सदाबहार >> गोदान गोदानप्रेमचंद
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गोदान भारत के ग्रामीण समाज तथा उसकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है...
‘मैं कहाँ थी?’
‘तू बाजार गयी थी।’
‘तुम्हारी गोद में रोया नहीं?’
‘नहीं सिलिया, हँसता था।’
‘सच?’
‘सच!’
‘बस एक ही दिन खेलाया?’
‘हाँ एक ही दिन; मगर देखने रोज आता था। उसे खटोले पर खेलते देखता था और दिल थामकर चला जाता था।’
‘तुम्हीं को पड़ा था।’
‘मुझे तो पछतावा होता है कि नाहक उस दिन उसे गोद में लिया। यह मेरे पापों का दंड है।’
सिलिया की आँखों में क्षमा झलक रही थी। उसने टोकरी सिर पर रख ली और घर चली। मातादीन भी उसके साथ-साथ चला।
सिलिया ने कहा–मैं तो अब धनिया काकी के बरौठे में सोती हूँ। अपने घर में अच्छा नहीं लगता।
‘धनिया मुझे बराबर समझाती रहती थी।
‘सच?’
‘हाँ सच। जब मिलती थी समझाने लगती थी।’
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