ऐतिहासिक >> हेमचन्द्र विक्रमादित्य हेमचन्द्र विक्रमादित्यशत्रुघ्न प्रसाद
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हेमचन्द्र नामक एक व्यापारी युवक की कथा जिसने अकबर की सेना से लड़ने का साहस किया!
इक्यावन
रात के तीसरे पहर सपना देखकर हेमचन्द्र की नींद टूट गई। जिधर उसके पैर बढ़े थे, उधर उसका झंडा फहर उठा था, जिधर से उसके पैर हटे थे, उधर उसका झंडा झुक गया था, और फिर उसने कदम बढ़ाकर अपने हाथों से झुके झंडे को लहरा दिया था। परन्तु वह रक्त में नहा उठा था, ऊपर काले-काले बादल छा रहे थे।
उसकी दृष्टि पार्वती के निद्रामग्न मुखड़े पर गई, दृष्टि क्षण भर ठहरी। अंधेरे में उस मुख की कल्पना की, और कल्पना में पारो झलक उठी। चिता की लपटें झलमला उठीं। उसने मन-ही-मन कहा—मेरा संकल्प कालगति से मिलकर आगे बढ़ेगा, सपने जैसे भी हों। परिस्थितियां प्रतिकूल होती जा रही हैं। सूफी फकीर ने बादशाह को स्नेहाशीष नहीं दी। सामान्य शिष्टाचार भर निबाहा। जजिया को हटाने की सलाह नहीं मानी, यदि वे मान जाएं तो हिन्दू-मुसलमानों में अपनापन हो जाय। दूसरी श्रेणी की प्रजा होने की पीड़ा दूर हो जाय। कबीरपंथी साधु हृदय-हृदय को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। ये पीर फकीर नहीं कर पा रहे हैं।
शासन प्रजा-वत्सल बन नहीं पाता क्योंकि मजहब की बंदिशें हैं, संकीर्ण दृष्टि है। हिन्दू राजा तो शैव, वैष्णव और जैन में भेदभाव नहीं करते। सामाजिक स्तर पर जाति की दृष्टि से भेदभाव है, इसे भी दूर करने का प्रयत्न हो रहा है। एक बार सारे विद्रोहों से निबट लिया जाय, मुगलों से मुकाबला हो जाय, और तब जजिया को हटाना है। शासन को प्रजा के अनुसार चलना है, कोई प्रथम और कोई द्वितीय श्रेणी का नहीं माना जाएगा। पर हिन्दुओं में जातियां और श्रेणियां युगों से हैं। समाज में ऊंच-नीच का भेदभाव है, असन्तोष है।
संत इस भेदभाव को मिटा रहे हैं, विषमता को हटा रहे हैं। इस विषमता को मिटाना है, नहीं तो आत्मीयता कहां ? समाज कहां? एक आरोपित व्यवस्था जो टूट ती-बिखरती जाएगी-समता और स्नेह के अभाव में। अभी तो स्थिति को सम्भालना है, जनाब खां आगरा में इब्राहिम खां पर अंकुश रख सकेंगे। धर्मपाल भी यहीं रहेगा। पार्वती ने दाहिनी तरफ करवट ली, कुछ बुदबुदायी, उठ बैठी। देखा कि वे विचारमग्न हैं, उसने झुककर चरणों को स्पर्श किया, हेमचन्द्र ने हृदय से लगा लिया।
मुंशी हरसुखलाल का भजन मन्द स्वर में सुनाई पड़ा। मां दुर्गा कुंवर का भी प्रातःस्मरण आरम्भ हुआ।
पड़ोस में साह हरखलाल सरवर के साथ तांत्रिक के पास जाने के लिए तैयार होने लगा। थोड़ी ही देर में वह श्री विलास से निकल पड़ा, गलियों से होता सरवर के पास जा पहुंचा। सरवर भी इन्तजार कर रहा था। दोनों ने कोशिश की कि जमाल की नजर से बचकर आगे बढ़ जाएं। दोनों ने अलग-अलग कदम बढ़ाये, जमाल देख नहीं सका। परन्तु धर्मपाल की दृष्टि से बच नहीं सके। वह उन दोनों का पीछा करने लगा, वे दोनों साथ-साथ नदी तट पर पहुंचे। सरवर ने कहा'शाह जी ! आप तांत्रिक के पास जाएं, मुझे जनाब इब्राहिम खां साहब से मिलना जरूरी है।'
'सरवर साहब ! तांत्रिक पहुंचे हुए फकीर हैं। उन्होंने हम दोनों को साथ ही बुलाया है, हम जो चाहेंगे, वह होकर रहेगा।' हरखलाल ने अनुरोध किया।
'मैं आपके साथ हूं, शाह जी ! आप हमारे साथ हैं। सिपहसालार साहब से मुलाकात बहुत जरूरी है, वक्त कम है।'
'तब काम कैसे सिद्ध होगा ?'
