ऐतिहासिक >> हेमचन्द्र विक्रमादित्य हेमचन्द्र विक्रमादित्यशत्रुघ्न प्रसाद
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हेमचन्द्र नामक एक व्यापारी युवक की कथा जिसने अकबर की सेना से लड़ने का साहस किया!
तैंतालीस
सरवर अली कैदखाने से रिहा होकर अपने मकान में छिपा रहा। उसे लग रहा था कि वह चेहरा दिखाने लायक नहीं रहा। वह शाम को चकले की ओर चला जाता। ऐयाशी और शराब में अपने को डुबोकर गम भुलाने की कोशिश करता। पर वह बेखबर नहीं होता। वहां उसे अपने शहर और दारुल सल्तनत की खबरें मिल जातीं। वह कुछ सोचने लगता। उसे जानकारी मिली कि नये बादशाह नाचगान के शौकीन हैं। दरबार के बाद लाहौर के रक्कासा की महफिल जमी थी। वह मुस्करा उठा।
उसे मालूम हुआ कि हेमचन्द्र वजीर बन गया है। उसे अजीब लगा, एक काफिर को ओहदा मिला ! पहली बार यह रुतबा मिला ! बादशाह को क्या हो गया है ! और यह जमाल अहमद कबीरपंथी बन रहा है। सूफी शायरमंझन उसे जमाल मोहन कहते हैं। तो इलाहीबख्श उसे दीन की राह पर ला नहीं सके। वह खुदमुख्तार हो चुका है, उसका शक सही निकला।
सरवर ने सुबहोशाम मुहल्ले का रंग-ढंग देख कर अंदाज किया कि लोग उसे बुरा नहीं मानते। वे उसकी कैद को भूल गए हैं। वह बेकार में अपना चेहरा छिपा रहा है। उसके हमउम्र साथी उसके साथ मिल बैठने के लिए बेकरार हैं। अब उसे चकले में वक्त नहीं गुजारना चाहिए। कुछ और करना चाहिए, वह बहुत कुछ कर सकता है। मजहब सियासत के साथ चलता रहा है। सियासत मजहब के हुक्म से दौड़ लगाती रही है। इस्लामी सियासत ने ही तुर्की से हिन्दुस्तान तक को अपनी लपेट में लिया है। वह सिर्फ औरत और दौलत के बारे में ख्याल करता रहा है। सियासत से दूर रहा है, अगर वह सियासत की राह अपना लेता तो दोनों चीजें मिल सकती हैं। कदमों पर लुढ़क सकती हैं। खतरा तो है, जिन्दगी में कदम-कदम पर खतरा है। हम हमेशा आग उगलने वाले पहाड़ पर बैठे हैं। जल-जला की फिक्र करने से जिन्दगी चलेगी क्या ? सर पर कफन बांधकर चलना पड़ता है।
साथ में होशियारी भी चाहिए।
जब एक काफिर अपनी होशियारी से अफगान सल्तनत में ओहदा पा सकता है तो फिर वह अफगान-पठान है, वह क्यों नहीं पा सकता? इन गलियों को छोड़ना पड़ेगा। शाही सड़क पर चलना होगा।
सरवर शाम को चकले की ओर नहीं गया। वह मुल्ला साहेब से मिला, उसने बताया - 'आपके रहते जमाल अहमद कबीरपंथी बन रहा है। जमाल मोहन कहलाता है, चाचा इलाहीबख्श लाचार हैं। उसे कसना चाहिए। हाथ से नहीं निकल जाय।'
'सरवर ! तुम ठीक कहते हो। जमाल पर दबाव तो है, लेकिन हिन्दी मुसलमानों की यही हालत है। आहिस्ता-आहिस्ता उन पर रंग चढ़ेगा। दो पीढ़ियों के बाद वे खुद ही अरबी-ईरानी कहलाने में फख्य करेंगे। अलाउद्दीन खिलजी के सिपहसालार मलिक काफूर और लोदी खानदान के सिकन्दर शाह लोदी-ये दो बेजोड़ मिसाल हैं। इन दोनों ने काफिरों को सबक सिखाया है। काफूर तो काफिर ही था जो मुसलमान बन गया था। सिकन्दरशाह हिन्दू औरत का बेटा था।' मुल्ला साहेब ने समझाया।
