योग >> योग निद्रा योग निद्रास्वामी सत्यानन्द सरस्वती
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योग निद्रा मनस और शरीर को अत्यंत अल्प समय में विक्षाम देने के लिए अभूतपूर्व प्रक्रिया है।
मन का प्रशिक्षण
योग निद्रा का अर्थ है - सजगता के साथ सोना, अर्थात् नींद में भी सजगता, चेतनता बनी रहे। मन की अनेक अवस्थाओं में से यह मन की जाग्रत एवं सुषुप्ति के बीच की एक अवस्था है जहाँ नींद में भी व्यक्ति का बौद्धिक मन कार्यरत रहता है। लेकिन धीरे-धीरे जब वह ढीला पड़ जाता है तो चेतन एवं अवचेतन मन के द्वार खुल जाते हैं तथा व्यक्ति तनावरहित हो जाता है और अपने सत्य स्वरूप को जानने में समर्थ हो जाता है।
योग निद्रा द्वारा व्यक्ति के मन को बदला जा सकता है। रोगों की रोकथाम कर उन्हें दूर किया जा सकता है। व्यक्ति की स्वयं की प्रतिभा का विकास किया जा सकता है। चेतन एवं अवचेतन मन मानव की सर्वाधिक शक्ति के केन्द्र रहे हैं जिन्हें साधारण योग निद्रा के अभ्यास से एकाग्र कर मानव मन की गहराईयों में प्रवेश किया जा सकता है।
मनुष्य का अवचेतन मन सर्वाधिक आज्ञाकारी शिष्य की भाँति है। उसे जो आज्ञा दी जाती है वह उसे तुरन्त करने को तत्पर रहता है। यदि योग निद्रा का अभ्यास व्यक्ति के जीवन का अंग बन जाये तो वह अपने चेतन मन को बाँध सकने में समर्थ हो सकता है। यदि चेतना ही वश में हो जाये तो मन और बुद्धि स्वयं उसका अनुकरण करने लगते हैं।
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