'मेरा रूमाल ले लें, मैं इसके साथ रहूंगा। दरगाह के औलिया ने भी बताया है कि हम दोनों कामयाब होंगे। मैं आपको ले चलूंगा, यह रूमाल ले लें।
हरखलाल ने रूमाल ले लिया, पर मन का उत्साह दब-सा गया। आंखें उठाकर देखा-सरवर मुस्करा कर किले की ओर जाने के लिए इजाजत मांग रहा था। हरखलाल का मन मान गया, उस पार किले का परकोटा शान से खड़ा दिखाई पड़ा। उसने मुस्करा कर जाने के लिए कह दिया। सरवर ने पहले एक नाव पर हरखलाल को तांत्रिक की कुटिया के लिए विदा किया, और खुद एक दूसरी नाव से किले की तरफ रवाना हुआ। धर्मपाल माली के वेश में सरवर के पीछे था, वह नाव से उतरकर सरवर से पहले इब्राहिम की हवेली में पहुंच गया। बगीचे में पौधों की सेवा में लग गया, और तब सरवर आया। इब्राहिम खुशआमदीद कहकर मुस्कराया। सरवर के लबों पर मुस्कान थिरक उठी, दोनों मुस्कराते हुए बाग में खिले गुलाब को देखते रहे, उसी वक्त कूच का डंका बजने लगा। दोनों उधर ही मुखातिब हुए।
सरवर ने पूछा-'हजर! रक्कासा नादिरा लश्कर के साथ जा रही हैं न?'
'जरूर जा रही है, बादशाह ने खुद चाहा है, हूर ने असर डाला है, कमाल तो तेरा है। मैंने अपने को जब्त किया है।' मुस्कराते हुए इब्राहिम ने जवाब दिया।
'आपके पास दूसरी नादिरा आ जाएगी, आप क्यों फिक्र कर रहे हैं ? उसे दोनों का शिकार करने दीजिए, फिर तो वह लौटकर आपके ही पास...।'
माली वेश में धर्मपाल गुलाबों का गुलदस्ता लेकर गया था। कानों से सुन लिया था, वह गुलदस्ता लिये दूर खड़ा रहा।
'शादी खां साहब लाहौर चले जाएं तो मैं आगरा में खैर मनाऊं।' इब्राहिम ने अपने इरादे को जाहिर किया।
माली ने खिदमत में गुलदस्ता पेश किया, दोनों खुश हो गए। उन्हें लगा कि अच्छा सगुन हो गया, इब्राहिम से इनाम पाकर माली बाग में लौट आया, कुछ देर के बाद वह वहां से चलता बना।
सरवर कह रहा था-'लाहौर के अहमद खां साहब तो बादशाह के भतीजे हैं, आपका मेलजोल हो तो ताकत बढ़ सकती है।'
'यह दिमाग में है, लेकिन पहले तो शादी खां को आगरा से हटाना है। जब तक वे यहां से नहीं हटते हैं तब तक आगरा पर अपनी पकड़ मजबूत नहीं होगी। हेमचन्द्र सासाराम-चुनार की तरफ हो, शादी खां साहब लाहौर चले जाएं और वह आगरा-दिल्ली को संभाले।' इब्राहिम ने अपना मंशा बता दिया।
सरवर ने संजीदगी के साथ सर हिलाया, उसने सोचा कि यह हो सकेगा। यह रास्ता आसान है, कोई कठिनाई नहीं है। इस नाचीज को वजीर बनने का मौका मिल सकेगा। हरखलाल को भी। वह बोल उठा-'बिलकुल सही निशाना, हुजूर ! एक करिश्मा...बिला खूनखराबी के !'
