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योग निद्रा

स्वामी सत्यानन्द सरस्वती

प्रकाशक : योग पब्लिकेशन्स ट्रस्ट प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :320
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 145
आईएसबीएन :0

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योग निद्रा मनस और शरीर को अत्यंत अल्प समय में विक्षाम देने के लिए अभूतपूर्व प्रक्रिया है।


परिवर्तन का रहस्य


योग निद्रा के माध्यम से व्यक्ति केवल विश्राम-लाभ ही नहीं करता, बल्कि अपने अंदर निर्माण एवं सुधार की क्रिया का प्रत्यारोपण भी करता है। प्रत्येक अभ्यास के साथ व्यक्ति अपनी आदतों तथा संस्कारों को भस्म कर नयी चेतना, नये विचारों को जन्म देता चलता है। यह अभ्यास अन्य अभ्यासों से अधिक समय तो लेता है, लेकिन इसका प्रभाव अधिक देर तक स्थायी रहता है।

इस संदर्भ में मैं अपने एक व्यक्तिगत अनुभव का उल्लेख करना उचित समझता हूँ। मैंने इसका प्रयोग अपराधी मनोवृत्ति वाले भयंकर कैदियों पर किया था। सन् 1968 में जब मैं विदेश प्रवास पर था तो मुझे एक जेल में कैदियों को योग सिखाने के लिए आमंत्रित किया गया। जैसे ही मैंने बरामदे में कदम रखा, लगभग 600 कैदियों ने मुझे चारों तरफ से घेर लिया। वे मुझ पर हँस रहे थे। कोई हूटिंग कर रहा था, कोई मेरी धोती खींच रहा था और एक ने तो मुझे सिगरेट तक पीने को दी। उनके हृदय में एक संन्यासी के लिए भी आदर और सम्मान नहीं था। फिर दूसरों के लिए कुछ भी अपेक्षा करना व्यर्थ था।

मैंने समझ लिया कि इस स्थिति में उन्हें मैं योग नहीं सिखा सकता। अतः मैंने योग निद्रा का प्रयोग करने का निश्चय किया। मैंने उनसे कहां कि वे सब सीधे शान्त होकर लेट जाएँ और अभ्यास के लिए तैयार हो जाएँ। लेकिन वे स्थिर नहीं रह सके। वे लेटे हुए भी आपस में एक-दूसरे को छेड़ते रहे, खींचा-तानी करते रहे, चिल्लाते और झगड़ते रहे तथा ऐसी अशान्तिदायक स्थिति पैदा करते रहे कि मैं आधे घण्टे तक केवल यही दोहराता रहा, "कृपया शान्त हो जायें और आँखें बंद कर लें।" मैं इंतजार करता रहा कि वे सब शान्त हो जायें, पर वे शान्त नहीं हुए और मैं वापस अपने होटल में आ गया।

दूसरे दिन मैंने शिविर के निरीक्षक को फोन करके कह दिया कि अब मैं नहीं आऊँगा। लेकिन निरीक्षक ने मुझसे विनयपूर्वक प्रार्थना करते हुए कहा, "स्वामीजी, आप अवश्य आयें, आपके आने का उन पर भारी असर हुआ है। वे तब से शान्त हैं जब से आप उन्हें छोड़कर गये हैं और वे मुझसे अनुरोध कर रहे हैं कि स्वामीजी को फिर से बुलाओ।"

जब मैं दुबारा जेल पहुँचा तो वे सभी कैदी शान्तिपूर्वक स्वयं लेटे हुए थे। जब मैंने उनसे कहा कि आप सब सूर्य नमस्कार के अभ्यास के लिए तैयार हो जायें तो वे बोले, "नहीं, हमें वही योग चाहिए जो आपने कल सिखाया था।" मैंने लगातार छ: दिनों तक योग निद्रा का अभ्यास कराया और उनके सिर से पैर तक बाहर और भीतर शरीर के एक-एक भाग में शान्ति की प्रेरणा भरते हुए उन्हें तनावमुक्त रहने का ज्ञान कराया। प्रतिदिन की रिपोर्ट से पता चलता रहा कि वे सब कैदी शान्त रहते थे और बहुत कम झगड़ते थे।

सातवाँ दिन विदाई का दिन था। वहाँ सभी उपस्थित थे। जब मेरे बोलने का समय आया तो मैंने वह सिगरेट का पैकेट बाहर निकाला और उनसे कहा, "प्रथम दिन आपने मुझे सिगरेट दी थी कि मैं इसे पिऊँ, अब मैं इसे आपके साथ पीना चाहता हूँ।" मैंने जैसे ही वह सिगरेट का पैकेट अपनी जेब से बाहर निकाला, वह आदमी दौड़ता हुआ आया और मुझसे क्षमा माँगते हुए बोला, “स्वामीजी, मैं आपसे बार-बार क्षमा चाहता हूँ। कृपया वह पैकेट मुझे वापस दे दीजिये।" वे कैदी जो एक हफ्ते पहले सामान्य व्यवहार से भी अपरिचित थे, अब योग निद्रा के प्रभाव से पूर्णतः बदल गये थे।

इस परिवर्तन का रहस्य क्या है? धर्मोपदेश, प्रार्थना, डाँट-फटकार, उपदेश? नहीं। केवल तनावों से मुक्ति और मानसिक शान्ति ही इस परिवर्तन का रहस्य है। जब कोई व्यक्ति तनाव में रहता है तो उसका व्यवहार अस्वाभाविक हो जाता है। वही व्यक्ति जब तनावशून्य स्थिति में रहता है तो उसका व्यवहार साधारण हो जाता है। वह जानता है कि वास्तविकता क्या है, सत्य क्या है। उसे यह भी पता होता है कि किस प्रकार का व्यवहार करना है, क्योंकि सही आचरण के लिए सत्य का ज्ञान आवश्यक है। और सत्य का ज्ञान तभी होता है जब व्यक्ति तनावरहित हो।

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