ऐतिहासिक >> हेमचन्द्र विक्रमादित्य हेमचन्द्र विक्रमादित्यशत्रुघ्न प्रसाद
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हेमचन्द्र नामक एक व्यापारी युवक की कथा जिसने अकबर की सेना से लड़ने का साहस किया!
अड़तीस
सुबह-सुबह सरजू जमाल अहमद के दरवाजे पर पहुंच गया, दस्तक दी। नूरी ने दरवाजा खोला, सरजू दिखायी पड़ा।
वह बोल उठी—'आओ, सरजू ! इतनी सुबह ! बात क्या है ?' 'आप लोगों को नहीं मालूम है। इतनी बड़ी बात हो गयी !'
'मैं तो घोड़ा बेचकर सो रही थी, बात क्या है ? जमुना जी में बाढ़ आ गयी क्या ?'
'ऐसी बाढ़ आयी है कि शाही महल में ही नहीं, सारे राज्य में उथल-पुथल हो जायगो।' सरजू ने बैठते हुए कहा।
'तो तुम भी शाही महल तक पहुंच गये ! कुछ बताओ भी, पहेली ‘मत बुझाओ।'
'रात बादशाह सलीमशाह खुदा के प्यारे हो गये। सारे शहर में सन्नाटा है। लोग गुपचुप बातें कर रहे हैं। सिपाहियों की गश्त बढ़ गयी है।' सरजू ने बता दिया।
'खुदा के प्यारे हो गये ! शाहजादा फीरोज तो नाबालिग है !' नूरी ने कहा।
'शाहजादा फीरोज नाबालिग तो है ही, बादशाह शेरशाह के रिश्तेदार सिर उठा सकते हैं।' जमाल ने उत्तर दिया।
'आज तो हाट-बाजार बन्द रहेगा।' सरज ने संकेत दिया।
'हां, बन्द तो रहना चाहिए, पर तुम कहां जाओगे ? आज यहीं खाना खाकर आराम करो।' नूरी ने समझाया।
'हम लोग किले की तरफ चलेगे, सरजू ! शहंशाहे हिन्द का जनाजा निकलेगा। हजारों लोग रहेंगे, और फिर शाही शान के साथ कब्रगाह में दफन।' जमाल ने कहा।
'आप लोग कहां भीड़-भाड़ में जायेंगे ?' नूरी ने टोका।
'बादशाह के जनाजे में शामिल होना चाहिए, नूरी !'
'वह तो ठीक है, लेकिन शाहीमहल और दरबार की भीड़ में धक्का खाना?
'रिआया भी जायेगी ही, जरा घूमते-फिरते हो आना चाहिए।'
'हमेशा तो आप घमते-फिरते रहते हैं।'
'पंछी घोंसला में अण्डा सेता रहे।'
'पंछी आसमान में उड़ान भरता रहे तो।'
सरजू सिर झुकाकर मुस्करा रहा था, जमाल जवाब के लिए सर खुजला रहा था।
'लगता है कि बालों में जुएं आ गयी हैं, कंघी ला दूं ?' नूरी ने मंद मुस्कान के साथ चोट कर दी।
'सगति का फल तो मिलता है, नूरी ! जुल्फों से चलती-चलती जुएं इधर आकर परेशान करने लगी हैं।' जमाल का विनोद जोरदार था।
सरजू अपनी हंसी रोक नहीं पा रहा था। नूरी लाजवाब हो गयी, जमाल अपनी जीन पर सर हिला रहा था।
‘इन्हें जाने दीजिए....अधिक देर नहीं रुकेंगे।' सरजू ने अनुरोध किया।
'तो तुम भी मिल गए, सरजू ! खिलाना-पिलाना बेकार गया।" नूरी बोल उठी।
जमाल नूरी के संकेत से तैयार होने लगा, नूरी नाश्ते का इंतजाम करने लगी।
