नारी विमर्श >> नारी कामसूत्र नारी कामसूत्रविनोद वर्मा
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काम को आत्मज्ञान की चरम सीमा तक ले जाना ही इस पुस्तक का ध्येय है
संदर्भ व टिप्पणियाँ
इन धारणाओं के विवरण के लिए मेरी पुस्तक 'योग सूत्र ऑफ़ पातंजलि : ए
साइंटिफिक एक्सपोजीशन', १९९५, क्लैरियन बुक्स, नई दिल्ली। ए.एल. बाशम, 'वंडर
दैड वाज़ इंडिया', १९७१ संस्करण, फोंटाना बुक्स, लंदन, पृ. १७२ यह पुस्तक
ब्रह्मांडीय एकता के मौलिक विचारों पर आधारित है जिसका प्राचीन भारत में
विभिन्न विचारधाराओं द्वारा प्रतिपादन किया गया था। इस पुस्तक में
सांख्य-दर्शन के सिद्धांत भी प्रयुक्त किए गए हैं जो योग तथा आयुर्वेद को
तात्विक आधार प्रदान करते हैं। इस पुस्तक के विषय को भली-भाँति समझने तथा इसे
सुबोध बनाने के अभिप्राय से पाठकों को यह सुझाव दिया जाता है कि वे इस पुस्तक
के परिशिष्ट को या मेरी योग तथा आयुर्वेद पर लिखी गईं पुस्तकों के
प्रस्तावनात्मक अध्यायों को पढ़ें। यह सूचना इन विचारधाराओं पर रचित अन्य
प्राचीन पुस्तकों से भी प्राप्त की जा सकती है। देखें, लेखिका की पुस्तक
'दैनिक जीवन में आयुर्वेद', किताब घर, नई दिल्ली १९९७
अथर्ववेद, ९/२/१९, २७
सूत्र किसी सिद्धांत की संक्षिप्त तथा सारगर्भित अभिव्यक्ति हैं। ये
सरलतापूर्वक याद भी किए जा सकते हैं। भारत में यह शैली ३००० वर्षों पहले
अपनाई गई, जब औपचारिक रूप से लिखे जाने वाले नुसखों के संक्षिप्त तथा
वैज्ञानिक रूप अधिक स्पष्ट किए जाने लगे थे। पश्चिम में ईसा पूर्व पाँचवीं
शताब्दी में हिप्पोक्रेटीज़ द्वारा सूत्रों की रचना की गई थी। फिर भी
संक्षिप्त रूप में लिखने की यह शैली यूनानी तथा रोमन सभ्यता से पहले भी थी।
सूत्रों की रचना पत्थरों पर की गई थी जिन्हें लिपिधारी कहते थे और इनके लिए
संक्षिप्त रहना अनिवार्य था।
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