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राजहंस का नवीन उपन्यास
“ठीक है...देखिये कोशिश करना हमारा काम है..फल देना ईश्वर का।” डाक्टर ने सुनीता के कंधे को शपथपाते हुये कहा।
सुनीता आपरेशन थियेटर के सामने एड़ी हुई कुर्सी पर बैठ गई।
"आपका नाम मिसेज सुनीता है।” सुनीता के सामने खड़ी एक नर्स कह रही थी। “जी...जी हाँ।”
"आपके घर से फोन आया है।"
"क्या मेरे घर से फोन।"
“जी...चलिये।” नर्स ने कहा।
सुनीता नर्स के पीछे-पीछे चल दी। पास ही के कमरे में फोन था।
सुनीता ने फोन उठाया-"हैलो रामू काका क्या बात है?"
"गजब हो गया मालकिन।” रामू का स्वर भर्राया हुआ था।
"कुछ बोलो तो सही।”
“आप तुरन्त घर आयें।"
"परन्तु क्यों?"
“छोटे मालिक का एक्सीडेंट हो गया है।”
"क्या...एक्सीडेंट..कहाँ हैं वो?” सुनीता कांप गई परन्तु ये समय धैर्य खोने का नहीं था। अतः सुनीता ने अपने आपको सम्भाला।
"सफदरजंग अस्पताल में।”
"मैं वहीं पहुंच रही हूं।” सुनीता ने कहाँ और डाक्टर के पास चल दी परन्तु तभी कमरे से बच्चे के रोने की आवाज सुनीता के कानों में पड़ी। सुनीता के कदम जहाँ के तहाँ रुक गये ! बच्चे की आवाज को मतलब था कि बच्चा सकुशल है।
सुनीता ने अस्पताल से निकलकर सफदरजंग कल की ओर गाड़ी मोड़ दी। उसे कुछ भी नहीं पता था कि विकास का ऐक्सीडेंट कैसे हुआ और कैसी हालत है।
जब सुनीता अस्पताल पहुंची तब तक विकास को होश नहीं आया था। सेठ जी व रामू दोनों ही विकास के पास थे। सेठजी ने सुनीता को देखा तो अपना धैर्य खो बैठे और उनकी आंखों से टप-टप आंसू गिरने लगे।
"डैडी, आप ही धैर्य खो बैठेंगे तब मेरा क्या होगा?” सुनीता ने श्वसुर को समझाया।
"बेटी, समझ में नहीं आता भगवान किस जन्म का बदला ले रहा है।'
"ये सब ग्रह दशा है...फिर आपका बेटा स्पीड भी तो काफी
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रखता है उसी का फल है..ईश्वर ने चेतावनी दी है।” कहकर सुनीता डाक्टर के पास गई।
“डाक्टर क्या अधिक चोट आई है?”
"आप मरीज की...।"
"पली।"
"ओह...देखिये चोट अधिक नहीं है...परन्तु बेहोशी है...हमने, सब चैक कर लिया है, कहीं कोई चोट नहीं है...कमाल की बात है...इतना सीरियस ऐक्सीडेंट होने के बाद भी कहीं चोट नहीं।"
“सब ईश्वर की लीला है।” अनायास ही सुनीता के दोनों हाथ जुड़ गये।
सुनीता ने अपने श्वसुर को बताया कि चोट नहीं है सिर्फ बेहोशी हैं तब उन्हें चैन आया। सुनीता ने रामू काका से अपने घर मुकेश को फोन करवाया और यह भी कहा कि सके पापा को, कुछ भी पता न चले।
डाक्टर विकास को होश में लाने की कोशिश कर रहे थे। उसके पास ही सुनीता वे उसके श्वसुर बैठे थे।
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