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राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

"तुम्हारी पत्नी के जेवर तो होंगे...विकास पत्नी भी तुम्हारी बहुत खूबसूरत है। जग्गा कहता हुआ अन्दर की ओर चल दिया।

जग्गा अलमारी की चाबी ढूंढने के लिये जैसे ही मुड़ा विकास ने जग्गा पर छलांग लगा दी। आज उसने दृढ़ निश्चय कर लिया था अब वह जग्गा को अपने ऊपर हावी नहीं होने देगा। अगले ही पल दोनों आपस में गुत्थमगुत्था हो गये।

मुकेश भी कमरे में पहुंच चुका था परन्तु उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे।

अचानक जग्गा ने विकास को धक्का दिया तो विकास दूर जा पड़ा परन्तु तभी मुकेश ने जग्गों पर छलांग लगा दी। जग्गा अपने को सम्भाल नहीं पाया था-"तो तुम भी यहाँ हो।” जग्गा के मुंह से निकला।

मुकेश अभी भी जग्गा से उलझा हुआ था परन्तु मुकेश ये नहीं जान पाया की जग्गा एक हाथ से जेब से पिस्तौल निकाल चुका है। उसे जब पता चला जब जग्गा ने पिस्तौल मुकेश की कनपटी से सटा दी-‘मिस्टर, अब जरा भी गलत हरकत की तो गोली अन्दर दम बाहर।”

मुकेश सहम गया पिस्तौल देखकर, और विकास भी चौंक उठा।

उधर सुनीता जब लता को लेकर चली तो लता ने कुछ भी नहीं पूछा परन्तु जब उसने गाड़ी को विपरीत दिशा में जाते देखा तो बोल पड़ी-“मेरा फ्लैट इधर नहीं है।”

"तुम्हारे फ्लैट पर जा ही कौन रहा है।"

"तब कहाँ चल रही हो?"

"अपनी कोठी पर।"

"क्या...नहीं-नहीं...मैं वहाँ नहीं जाऊंगी।"

“पागल मत बनो...मैंने डैडी से संब बात कर ली है।”

"क्या आपने सेठजी से सब बता दिया है?"

"हाँ और तुम्हें अपने पास रखने की अनुमति भी ले ली है।"

अब लता के पास कहने के लिये कुछ भी नहीं था परन्तु उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था और उसे लग रहा था आज कुछ होकर रहेगा।

सुनीता ने कोठी के अन्दर ले जाकर कार रोक दी तभी भागा। हुआ एक नौकर आया-“मेमसाहब, छोटे सरकार की किसी से लड़ाई हो रही है।"

"कहाँ?” सुनीता कांप उठी।

"आपके कमरे में।"

"कमरे में तुमने उसे पहले देखा है।"

"नहीं मेम साहब।"

"लता तुम अन्दर आओ...मैं. देखती हूं।” फिर नौकर से कहा-“इनको सब सामान अन्दर लाओ।"

सुनीता अपने कमरे की तरफ दौड़ी। लता भी बच्चे को नौकर को पकड़ा कर सुनीता के पीछे चल दी।

सुनीता के कमरे की बुरी हालत थी और सारा सामान तितर-बितर था। मुकेश के माथे से खून बह रहा था और विकास जग्गा से उलझा हुआ था तभी जग्गा ने विकास को उठा कर दूर पटक दिया और पिस्तौल, निकाल ली।

"अब अपने भगवान को याद कर लो...अब मैं तुम्हें जिन्दा नहीं छोडूंगा।"

जग्गा ने पिस्तौल का ट्रेगर दबा दिया परन्तु तभी चीखती हुई लता विकास से चिपट गई-“न...हीं..."

जग्गा दूसरी गोली चला ही रहा था कि पिस्तौल उसके हाथ से निकल गई। उसने चौंक कर देखा सामने दरवाजे में पुलिस इंस्पेक्टर खड़ा था।

लता की चीख के साथ ही सुनीता भी उधर झपटी परन्तु तब तक काम हो चुका था। गोली लता के शरीर में घुस गई थी और लता को लाल-लाल खून धरती पर गिर रहा था।

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