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नारी विमर्श >> नारी कामसूत्र

नारी कामसूत्र

विनोद वर्मा

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :343
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 13567
आईएसबीएन :9788183615242

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काम को आत्मज्ञान की चरम सीमा तक ले जाना ही इस पुस्तक का ध्येय है


हाल के वर्षों में नारियों की मुक्ति के लिए तथा उनकी भूमिका के लिए संकीर्ण तथा रूढ़िवादी दृष्टिकोण से देखने के विरोध में कई आंदोलन हुए हैं। नारियों ने अपने ऊपर अतीत में किए गए अत्याचारों के विरोध में आवाज़ उठाई है। यह पुस्तक उसी दृष्टिकोण के आधार पर रची गई है तथा इसका मुख्य ध्येय नारियों को आत्मविश्वासी तथा शक्तिशाली बनाना है। वे नरों के लिए निष्क्रिय सामाजिक सहयोगी नहीं हैं और न ही काम-क्रिया में निम्न स्तर की भागीदार हैं। वे नरों के बराबर नहीं हैं और न ही नर उनकी बराबरी कर सकते हैं। वे दोनों एक-दूसरे से भिन्न तथा एक-दूसरे के पूरक हैं।
नारी-नर, दोनों एक-दूसरे के अभिन्न अंग हैं। एक-दूसरे के बिना वे दोनों अधूरे हैं। हमें यह भी समझना चाहिए कि यह आवश्यक नहीं कि नारियों का दमन तथा शोषण नरों द्वारा संगठित तथा वैधीकृत है। यह संपूर्ण व्यवस्था तथा इसका मौलिक आधार ही त्रुटिपूर्ण है, इसका दृष्टिकोण ही असंतुलित है। इसलिए समस्या का समाधान नरों से झगड़ा करने या उन्हें दोषी ठहराने में नहीं बल्कि अपनी सामाजिक व्यवस्था के दोषों को दूर करने में है। यह संपूर्ण व्यवस्था के दार्शनिक तथा मूलभूत आधार को बदलकर ही हो सकता है और उसके लिए नारियों-नरों, दोनों को ही आगे आने की आवश्यकता है।
इस विषय पर भी मेरा दृष्टिकोण स्वास्थ्य पर मेरे दृष्टिकोण के समान ही है। हमारे चारों ओर सदा ही रोग तथा संक्रमण मौजूद रहे हैं। स्वस्थ रहने का एक प्रमुख उपाय यह है कि अपनी शारीरिक तथा मानसिक शक्तियों को संतुलित रखा जाए। इस प्रकार हम स्वाभाविक विकारों से स्वयं को बचा सकते हैं तथा रोगों का बाह्य आक्रमण रोक सकते हैं। इसी प्रकार मेरा यह भी विश्वास है कि नारियों को हर ओर से स्वयं को शक्तिशाली बनाना चाहिए। हमें (नारी या नर, कोई सामाजिक दल या राष्ट्र-सभी को) यह याद रखना चाहिए कि हमारा शोषण तभी होता है जब हम स्वयं को शोषित हो जाने देते हैं। जिन वृक्षों की जड़ें गहरी होती हैं वे तूफ़ानों में आसानी से नहीं गिरते, वे धरती के दृढ़ हिस्से में पहुँचकर वहाँ अपनी जड़ें फैलाए होते हैं।

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