स्वास्थ्य-चिकित्सा >> आदर्श भोजन आदर्श भोजनआचार्य चतुरसेन
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प्रस्तुत है आदर्श भोजन...
5. मेवा और फल
मेवों में बादाम को सबसे अधिक शक्तिवर्धक कहा जाता है। इसमें प्रोटीन 28 प्रतिशत, चर्बी 50 प्रतिशत और स्टार्च 15 प्रतिशत है। धातुक्षार भी इसमें यथेष्ट है। इसके मुकाबले की यदि कोई चीज मेवों में है तो वह मूंगफली है। इसमें प्रोटीन सब वनस्पतियों से अधिक 31 प्रतिशत और चर्बी बादाम से कुछ ही कम अर्थात् 48 प्रतिशत है, थोड़ा स्टार्च और पचाने के लायक धातुक्षार है। परन्तु मूंगफली भुनी नहीं खानी चाहिए। इससे उसके खाने का पूरा लाभ नहीं उठाया जा सकता है। उसे खूब चबाकर खाना चाहिए, जिससे मुंह की लार में उसका स्टार्च घुलकर शर्करा में परिणत हो जाए। बिना भुनी मूंगफली का प्रोटीन भी शीघ्र हज़म होता है तथा भुनी भी खाई जाए तो खून तो बनेगा पर चर्बी उसकी वही प्रभाव करेगी, जो घी खाने से होता है। जो भाग उसका चिकनाई का पच जाएगा, शक्ति देगा; शेष दस्त लाएगा और मेदे को साफ रखेगा। मूंगफली को भून लेने की अपेक्षा पानी में भिगोकर तथा उबालकर खाना अधिक उत्तम है। उसके दाने का सुर्ख छिलका भी यदि खाया जाए तो हानि नहीं; वह दस्त साफ लाएगा।
दूसरे मेवों में पिस्ता, अखरोट, गोला, चिलगोजा व चिरौंजी हैं। इनमें प्रोटीन कम और चर्बी का भाग अधिक है तथा स्टार्च भी अधिक है। इसलिए इन्हें खूब चबाकर खाना चाहिए। छुहारा, किशमिश आदि में फलों की शर्करा अधिक है, जो स्टार्च की शक्कर से अधिक लाभदायक है। शरीर को बनाने में किशमिश बहुत लाभदायक है। विशेषकर बच्चों के लिए।
फल
फलों में 80 या 90 प्रतिशत जल है। इसलिए फल अल्प भोजन और अधिक धातुखार रखते हुए सूक्ष्म आहार बनाते हैं। इनमें अधिकतर फलों की शर्करा और धातुखार का भाग होता है; प्रोटीन बहुत कम, एक या दो प्रतिशत भाग। अंगूर में स्ट्रिकिया नामक एक शक्तिवर्धक तत्त्व होता है। अंगूर रोगी और बच्चों के शरीर को बनाने तथा बिगड़े हुए स्वास्थ्य को ठीक करने में अपूर्व है। अंगूर में लोहे का भाग अधिक होने से वह रक्तवृद्धि करता है। अमरूद के बीज दस्तावर होते हैं परन्तु वे बिना पचे हुए ही निकल जाते हैं। कुछ फलों का प्रभाव जिगर पर होता है। उनसे चित्त प्रसन्न हो जाता है-जैसे नीबू संतरा, अनार आदि। आम सब फलों का राजा और महापुष्टिकर है, आंवला रसायन है तथा सर्वगुणसम्पन्न है। केला दूध के समान खाद्य पदार्थ है। इसमें दूध के समान ही 4 प्रतिशत प्रोटीन, 4 प्रतिशत चर्बी, 4 प्रतिशत स्टार्च है। शेष जल है। इसमें गोंद का भी भाग है। दिमागी काम करने वालों के लिए केला उत्तम आहार है। एक हरी छाल का केला एक घण्टे के लिए यथेष्ट है।
मूली, अदरख, नीबू नारंगी
हरी मटर, सेम आदि की तरकारियां भी उत्तम भोजन है। इनका प्रभाव पाचक यन्त्र पर तथा यकृत पर पड़ता है। फसल में नित्यप्रति सवेरे एक ताज़ी मूली खाना अत्यन्त पाचक है। यह साफ दस्त लाती है। खट्टे फलों में सेब, अमरूद, संतरा, अंगूर आदि भी हैं। खट्टे फलों के खाने के बाद दूध पीने से वह सरलता से पच जाता है।
छिलका और भूसा
सब फलों के छिलके पचनेवाले हैं। यही बात अन्न की भूसी के सम्बन्ध में भी है। चने के छिलके में फासफोरस का भाग ज्यादा है। इसी से पहलवान कच्चे चने भिगोकर खाते हैं। एक गुणकारी नुसखा यह है कि भुने चने एक मुट्ठी प्रतिदिन प्रातःकाल खा लिये जाएं तो उस मनुष्य को कभी क्षय रोग नहीं होगा। दिल्ली के अन्तिम बादशाह ज़फर, प्रात: का नाश्ता दो तोला भुने चनों का करते थे। पर चने खुश्क हों।
गेहूं की भूसी भी ऐसी ही अमूल्य है। यदि बिना छने गेहूं का मोटा पिसा आटा लेकर उसकी रोटी बनाई जाए तो उसका सबका सब खून बन जाएगा। भूसी में पचाने के खार और फासफोरस 2 प्रतिशत होते हैं। हमारे देश में लगभग 5 करोड़ टन गेहूं की खपत प्रतिवर्ष है, जिसमें दो प्रतिशत फासफोरस का, जो उसकी भूसी में होता है, जोड़ 8 लाख टन होता है। हम उसे फेंक देते हैं। फासफोरस को पेटेंट औषध के रूप में हम खरीदते हैं, वह 3 रुपया औंस के हिसाब से मिलता है। 8 लाख टन फासफोरस का मूल्य करोड़ों रुपये के लगभग हुआ। इस महती रकम को हम भूसी के साथ फेंक देते हैं। यह भी ज्ञात होना चाहिए कि भूसी के साथ जो यह तत्त्व आपके शरीर में जाएगा, उसका मुकाबला बाजार का कृत्रिम खार नहीं कर सकता। यही बात चावल के लाल आवरण की भी है।
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