‘सियासत में खून-खराबी से नहीं घबराना, सरवर अली !'
'मैं आपके लिए खून देने को तैयार हूं, आपके साथ घबराना कहां ? दीनोईमान हमारे साथ। उनके साथ सिर्फ रक्कासा और एक काफिर !'
दोनों हाथ मिलाकर हंस पड़े, हंसते रहे। कूच का डंका बज रहा था, आवाज ऊंची हो रही थी। इब्राहिम को ख्याल हो आया, वह सरवर के साथ बादशाह को रुखसत करने चल पड़ा।
हेमचन्द्र गजराज सिंह, विजयवाहन, खेमराज और बहादुर खां के साथ आ गया था। धर्मपाल ने अफगानवेश में हेमचन्द्र को इब्राहिम के इरादे की जानकारी दे दी। हेमचन्द्र ने शाही फौज का इन्तजाम देखा, बादशाह से सलाह कर जरूरी हिदायतें दीं। शादी खां ने शाबासी देते हुए खुशी जाहिर की।
शाही फौज नगाड़े और डंके की आवाज पर किले से निकलने लगी। पीछे-पीछे रसद की गाड़ियां थीं, उनके पीछे शाहीहरम था। एक खास गाड़ी में नादिरा थी, सबसे पीछे हथियारबन्द सिपाही रक्षक के रूप में थे।
हेमचन्द्र ने शादी खां के सामने बादशाह से कहा–'जनाब शादी खां पर आगरा से लेकर लाहौर तक को सम्भालने की जिम्मेवारी है।'
शादी खां साहब को लाहौर जाकर अहमद खां को चुस्त-चौकस करना है, आगरा को इब्राहिम खां सम्भाल लेंगे।'-बादशाह ने जवाब दिया।
'मैं तो चाहूंगा कि आगरा पर भी इनकी निगरानी रहे।' 'मेरे अपने रिश्तेदार पर शक नहीं, हेमचन्द्र !'
'हालात ऐसे हैं, जहांपनाह ! कि आपको हर लमहा होशियार रहना है, हर सरदार से...।'
'हेमचन्द्र ठीक कह रहा है, बादशाह सलामत !' शादी खां ने कहा।
'जैसे बाबर ने जंग को जीतने के लिए शराब के जाम को तोड़ दिया था, हजूर ! आप भी कुछ तय कर लें।'
'बोलो, क्या तय करूं?'
'शराब और साकी से दूर रहकर हर बगावत को कुचल देना है। अभी सिर्फ शमशीर से खेलना है।'
'नादिरा पर क्यों नाराज हो, हेमचन्द्र !'
'वह सिर्फ शराब है...जहरीली शराब, आलीजाह !'
'नहीं, हेमचन्द्र ! वह हुस्न और फन का धुंघरू है, उसे जब-तब तफरीह के लिए बज उठना है। उसे नहीं छोड़ना है, कोई बादशाह छोड़कर नहीं चलता। तुम साथ हो, ताकीद रखोगे।'
हेमचन्द्र चुप रह गया, उसी क्षण सिपहसालार इब्राहिम खां सरवर के साथ आया। शादी खां ने हेमचन्द्र को इशारा कर दिया, वह बादशाह के साथ आगे बढ़ने को तैयार हो गया। वजीरों, शादी खां और इब्राहिम ने सलाम-बन्दगी कर कामयाबी की दुआ करते हुए बादशाह को रुखसत की। हेमचन्द्र जनाब शादी खां को सलाम कर विदा हुआ। सरवर तो चेहरा छिपा रहा था, इब्राहिम सोच रहा था कि इससे छुटकारा मिला।
अफगान हुकूमत के फहराते झंडों को लेकर शाही फौज कूच कर रही थी। हेमचन्द्र देख रहा था...दूर-दूर तक आसमान....झण्डे-भालों और तलवारों की चमक' 'नारे और वह आगरा, पारो, मां-सबको छोड़कर जा रहा है। दूर जा रहा है, इधर क्या होगा? ऐयाश बादशाह...बागी सरदार और कदम बढ़ाते मुगल....क्या होगा? उसका संकल्प कालगति से मिलकर साकार हो सकेगा?
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