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नाटक-एकाँकी >> दरिंदे

दरिंदे

हमीदुल्ला

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 1987
पृष्ठ :138
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1454
आईएसबीएन :00000

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आधुनिक ज़िन्दगी की भागदौड़ में आज का आम आदमी ज़िन्दा रहने की कोशिश में कुचली हुई उम्मीदों के साथ जिस तरह बूँद-बूँद पिघल रहा है उस संघर्ष-यात्रा का जीवन्त दस्तावेज़ है यह नाटक


शेर : माँगपत्र दिया ?
वि.दा. : माँग पत्र दिया होगा। सत्ता ने आश्वासन दिया होगा। और ये बिचारे विश्वास लेकर लौट आये। यही हुआ होगा।
शेर : सत्ता से मिले ?
भालू : हम डेपूटेशन लेकर सत्ता के पास गये। (भालू दायें हाथ का बिगुलबनाकर मुँह से बिगुल की आवाज़ निकालता चलता है।
शेर और दार्शनिक उसके पीछे-पीछे चलते हैं। लोमड़ी सत्ता के रूप में मंच के बायीं ओर कुरसी पर खड़ी हो जाती है। शेष तीन पात्र डेपूटेशन की तरह एक के पीछे एक चलते सत्ता के सामने आते हैं। यही क्रम तीन बार, मंच के बीच, फिर दायीं ओर उसके बाद बायीं ओर। बिगुल की आवाज़ क्रमशः धीमी होती जाती है, जो निराशा की प्रतीक है।)
लोमड़ी (सत्ता) : (सत्ता के हाव-भाव में) क्या चाहते हो ?
भालू : हम चाहते हैं, दोनों पक्षों के आपसी फायदे का शब्दहीन समझौता।
लोमड़ी : सबको बराबरी का अधिकार मिलेगा।
शेर : कब मिलेगा।
लोमड़ी : एक दिन मिलेगा।
भालू : वह दिन कब आयेगा ?
लोमड़ी : एक दिन आयेगा।
वि.दा. : तब क्या करें ?
लोमड़ी : इन्तज़ार।

(प्रकाश लुप्त। पार्श्वसंगीत। बिगुल। मंच के बीच चौकी पर गोलाकार प्रकाश पुंज। लोमड़ी ‘सत्ता’ के रूप में चौकी पर खड़ी है। शेष तीन पात्र उसके सामने आते हैं।)

वि.दा. : वो दिन आया ?
लोमड़ी : एक दिन आयेगा।
शेर : आखिर वो दिन कब आयेगा। ?
लोमड़ी : परिवर्तन आ रहा है।
भालू : तब तक क्या करें ?
लोमड़ी : इन्तज़ार

(प्रकाश लुप्त होकर मंच के बायीं ओर पहले लोमड़ी का सत्ता के रूप में प्रवेश। वह स्टूल पर खड़ी हो जाती है। उसके बाद शेष तीन पात्रों का बिगुल की ध्वनी के साथ प्रवेश।)

शेर : वो दिन आ गया ?
लोमड़ी (सत्ता) : परिवर्तन जादू का खेल नहीं है। वह धीरे-धीरे आता है।
भालू : हम टूट रहे हैं।
लोमड़ी : समस्याएँ व्यापक और जटिल हैं। उनका समाधान धीरे-धीरे किया जा रहा है।
वि.दा. : समाधान होने तक क्या करें।
लोमड़ी : समाधान होने का इन्तज़ार।
शेर : अब तक क्या किया ?
लोमड़ी : इन्तज़ार।
भालू : और क्या करें ?
लोमड़ी : इन्तज़ार।

(प्रकाश बढ़कर मंच के दायें कक्ष को समान रूप से आलोकित करता है। बिगुल की आवाज़। लोमड़ी सत्ता की शक्ल में स्टूल से उतरकर सामने कुरसी पर आकर खड़ी हो जाती है। शेष तीन पात्र एक के पीछे एक हारे-थके, टूटे हुए से, भारी कदमों के साथ लोमड़ी की तरफ़ बढ़ते हैं। इस एकांश में ‘सत्ता’ के सामने कभी भालू, कभा शेर और कभी दार्शनिक घुटनों के बल बैठ जाते हैं।)

