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रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी

घर का भेदी

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : रवि पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : पेपर बैक
पुस्तक क्रमांक : 12544
आईएसबीएन :1234567890123

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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?


“विधवा को। सौ बार बताया कि विधवी कोई लफ्ज नहीं होता।"
"भूल जाता है, प्यारयो। लेकिन एक बात लिख लो रमाकान्त मल्होत्रा अम्बरसरिये की।"
"क्या ?"
"ऊपर बैठी वो विधवी-मेरा मतलब है, बल्कि तेरा मतलब है, विधवा-अपनी पटाखा पेशकश की तैयारी कर रही होगी।"
"क्या कर रही होगी?" ।
"किसी परछत्ती पर पड़े किसी ट्रंक में से कोई सफेद साड़ी तलाश कर रही होगी, शीशे के आगे बैठ कर पीली लिपस्टिक लगा रही होगी, आंखों में ग्लिसरीन डाल रही होगी और चेहरे पर गम की घटायें लाने की रिहर्सल कर रही होगी।"
"ओह, शटअप।"
"मत मान।"
“बतरा, उसकी बीवी"-सुनील फिर अर्जुन से सम्बोधित हुआ-- "और उसकी साली के अलावा और कौन लोग रहते हैं यहां?"
"और तो नौकर-चाकर ही हैं।"-अर्जुन बोला।
"कितने?"
“काफी हैं। मसलन एक तो वो ड्राइवर जगत सिंह ही है। एक वो पटाखा मेड नीना मैनुअल है। इमरती नाम की एक मेड और है जो कि सुना है कि बीवी की ही खिदमत में रहती है। एक हेमलता नाम की हाउसकीपर है और एक दशरथ नाम का खानसामा है। इतने स्टाफ की तो मुझे खबर है। इनके अलावा हो सकता है कोई माली, दरबान वगैरह भी हो।"
"कत्ल के सम्भावित वक्त के आसपास ये लोग कहां थे?"
"सब किचन में थे। सब वहां खाना खा रहे थे। मैंने क्रॉस चैकिंग करके तसदीक की है।"
“यानी कि नौकरों में से तो कोई कातिल नहीं हो सकता?"
"नहीं।"
"बीवी?"
"बेडरूम में थी। लाश की बरामदी के वाद मचे शोर शराबे के वक्त तो बेडरूम में ही थी जहां से तब मैंने खुद उसे बाहर निकलते देखा था।"
"लाश की बरामदी में और कत्ल में वक्फा तो था न?"
"हां। पन्द्रह मिनट का तो यकीनन था। कत्ल के वक्त का मेरा अन्दाजा गलत हो तो वो कम ज्यादा भी हो सकता है।"
"प्यारयो, नीचे आ के, गोली चला के, वापिस ऊपर कमरे में जा बैठने में क्या बहुत टाइम लगता है?" - रमाकान्त बोला।
"मैंने उस औरत की शक्ल नहीं देखी इसलिये कह नहीं सकता कि वो कितनी वेवकूफ है लेकिन डेढ़ दर्जन मेहमानों की घर में मौजूदगी के दौरान पति को शूट करने का खयाल करने वाली औरत कोई महामूर्ख ही हो सकती है।"
"क्या पता वो हो।"
"गुरु-जी!" -एकाएक अर्जुन बोला।
“क्या है?"
"वो मेड । नीना।"
"कहां है?" अर्जुन ने खुले दरवाजे की तरफ इशारा किया।
सुनील को जो लड़की ठिठकी खड़ी वहीं दिखाई दी वो यकीनन बहुत हसीन थी। उम्र में वो मुश्किल से बीस साल की थी और कद सवा पांच फुट के करीब था। उसके बाल कटे हुए थे. रंगत गोरी थी और होंठ लिपस्टिक के बिना ही लाल थे। वो स्कर्ट ब्लाउज पहने थी और फैशन माडल्स की तरह तन कर खड़ी थी जिसकी वजह से उसका उन्नत वक्ष और उन्नत लग रहा था और उसकी पतली कमर और पतली लग रही थी। उसका ब्लाउज कॉलर वाला था जिसके ऊपरी तीन वटन खुले थे।
ये मैड है"-रकाकान्त बोला- "तो मेड इन फ्रांस या स्विट्जरलैंड ही होगी, प्यारयो।"
सुनील ने सहमति में सिर हिलाया।
"ये तो घरवालियों में इनफीरियरटी कम्पलैक्स भर देने वाली आइटम है।"
“भई नौकरानी ही तो है।"
"ऐसी नौकरानियां ही रानी बनने के ख्वाव देखने लगती हैं।"

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