'लेकिन ये मलिक काफूर बन नहीं पायेंगे।' सरवर ने कहा।
'कबीर की वजह से हिन्दी मुसलमान काफूर नहीं बन रहा है। कुछ ढिलाई आ रही है।'
'इस तरह ढील देने से तो वे खिसक सकते हैं। बेईमानी कर सकते हैं।'
'वे खिसक कर कहां जायेंगे? उन्हें कौन कबूल करेगा? उन्हें तो मजबूरन साथ रहना ही है। अपनी हुकूमत का दबदबा है, जजिया का भी दबाव है।'
'अगर काफिर और हिन्दी मुसलमान हुकूमत में आ जायेंगे तो और ढिलाईं आ सकती है, देख लीजिए, हेमू बक्काल वजीर बन गया है। वह जजिया हड़प सकता है।'
'अफगान बादशाह ऐसा नहीं होने देंगे। वजीरों को भी इसी कायदे के मुताबिक चलना पड़ेगा। नहीं तो जेहाद का ऐलान हो जाएगा।'
'लेकिन हेमू बहुत चालाक है। उस पर निगाह रखना जरूरी है।'
'सरवर ! तुम कोशिश करो। यह बदलाव का वक्त है, नये बादशाह तख्त पर आए हैं। वजीरों और दरबारियों से मेलजोल बढ़ाओ।'
'आपका इशारा काफी है।'
सरवर मुल्ला साहेब से रुखसत होकर कुछ सोचता हुआ घर लौटा और फिर चकले की ओर चला गया।
किशनपुरा में हरखलाल हेमचन्द्र के वजीर बन जाने से डर गया। पहले तो विश्वास नहीं हुआ कि वह वजीर बन सकता है परन्तु उसने देख लिया कि वह वजीर की हैसियत से सिपाहियों के साथ आता है। किशनपुरा स्वागत करता है, वह भुन गया। सर ठोक कर बुदबुदाया कि अब कुछ नहीं किया जा सकता। चुप रहना है, अपना व्यापार करना है। नहीं तो, वह उसके व्यापार को बन्द भी कर सकता है। उसके हाथ में राजशक्ति है। किस गांव से भटकता हुआ आया और यहां सबका सिरमौर बन गया। सोहनलाल की मान-मर्यादा बढ़ गयी, अचरज की बात है कि मोहन से भी हेमचन्द्र की खटपट नहीं हो सकी। पर सम्पत्ति के लिए खटपट करायी जा सकती है। मोहन याने जमाल से मिलना पड़ेगा। उससे मिलना कठिन है, उस विधर्मी के घर कैसे जाया जाये ? लोग क्या कहेंगे ? रास्ते में जब-तब दीख जाता है। आंखें फेर लेता है। कान भरे जा सकते हैं, अपनी सम्पत्ति की चाह तो उसमें हो ही सकती है। चाह पैदा की जा सकती है, वह कैसे सह रहा है ? हेमचन्द्र उसकी सम्पत्ति पर कुंडली मारकर बैठा है। और वह हिन्दुओं का अगआ बन गया है। सरकार का वजीर भी हो गया। वह तो योगीजी का चमत्कार लग रहा है। योगी जी के कारण ही वह इतना बढ़ रहा है। ग्रह अनुकूल हो गए हैं, योगी चमत्कार की शक्ति से सब कर रहा है। उसे भी किसी तांत्रिक के पास जाना चाहिए। तन्त्र के आगे हेमचन्द्र नहीं टिक सकेगा।
शाह हरखलाल ने यह विचार कर तांत्रिक से मिलने का निश्चय किया। आगरा नगर से दक्षिण में नदी किनारे के एक गांव में किसी तांत्रिक के निवास का पता लगाया। वह नदी किनारे मसान जगात है, उसने सिद्धि पा ली है। पहले उसने अपने मुनीम को पूरा पता लगाने को भेजा।
सुबह-सुबह हेमचन्द्र योगी शिवनाथ के पास पहुंचा। योगी की कुटिया नगर से बाहर उत्तर दिशा में एक उपवन में थी। धर्मपाल का निवास भी वहीं था, वह गुप्तचरी के लिए साधु वेश में निकलता था। उसने धीरे-धीरे राजधानी के हर क्षेत्र का परिचय पा लिया था। वह विश्राम कर रहा था कि हेमचन्द्र पहुंचा। धर्मपाल उठ बैठा, दोनों योगी शिवनाथ के निकट आए। योगी के चरणों में झुके।
