योग >> योग निद्रा योग निद्रास्वामी सत्यानन्द सरस्वती
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योग निद्रा मनस और शरीर को अत्यंत अल्प समय में विक्षाम देने के लिए अभूतपूर्व प्रक्रिया है।
सृजनात्मकता का आधार
योग निद्रा एक तांत्रिक अभ्यास की साधना है, जहाँ मन को वश में करना सहज हो जाता है। मन को वश में करने का तात्पर्य स्वभाव के विपरीत कोई कार्य करने अथवा जबरदस्ती आदत बदलने से नहीं है। इसस ता मन के भीतर द्वेष और घृणा की अग्नि प्रज्वलित हो जायेगी। यही कारण है कि कुछ लोग जो बलात् धार्मिक आवरण में अपने स्वभाव को बदलने की चेष्टा करते हैं, वे उन्माद-ग्रस्त हो जाते हैं। योग निद्रा में मन को उसके इच्छानुकूल धीरे-धीरे संयत तरीके से साधा जाता है।
पिछली शताब्दी से मनोवैज्ञानिक पुकार-पुकार कर कह रहे हैं कि अपने अंदर की बुराई (अभिव्यक्ति) को स्वीकार करके ही व्यक्ति उसे दूर कर सकता है, घृणा करके नहीं। लेकिन इस अभिव्यक्ति का माध्यम कौन-सा हो? कैसे इसे दूर करें, कैसे इससे पीछा छुड़ायें? यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है। सीधा सा उपाय है, मन की गहराईयों में पहुँचकर इसे जड़ से काट दो। यह अपने आप समाप्त हो जायेगी।
मनुष्य का अवचेतन मन ही उसके सामान्य अथवा असामान्य व्यवहार का कारण है। चेतन-अवचेतन मन का राज्य ही जीवन में उतार-चढ़ाव का कारण रूप है। मन को दबाने से व्यवहार में कोई अंतर नहीं आयेगा, क्योंकि जब तक पेड़ की जड़ पर प्रहार नहीं किया जायेगा, पेड़ हरा-भरा ही रहेगा। टहनियाँ काटने से पेड़ कभी नहीं सूखता। अतः मन को साधना है तो अवचेतन को साधना आवश्यक है। योग निद्रा का अभ्यास मन के भीतर की गहराईयों में डुबकी लगाकर अपने वास्तविक स्रोत को जानने एवं स्वीकार करने की एक सरल सी प्रक्रिया है। यह ज्ञान मानव स्वभाव को स्वयं ही बदल देता है।
मनुष्य इन्द्रियों का दास है। बाह्य इन्द्रियाँ ही उसके कार्यकलापों की आधार हैं। जब यह योग निद्रा का अभ्यास मन के भीतर तक जाता है तब उसकी सृजनात्मक शक्ति का विकास होता है। हिन्दू धर्म में योग निद्रा का प्रतीक भगवान् नारायण की शेष शय्या मानी गई है। भगवान् विष्णु क्षीरसागर में शेष शय्या पर लेटे हैं। शेष नाग के फन उन पर छाया किये हुए हैं। लक्ष्मी जी उनके चरण दबा रही हैं। विष्णु जी की नाभि से एक कमल खिल रहा है जिस पर भगवान् ब्रह्मा जी बैठे हैं। अर्थात् योग निद्रा में मनुष्य की स्थिति इसी शेष शय्या का प्रतीक है। वहाँ अवचेतन भगवान् विष्णु है, जो कम्बल रूपी सर्प पर सोया हुआ है। इस विस्तृत कल्पना के साथ योग निद्रा का अभ्यास व्यक्ति को सुख और शान्ति प्रदान करता है।
इसलिए जव योग निद्रा का अभ्यास किया जाये तो व्यक्ति को तनाव मुक्त होकर शरीर को एकदम ढीला छोड़ देना चाहिए, क्योंकि यह केवल चित्त को एकाग्र करने का अभ्यास नहीं है। यदि निर्देशक की आज्ञा का पूर्णतः पालन किया जाये तो व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को पहचान कर उसका विकास कर सकता है। यह जरूरी नहीं है कि निर्देशक के बताये प्रत्येक शब्द का अक्षरशः पालन हो, हाँ यह जरूरी है कि व्यक्ति निर्देशक के बताये प्रत्येक शब्द का अनुकरण न कर सके तो केवल आवाज को ही सुनता रहे।
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