भालू : अब क्या करें ?
लोमड़ी (सत्ता) :इन्तज़ार।
वि.दा. : तुमने क्या किया ?
लोमड़ी (सत्ता) : हम मानते हैं, हमने गलतियाँ की हैं।
शेर : हमें भूख लगी है।
लोमड़ी : घर जाओ।
भालू : क्या खायें ?
लोमड़ी : हवा खाओ। हवा पर कोई राशन नहीं है।
वि.दा. : हमें ज़रूरत है।
लोमड़ी : हमें भी ज़रूरत है
शेर : तुम्हें किसकी ज़रूरत है ?
लोमड़ी : एक ऐसे अर्थशास्त्री की जो रातो-रात अमीरी-गरीबी का फ़र्क़ मिटा दे।
भालू : वह अर्थशास्त्री कब आयेगा ?
लोमड़ी : एक दिन आयेगा।
वि.दा. : वो दिन कब आयेगा ?
लोमड़ी : जब अर्थशास्त्री आयेगा।
भालू : तब तक क्या करें ?
लोमड़ी : इन्तज़ार।

शेर : अब और इन्तज़ार की ताब नहीं रही।
लोमड़ी : धैर्य रखो। तुम सबमें बड़ा धैर्य है। आत्मविश्वास रखो। तुम सबमें बड़ा आत्मविश्वास है। तुम ईश्वर में विश्वास करते हो ?
वि.दा. : जिस तरह यह सब खेल चल रहा है, उससे यह विश्वास और दृढ़ हो जाता है कि ईश्वर ज़रूर है, जो यह सब चला रहा है। यह किसी इनसान के बस की बात नहीं।
लोमड़ी : तो विश्वास लेकर जाओ। हम तुम्हें विश्वास दिला सकते हैं। सुन्दर भविष्य की आशाएँ। आशा लेकर जाओ। हम तुम्हें आशा दे सकते हैं। अपने साथ विश्वास और आशा लेकर जाओ। और हमेशा याद रखो, समस्याओं का हल धीरे-धीरे होता है।। परिवर्तन धीरे-धीरे आता है। धीरे-धीरे, धीरे-धीरे, धीरे-धीरे...लोमड़ी : हमें भी ज़रूरत है
शेर : तुम्हें किसकी ज़रूरत है ?
लोमड़ी : एक ऐसे अर्थशास्त्री की जो रातो-रात अमीरी-गरीबी का फ़र्क़ मिटा दे।
भालू : वह अर्थशास्त्री कब आयेगा ?
लोमड़ी : एक दिन आयेगा।
वि.दा. : वो दिन कब आयेगा ?
लोमड़ी : जब अर्थशास्त्री आयेगा।
भालू : तब तक क्या करें ?
लोमड़ी : इन्तज़ार।

शेर : अब और इन्तज़ार की ताब नहीं रही।
लोमड़ी : धैर्य रखो। तुम सबमें बड़ा धैर्य है। आत्मविश्वास रखो। तुम सबमें बड़ा आत्मविश्वास है। तुम ईश्वर में विश्वास करते हो ?
वि.दा. : जिस तरह यह सब खेल चल रहा है, उससे यह विश्वास और दृढ़ हो जाता है कि ईश्वर ज़रूर है, जो यह सब चला रहा है। यह किसी इनसान के बस की बात नहीं।
लोमड़ी : तो विश्वास लेकर जाओ। हम तुम्हें विश्वास दिला सकते हैं। सुन्दर भविष्य की आशाएँ। आशा लेकर जाओ। हम तुम्हें आशा दे सकते हैं। अपने साथ विश्वास और आशा लेकर जाओ। और हमेशा याद रखो, समस्याओं का हल धीरे-धीरे होता है।। परिवर्तन धीरे-धीरे आता है। धीरे-धीरे, धीरे-धीरे, धीरे-धीरे...

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