कुछ देर के बाद जमाल सरजू के साथ घर से निकला, देखा कि चौराहे पर भीड़ है, लोग आपस में बातचीत कर रहे हैं। गश्त करती हुई टुकड़ी आयी, भीड़ सड़क के किनारे से हट गयी। कुछ लोग जमनाजी की तरफ जा रहे थे। वे दोनों उधर ही चल पड़े। लोगों के चेहरे और बातचीत से अंदाज मिल गया कि लोग गमगीन हैं, फिक्र-- मंद भी हैं। फिक्र करना सही है, इतना बड़ा राज्य, बादशाह की मौत, शाहजादा नाबालिग, रिश्तेदार क्या-क्या सोच रहे होंगे ? सारा बाजार बन्द है। लोग किले की तरफ देख लेते हैं। अल्लाह से दुआएं मांगते हैं, कुछ लोग उस तरफ चल पड़ते हैं।
नदी तट पर सिपाहियों की गश्ती बहुत अधिक थी। गजराजसिंह अपनी टुकड़ी के साथ मौजूद था। हर जाने वाले की जांच हो रही थी, शायद सबको इजाजत नहीं मिल रही थी।
जमाल सरजू के साथ पहुंचा, गजराजसिंह ने पहचाना। उसने इशारा किया, वह रुक गया। गजराजसिंह ने बताया, 'उस पार जाना बेकार है, अभी तो किले में वजीर और सिपहसालार राय सलाह कर रहे हैं। बड़ा सख्त पहरा है।'
'क्या कुछ गड़बड़ी है ?' जमाल ने पूछा।
'शाहीमहल में थोड़ी परेशानी है। अपने ही रिश्तेदारों से डर है।'
'तो यह बात है !'
'इसलिए कह रहा हूं, लौट जाना ठीक रहेगा।'
सरजू जमाल की तरफ देखने लगा। उसे भी लौट जाना ठीक लगने लगा।
'और अपने घर-द्वार का क्या समाचार है, गजराज सिंह ! अपने घर गए थे न !' 'घर पर तो वैसे सब ठीक है, पर छोटा भाई एक जादूगरनी के चक्कर में पड़कर लापता है। खोजकर थक गया हूं, थककर लौट आया हूं।'
'जादूगरनी !'
'बस, वही समझ लीजिए।' जमाल की बात समझ में आने लगी। अधिक पूछताछ नहीं कर सका।
'अभी हेमचन्द्र का लौटना तो नहीं हो सका है न !' गजराजसिंह ने पूछा।
'अभी तक तो कोई संवाद नहीं है, पर अब लौटना चाहिए।' जमाल ने बताया।
वह सरजू के साथ लौटने लगा। कबीरदास का पद स्मरण आने लगा-रहना नहिं देस बिराना है। यह संसार कागज की पुड़िया, बूंद पड़े घुलि जाना है। क्षणभंगुर संसार कुछ वर्षों का जीवन....उसके लिए इतना आंधी-तूफान कभी शान्ति नहीं...अफगान सरदार को अफगान से डर है, मुगलों से डर है हिन्दी मुसलमान से नहीं शायद हिन्दुओं से थोड़ा-थोड़ा डर हो, यह तो जानवर की जिन्दगी है।
'एक बात कहूं ?' सरजू ने पूछा।
'कहो...क्या कहना चाहते हो?' जमाल ने उत्तर दिया।
'हमारे ऐसे भार-बोझा ढोने वाले जन-मजदूर शाहों के जीने-मरने की क्या चिन्ता करें? हम शूदर हैं। इस देह से बोझा उठाते हैं, सेवा करते हैं। पेट को पालने के लिए रोटी मिल जाती है। जब बूढ़े से बच्चे तक की देह से पसीने की बूंदें टपकने लगती हैं तभी घर भर के लिए दो मुट्ठी ज्वार-बाजरा मिल पाता है। हम ऊपर वाले का नाम लेकर रोटी खा लेते हैं, ठण्डा पानी पी लेते हैं। बादशाहों के बदलने से क्या फरक पड़ता है ?' ठण्डी सांस लेकर सरज ने अपनी बात कह दी।
'बात तो ठीक कह रहे हो, सरजू !....पर राजा और राजा में फर्क होता है। बादशाह और बादशाह में फर्क होता है। रोटी को पाने के लिए, शान्ति से रात में आराम करने के लिए और राम-रहीम का नाम लेने के लिए सुराज (अच्छे राज) की चाह होती है। अच्छे राजा के राज्य में प्रजा को तकलीफ नहीं होती।'
