स्वास्थ्य-चिकित्सा >> आदर्श भोजन आदर्श भोजनआचार्य चतुरसेन
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प्रस्तुत है आदर्श भोजन...
6. दूध
दूध हमारा आदर्श भोजन है। इसका द्रव-विभाग केले के ही समान है। इसमें प्रकृति ने ऐसी उत्तम रीति से अन्य द्रव मिला दिए हैं कि उससे अन्य रीति से हम मिला ही नहीं सकते। बकरी का दूध पाचक तथा भैंस का पुष्टिकारक होता है। दूध एक या दो उबाले देकर घूंट-घूंट करके थोड़ा-थोड़ा पीना चाहिए, जिससे मुंह की लार से घुलकर उसका स्टार्च शर्करा में परिवर्तित हो जाए।
यदि शुद्धतापूर्वक दुहने की उत्तम व्यवस्था हो तो धार से दूध पीना चाहिए। उसमें एक प्रकार के जीवित कीटाणु होते हैं जिन्हें विटामिन कहते हैं। उनसे शरीर में तुरन्त स्फूर्ति और जीवन मिलता है। ये अमूल्य कीटाणु धारोष्ण दूध को छोड़ और किसी अन्य खाद्य में नहीं मिलते। बच्चा माता के दूध में इन्हें सर्वोत्तम रीति से प्राप्त करता है। वाकला, मटर, लोबिया आदि की ताज़ी फलियों में भी कुछ विटामिन पाए जाते हैं।
लोगों का खयाल है कि दूध में चीनी डालने से वह जल्द हजम होता है। परन्तु चीनी मिला दूध यदि घूंट-घूंटकर पिया जाए तो चीनी के संयोग से उसमें एक ऐसी तीक्ष्णता आ जाती है, जिससे मुंह की लार अधिक परिमाण में उसमें घुल जाती है। परन्तु यह न भूलना चाहिए कि सफेद चीनी को वैज्ञानिक मैदे की भांति दूसरा विष बताते हैं और उनका कहना है कि यह जितनी ही दानेदार होगी, उतनी ही हानिकारक भी होगी। चीनी से गुड़ या गन्ने का रस अच्छा है, क्योंकि उसमें सब धातुखार विद्यमान हैं; जो सफेद चीनी से उसी प्रकार निकाल फेंके जाते हैं, जैसे गेहूं के मैदे से उसकी भूसी। दानेदार चीनी का एक खतरनाक प्रभाव यह है कि वह आमाशय से लेकर छोटी आतों तक कहीं भी हज़म नहीं होती। इसके कण पानी में घुलकर भी इतने बड़े रहते हैं कि यह घोल किसी आंत या आमाशय की झिल्ली में होकर नहीं छनता; केवल आंत में जाकर बड़ी आंत की झिल्ली में, जहां बड़े छेद होते हैं, वह घोल छनकर हज़म होता है। यही कारण है कि उससे बड़ी आंत में बड़ी रगड़ उत्पन्न होती है या सोजिश उत्पन्न हो जाती है। इसी स्थान पर नाभि के दोनों ओर हमारी जननेन्द्रिय के केन्द्र हैं, उन पर इसका कुप्रभाव पड़ता है। या तो स्वप्नदोष होने लगता है, या कब्ज हो जाता है। या पेशाब में चीनी आने लगती है और मधुमेह हो जाता है। यदि घी, चीनी और चावल मिलाकर खाया जाए, जैसे देहातों में आम रिवाज है तो आंव, खून के दस्त शुरू होने का भारी अंदेशा रहता है। बचपन में अवश्य आमाशय से एक ऐसा रस निकलता है जिसमें चीनी को घोलने की शक्ति है, पर आयु बढ़ने के साथ उसकी वह सामर्थ्य नष्ट हो जाती है। हां, ब्रह्मचारी पुरुष में चीनी को पचाने की शक्ति अधिक देर तक रहती है। कमजोर आदमी को तो मीठा खाते ही छाती में जलन होने लगती है। चीनी का सबसे भारी प्रभाव यह है कि वह शरीर में तुरन्त गरमी उत्पन्न करती है। इसीसे हमारे देश में थके-हारे अतिथि को, जो धूप और गरमी में चलकर आया है, शरबत पिलाने का रिवाज है। यह एक मार्के की बात है कि भारत में दुनिया के पांचवें हिस्से की आबादी है, पर वह तिहाई हिस्सा चीनी खर्च करता है। हिन्दुओं में मिठाई खाने का भारी प्रचार है। हर शहर में हलवाई भांति-भांति की मिठाइयां बनाते हैं। ब्याह-शादी तथा मेहमानों की खातिर तो बिना मिठाई के पूरी हो ही नहीं सकती। कदाचित् भारत की इतनी अधिक मृत्यु-संख्या के मूल कारणों में एक चीनी का उपयोग भी है। बच्चे तो खासतौर पर अधिक मिठाई खाकर ही जिगर बढ़ जाने के असाधारण रोग से मर जाते हैं। यूरोप में बच्चों को कहीं भी दूध में चीनी नहीं दी जाती। बच्चों को दूध में चीनी दी जानी चाहिए भी नहीं। छुहारे, किशमिश या खजूर उन्हें दिए जा सकते हैं।
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