'सर्वमंगलमय हो।' योगी ने आशीष दी।
'आपकी कृपा से मंगलमय है, परन्तु....।' हेमचन्द्र के शब्द निकल पड़े।
'परन्तु तो लगा रहेगा, हेमचन्द्र ! मेरुदंड सीधा रहे। दृष्टि एकाग्र रहे, आदिनाथ का स्मरण होता रहे तो परन्तु-किन्तु की स्थिति बदल सकती है।'
'सेठ जी स्वस्थ हो जाते हैं, फिर अस्वस्थता झलक उठती है। चिन्ता बढ़ जाती है। उधर वजीर बन जाने के बाद लग रहा है कि राजनीति में कांटे ही कांटे हैं। कांटों से उलझते रहना है।'
'शीत में बुढ़ापा कष्टदायक हो जाता है। उनकी देखभाल होती रहे, वे चिन्ता से भी मुक्त नहीं हो पाते। इकलौता बेटा जमाल बन कर दूर हो गया....इस पीड़ा से उन्हें छुटकारा नहीं मिल पाता।'
'यही लगता है, शरीर और मन दोनों कष्ट में हैं। सोच रहा हूं कि व्यापार का काम जमाल मोहन को ही सौंप दूं। उन्हीं के द्वारा अन्न और वस्त्र की पूर्ति किले में हो। मैं राजकाज को संभालने में पूरी शक्ति लगा दूं, राज की स्थिति को सम्हालकर अनुकूल बनाया जाय।'
ठीक सोचा है, हेमचन्द्र ! यही हो। पूरा समय देना ही पड़ेगा, यह पद केवल प्रतिष्ठा नहीं बने। यह अपने देश का कर्म बने, अपने कर्म से इसे प्रजा के लिए बना देना है, तुम पर...यहां की प्रजा पर यह राज्य आकर टिक जाए। पर इसके लिए आचरण शुद्ध व सन्तुलित रहे।'
'इसके लिए आपका नित्य मार्गदर्शन मिलता रहे। धर्मपाल इसे अनूकुल बनाने में सहायता करता रहे।'
'धर्मपाल तो आगरा में नया है, कार्य कठिन है। पर संकल्प के लिए कुछ भी कठिन नहीं है। क्यों धर्मपाल...!'
धर्मपाल सिर झुकाकर सुन रहा था। योगी के निर्देश पर उसने सिर उठाया, और कहा–'आपने मुझे शिव का गण बना दिया है। पर त्रिशूल को छिपाकर शूलों पर चल रहा हूं। परन्तु आनन्द आ रहा है।'
'शिवजी का गण आनन्दी जीव होता ही है, धर्मपाल ! पत्थरोंचट्टानों पर उछलता चलता है। जहां कहीं रत्न मिल जाता है, वह निरासक्त भाव से अपनी झोली में डाल लेता है।' योगी ने संकेत भाषा मे समझाया।
'रत्न मिले हैं, ताज खां ने मृत बादशाह की बेगम को साथ ले लिया है। ग्वालियर की ओर बढ़ गया है।' धर्मपाल ने बताया।
'कुछ इधर की सूचनाएं भी...।' हेमचन्द्र ने पूछा।
'सरवर रिहा होकर ऐयाशी में डूबा हुआ है। वह मुल्ला से भी मिल रहा है, उस पर मेरी दृष्टि है।
'वह मुल्ला के द्वारा वजीरों तक पहुंच सकता है। वह आदमी बहुत बुरा है, उस पर ध्यान रखना होगा।' हेमचन्द्र ने कहा।
'हेमचन्द्र ! बादशाह भी भला-मानुष नहीं है। तुमको चतुराई से इसे अपने विश्वास में रखना होगा। उसकी दुर्बलताओं को समझकर अपने अनुकूल बनाना होगा। योगी ने सकेत दिया।
'नहीं तो...इसे साथ देने का प्रयोजन है ! मुझे तो आपके मार्गदर्शन में अपने देश और अपनी प्रजा के लिए यह सब करना है।'
'यह सत्य सर्वदा आंखों के सामने रहे, और आक्रमण, विध्वंस और अत्याचार का इतिहास भी स्मरण रहे।
'जी, हां ! अपने प्रण के साथ स्मरण रखना है।'
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