'पर जन-मजदूर के लिए बहुत फरक नहीं पड़ता।'
'विक्रम राजा का नाम आज भी है। राजा हर्षवर्धन का भी नाम है। आज हम शेरशाह का भी नाम ले रहे हैं। फर्क पड़ता है तभी तो हम नाम लेते हैं।'
'हां, वे लोग अच्छे थे, लोग उन्हें भूल नहीं पाते।'
जमाल को थोड़ा सन्तोष हुआ। वह अपने घर के पास पहुंच रहा था, मालूम हुआ कि सिकन्दराबाद के मुस्लिम बिरादर जन्नत नशीन बादशाह सलीमशाह की रूह के सूकन के लिए मस्जिद में इकटठ हो रहे हैं। वह सरज के साथ अपने घर पहुंचा। नूरी खुश हो गई। इस खुशी में भूल गई कि जमाल अहमद को भी फातिहा पढ़ने के लिए मस्जिद में जाना है। वह तो किले की खबर बताने लगा। नूरी उसी में खो गई, मानो वह शाही महल के अन्दर चलने वाली साजिश का नजारा देख रही है।
उसी समय कबीर पंथी साईंदास का आगमन हुआ। सरजू ने बड़े आदर से बैठाया। जमाल और नूरी की उदासी भी दूर हुई। साईंदास ने इस संसार की नश्वरता की चर्चा करते हुए इस मानव जीवन को पाक-साफ रखकर जीने का संकेत दिया। इंसान को इंसान समझना ऊंच-नीच और अमीर-गरीब का ख्याल नहीं रखना ही इंसानियत है।
नूरी ने जमाल की ओर देखा। जमाल ने सिर हिलाया, सरजू तो आत्मतोष में बेसुध हो रहा था।
दूसरे दिन सुबह इलाहीबख्श तशरीफ लाये। नूरी और जमाल ने सलाम-बन्दगी कर इज्जत के साथ बैठाया। इलाहीबख्श का दिल बाग-बाग हो गया। दो क्षण के बाद घर की दीवारों पर नजर गई। देखा कि एक तरफ मक्का शरीफ की तस्वीर है। दूसरी तरफ ओंकार की लकीरें भी उभर उठी हैं, और तीसरी तरफ कबीर की साखी भी है। यह सब देखकर इलाहीबख्श का गुस्सा सुगबुगाने लगा। उसकी आवाज गंज उठी—'क्यों जमाल ! कल फातिहाख्वानी में शामिल नहीं हुए ?'
'मैं उस वक्त किले की तरफ जा रहा था।'
'जनाजे में शामिल हो गए थे ?'
'नहीं, रोक थी। उल्टे पैरों लौट आना पड़ा।'
'यह सब कबीर पंथी फकीर का असर है। गुनहगार मत बनो, जमाल ! कोई बर्दाश्त नहीं करेगा। सबकी नजर है।'
'वह फकीर तो खुदा और ईश्वर के, राम और रहीम के बारे में ही बताता है। इंसानियत की बात करता है।'
'नूरी ! तुम्हारे रहते कुफ्र की घुसपैठ क्यों ?'। 'मेरी पूरी कोशिश है, आप इत्मीनान रखें।'
'मुझे इत्मीनान नहीं है। तुम दोनों को हर हफ्ते जुमे की नमाज के बाद मेरे पास आना है।'
'आपका हुक्म सर आंखों पर....हम जरूर आयेंगे।' नूरी और जमाल ने एक साथ ही कहा।
इलाहीबख्श का गुस्सा ठण्डा हुआ, और फिर घर-मुहल्ले की बातचीत होती रही। इस सिलसिले में यही बात भी आ गई कि नये बादशाह की ताजपोशी के मौके पर कैदियों को माफी मिलेगी।
‘सरवर भी रिहा हो सकता है।' नूरी ने सहमते हुए पूछा।
'हो सकता है, लेकिन वह अब अपना चेहरा क्या दिखाएगा ? फिक्र क्या करना?'
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