नारी विमर्श >> नारी कामसूत्र नारी कामसूत्रविनोद वर्मा
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काम को आत्मज्ञान की चरम सीमा तक ले जाना ही इस पुस्तक का ध्येय है
नारियों के अनेक पक्षों से संबंधित विस्तृत जानकारी हमारे प्राचीन चिकित्सा
साहित्य तथा आधुनिक रहन-सहन की परंपरा में उपलब्ध है। परंतु दुर्भाग्यवश यह
बिखरी हुई स्थिति में है तथा बढ़ते हुए औद्योगीकरण के प्रभाव से मौखिक परंपरा
का धीरे-धीरे विनाश हो रहा है। आज आवश्यकता इस बात की है कि ऐसे समस्त ज्ञान
का संकलन एक स्थान पर किया जाए ताकि विश्व के सभी लोग 'नारी-जाति' के लाभ के
लिए इसका उपयोग कर सकें, जो अंतिम रूप से समूची 'मानव-जाति' का कल्याण करे।
मैंने इस पुस्तक की रचना सूत्रों के रूप में प्रसिद्ध वात्स्यायन कृत
'कामसूत्र' की नकल में नहीं की है बल्कि इसलिए की है कि मैं इस प्राचीन
लेखन-शैली से बहुत प्रभावित हुई हूँ। मैं जिस रचना से सर्वाधिक प्रभावित हुई
वह है पातंजलि की 'योगसूत्र'। मैंने इसका अनुवाद किया है तथा सूत्रों पर
टिप्पणी लिखी है।
मेरा यह विचार है कि व्यावहारिक ज्ञान के प्रसार के लिए सूत्र-शैली
प्रभावशाली होती है। मनुष्य के जीवन में आनंद, हर्ष तथा अनुभव की गहनता
व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य पर निर्भर है। स्वास्थ्य व्यक्ति के आंतरिक
संतुलन तथा वातावरण पर निर्भर करता है। इसी कारण कायाकल्प, शारीरिक सुख तथा
आध्यात्मिक अनुभूतियों की प्राप्ति के लिए स्वास्थ्य के मौलिक सिद्धांतों का
इस पुस्तक में विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।
नारी परिवार का केंद्र बिंदु है। यही कारण है कि उसका उत्तरदायित्व उसके नर
सहभागी से बढ़कर है। दूसरी ओर उसे नरों की ओर अधिक देखभाल, सावधानी, समझ तथा
प्रदत्त विशेषाधिकारों की आवश्यकता है क्योंकि उसकी शारीरिक तथा मानसिक
स्थितियाँ सदा परिवर्तित होती रहती हैं तथा उस पर प्रजनन एवं मातृत्व का
अतिरिक्त उत्तरदायित्व होता है। इस पुस्तक को लिखने का एक अभिप्राय यह भी है
कि आत्म-चेतस नरों का नारी-जीवन के विभिन्न रूपों को समझने में मार्गदर्शन हो
सके नारी-नर के आपसी संबंधों में संतुलन, सुसंगति तथा परिपूर्णता आ सके। इसके
अतिरिक्त पुस्तक के अंतिम छह भाग काम-क्रिया के बारे में हैं। यह विषय भी
नारियों-नरों के लिए समान रूप से महत्त्वपूर्ण है।
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