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अजनबी

राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

एक्सीडेंट का नाम सुनकर ड्राईवर गाड़ी से उतर गया। कई आदमियों ने मिलकर विकास को गाड़ी की पिछली सीट पर लिटाया। दो आदमी उसके साथ टैक्सी में बैठ गये। ड्राईवर ने पूरी स्पीड पर गाड़ी छोड़ दी और कुछ ही देर बाद टैक्सी सफदरजंग अस्पताल के सामने खड़ी थी। विकास को एमरजेंसी वार्ड में दाखिल करा दिया गया तुरन्त ही डॉक्टर अपने काम में लग गये।

सुनीता ख्यालों में खोई हुई लेटी थी कि फोन की घंटी बजे उठी। सुनीता ने फोन उठा लिया। उधर से लता बोल रही थी। फोन पर लता ने बताया-"उसकी हालत काफी खराब है, दर्द के मारे बुरा हाल है।"

"लता मैं दस मिनट में पहुंच रही हैं...तुम चिन्ता मत करना।” सुनीता ने कहा और जल्दी-जल्दी कपड़े बदलने लगी।

तैयार होकर उसने रामू को अपने पास बुलाया। रामू उसका हमराज था। रामू ने ही लता का पता सुनीता को बताया था। रामू को सब समझा कर सुनीता सेठ जी के कमरे में गई।

सेठ जी अपनी आराम कुर्सी पर लेटे हुये थे। उनके हाथ में पेपर था और वे पेपर पढ़ने में तल्लीन थे। उन्हें इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि कोई उनके दरवाजे पर खड़ा है।

“डैडी मैं आ सकती हूं?” सुनीता ने कहा।

"अरे आओ बेटी...मैंने तुम्हें देखा ही नहीं।" सेठ जी ने चौंक कर कहा।

“डैडी बात ये है कि मेरी सहेली की तबीयत खराब है..अभी उसका फोन आया है।”

"तब।"

"उसे अस्पताल ले जाना है...इस समय उसका पति भी घर पर नहीं है।"

"अरे इसमें पूछने की क्या बात है...बेटी कष्ट में हमेशा दूसरे के काम आना चाहिये...तुम जल्दी आओ कोई परेशानी हो मुझे फोन कर देना।”

"अच्छा डैडी।"

"कुछ पैसा भी लेती जाना...पता नहीं बेचारी के पास हो या नहीं।”

"ले जाऊंगी।” सुनीता ने कहा और तेजी से चल दी।

कुछ रुपये उसने पर्स में डाले और बाहर निकले गई। सुनीता की गाड़ी गैराज में थी उसने तुरन्त खुद ही गैराज का ताला खोला और फिर गाड़ी निकाल ली। अब उसकी गाड़ी उस ओर दौड़ रहीं थी जिधर लता का फ्लैट था। फ्लैट अधिक दूर नहीं था तुरन्त ही सुनीता लता के फ्लैट पर पहुंच गई।

दरवाजा सिर्फ बंद था चटकनी नही चढ़ी हुई थी। सुनीता के धक्का लगाते ही दरवाजा खुल गयी। सामने पलंग पर लता पड़ी हुई थी। वह दर्द के कारण बुरी तरह छटपटा रही थी। उसने धीरे से गर्दन मोड़कर सुनीता की ओर देखा-सुनीता बंता के पास आ गई। उसने सहारा देकर लता को उठाया और पकड़कर अपनी

गाड़ी की तरफ ले चंली। लता को गाड़ी में लिटा कर सुनीता ने उससे घर की चाबी ली और जाकर फ्लैट पर ताला लगाया और आकर गाड़ी में बैठ गई तथा अस्पताल की ओर चल दी।

सुनीता ने लता को एमरजेंसी में दाखिल किया। डॉक्टर ने

लता को चैक किया फिर बताया-"हालत सीरियस है...इनके पति कहाँ हैं?"

"वो तो बाहर गये हैं...आप मुझे बताईये क्या करना है?" सुनीता ने कहा।

"आपको एक फार्म भरना होगा...जच्चा या क्व्वा किसी को नुकसान हो सकता है।"

सुनीता ने फार्म भरके डॉक्टर को पकड़ा दिया।

"आप इनकी कौन हैं?" डाक्टर ने सुनीता से पूछा।

"मैं...मैं इनकी बहन हूँ।”

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