सामाजिक >> अजनबी अजनबीराजहंस
|
|
राजहंस का नवीन उपन्यास
सुनीता लता को चाय लाते देखकर बोली-“अरे तुम तो तकल्लुक में लग गई।”
“नहीं दीदी ये तो अपना फर्ज है।"
"तब तो पीनी ही पड़ेगी।” चाय का कप उठाकर मुंह से लगाते हुये सुनीता ने कहा।
दोनों ने चाय पीनी शुरू कर दी। चाय के बाद सुनीता ने घड़ी में समय देखा...काफी समय हो गया था। सुनीता ने पर्स से कुछ रुपये निकाले और लता की तरफ बढ़ाये।
"लता ये रखो तुम्हारे काम आयेंगे।”
"नहीं दीदी इनकी जरूरत नहीं है।”
"अच्छा लता अब मैं चलती हैं...तुम कोठी आना।”
“नहीं दीदी मैं कोठी पर नहीं आऊंगी।”
"क्यों?"
"सेठ जी को मेरे विषय में कुछ भी पता नहीं है...मैं नहीं चाहती कि सेठ जी मुझे इस रूप में देखें।”
“ठीक है मैं ही आऊंगी।" सुनीता ने कहा और चल पड़ी। उसे चिन्ता थी कहीं विकास घर में आ गया हो।
आज विकास का दिमाग काफी परेशान था। उसे आज पच्चीस हजार रुपया रूबी को देना था। शुरू की डिमाण्ड पच्चीस हजार थी तो इसके बाद क्या होगा यही सोचकर विकास परेशान था...दूसरी ओर जग्गा का जो दिन-प्रतिदिन अपनी किल्लत बढ़ाये जा रहा था। विकास चक्की के पाटों की तरह रूबी वे जग्गा के चंगुल में फंस गया था और उसमें से निकलने का कोई रास्ता विकास को दिखाई नहीं दे रहा था।
विकास आज जल्दी ही तैयार हो गया। विकास को तैयार देख सुनीता आश्चर्य में रह गई। अभी सिर्फ साढ़े आठ ही बने थे। सुनीता ने विकास से पूछा-
“अरे आप आज इतनी जल्दी तैयार हो गये?"
“हो आज कुछ जल्दी जाना है।"
"ऐसा भी क्या जरूरी काम है..आफिस तो दस बजे ही खुलेगा।"
"सुनीता तुम मेरे हर काम में टांग मत अड़ाया करो।” विकास को गुस्सा आ गया था।
"अरे नाश्ता तो करते जाइये।”
"नाश्ते की कोई इच्छा नहीं है।"
"नहीं घर से भूखे कभी नहीं निकलना चाहिये।” कहकर सुनीता रसोई घर की तरफ चल दी। विकास ने देखा कि बिना नाश्ता कराये सुनीता जान नहीं छोड़ेगी तो सीधा जाकर डायनिंग टेबल पर पहुंच गया।
कुछ ही देर बाद सुनीता नाश्ता ले आई। विकास ने नाश्ता करना शुरू किया और जल्दी ही नाश्ते से उठ गया और फिर वह, सुनीता से कुछ कहे बिना ही तीर की तरह निकल गया।
विकास की गाड़ी बैंक की दिशा में जा रही थी। उसने सोच लिया था आज तो रूबी को पैसा देना ही है। विकास ने बैंक से रुपया निकाला और रूबी के घर की तरफ चल दिया वह नहीं चाहता था रूबी उसके घर या आफिस में रुपया मांगने आये पर। वह तुरन्त ही रूबी से पीछा छुड़ाना चाहता था।
जल्दी ही विकास, रूबी के घर पर पहुंच गया। रूबी के घर के दरवाजे बन्द थे। विकास की उंगली कालबैल पर दबाव डालने लगी। अन्दर घंटी की आवाज गूंज गई। किसी के चलने की आवाज सुनाई दी। फिर दरवाजा खोलते ही अगले ही पल एक बूढ़ी औरत सामने खड़ी थी।
"किससे मिलना है?"
“मिस रूबी हैं।"
"आप।”
"मेरा नाम विकास है।"
|