नारी विमर्श >> नारी कामसूत्र नारी कामसूत्रविनोद वर्मा
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काम को आत्मज्ञान की चरम सीमा तक ले जाना ही इस पुस्तक का ध्येय है
इस पुस्तक के विषय को लेकर दो आधारभूत प्रश्न उठ सकते हैं। 'कामसूत्र' की
रचना दोबारा क्यों की जा रही है ? विशेष रूप से नारियों के लिए 'कामसूत्र'
तैयार करने का क्या अभिप्राय है ? जब वात्स्यायन ने अपने ग्रंथ की रचना की
थी, उस समय जीवन के प्रति अवव्याख्यावादी (रिडक्शनिस्ट) दृष्टिकोण का
अस्तित्व नहीं था। इसका अर्थ यह है कि उस समय के लोग विघटित रूप में यानी
अपने जीवन के शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, आर्थिक, काम-वासना तथा
आध्यात्मिक पक्षों को पृथक करके जीवन व्यतीत नहीं करते थे। इसलिए वात्स्यायन
का 'कामसूत्र' विशेष पूर्व-अनुमानित संदर्भो में रचा गया था जो अब बदल चुके
हैं। हमें इस विषय पर दूसरे 'कामसूत्र' की आवश्यकता है जो नई जीवन-शैली तथा
बदलते हुए समय के अनुसार हो। दूसरे प्रश्न का मेरा उत्तर यह है कि 'कामसूत्र'
का रचनाकार नर था तथा उसने अपनी रचना अधिकांशतः नरों को संबोधित करके रची थी।
पुस्तक में नारियों के विषय में वर्णन हैं परंतु वे एक बाह्य प्रेक्षक के
दृष्टिकोण पर आधारित हैं। आवश्यकता इस बात की है कि विषय का अध्ययन नारियों
के दृष्टिकोण से किया जाए, नारियों की समस्याओं, विशेषकर उनकी कामुकता से
संबंधित समस्याओं को विस्तार से समझा जाए।
इस प्रकार इस विषय पर दूसरी बार रचना करने की आवश्यकता मुख्यतः दो प्रमुख
कारणों से पड़ी। पहला कारण है, आधुनिक समाज के लोगों में संपूर्ण तथा हितमय
(होलिस्टिक) जीवन-शैली के प्रति सामाजिक चेतना जाग्रत करना तथा यह प्रदर्शित
करना कि काम-भावना उनके अस्तित्व का एक अलग भाग मात्र नहीं है बल्कि उनके
जीवन के अन्य पक्षों से संबंधित तथा उनसे जुड़ी हुई है। नारियों में होने
वाले महत्त्वपूर्ण शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक परिवर्तन उनके सामाजिक तथा
काम-व्यवहार से सीधे जुड़े हुए हैं। मासिक-धर्म का आरंभ तथा समाप्ति,
गर्भावस्था, प्रसव तथा प्रसव के बाद होने वाली कुछ प्रमुख घटनाएँ उसकी
शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक स्थिति में परिवर्तन लाती हैं। इसी कारण उसकी
काम-ऊर्जा तथा शक्ति में भी परिवर्तन आता है। वह प्रजनन संबंधी अनेक कष्टों
तथा जोखिमों को झेलती है तथा उसके पश्चात् मातृत्व के लिए उसे अपनी असीम
शक्ति तथा प्रयास लगाना पड़ता है। उसे अपने नारीत्व के विभिन्न पक्षों को
व्यवहार में लाने तथा उनका संचालन करने की कला सीखनी चाहिए ताकि उसकी
कामाभिव्यक्ति अविकल रहे और काम-ऊर्जा का निर्बाध प्रवाह होता रहे। इस पुस्तक
का उद्देश्य इस दिशा में नारियों का मार्गदर्शन करना तथा साथ ही उनके नर
सहयोगियों को उन्हें भली प्रकार समझने की प्रेरणा देना है।
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