किसी प्रकार मिलकर शादी खां और हेमचन्द्र को संवाद भेजना है।
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