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रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी

घर का भेदी

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : रवि पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : पेपर बैक
पुस्तक क्रमांक : 12544
आईएसबीएन :1234567890123

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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?


सुनील हंसा!
"बढ़िया कौन बनी हुई है?"-रमाकान्त उत्सुक भाव से बोला- "मिस्ट्रेस या मेड?"
"मेड।"-अर्जुन निस्संकोच वोला।
"किसी मिस्ट्रेस को अपने घर में अपने से ज्यादा वढ़िया बनी हुई मेड बर्दाश्त तो नहीं होती।"
"मिस्ट्रेस भी कम नहीं है लेकिन उसने जितना बनना था बन चुकी है जबकि मेड अभी बन रही है इसलिये उसमें अभी और गुंजायश है।"
“शाबाश। और कहीं नहीं तो कम से कम इस लाइन में जरूर तरक्की करेगा।"
अर्जुन हंसा।
“अब दिखा कहां है वो?"
“यहीं कहीं होगी। अभी खुद ही दिख जायेगी।"
"बात कुछ और हो रही थी।"

सुनील बोला- “वो मेड, नीना मैनुअल, ड्राईंगरूम में क्या करने गयी थी?" ..

"कुछ करने नहीं गयी थी। वो किचन को जाती यहां के खुले दरवाजे के पास से गुजरी थी तो उसने बार के करीब वाली खिड़की खुली देखी थी। उसको बन्द करने की नीयत से वो वहां पहुंची थी तो उसे वहां बार के पीछे बतरा की लाश पड़ी दिखाई दी थी। वो चीखें मारती उलटे पांव वहां से भागी थी।"

“बतरा नीचे क्या कर रहा था? वो ऊपर पार्टी में शामिल नहीं था?" .
"नहीं। उसमें तो बतरा की बीवी भावना भी शामिल नहीं थी। उसमें सिर्फ संचिता के, उसके द्वारा पार्टी में बुलाये, यार-दोस्त ही शामिल थे।"
"और?"
“बतरा, लगता है, कत्ल होने से थोड़ी देर पहले ही घर लौटा था।"
“लगता है?"
“हां। क्योंकि कोई नौकर-चाकर तो उसे कोठी का प्रवेश द्वार खोला होने की हामी भर नहीं रहा।" ..

"प्रवेश द्वार बन्द रहता है? भीतर से खोले जाने पर ही खुलता है?"
"हां।" "तो फिर वो भीतर कैसे दाखिल हआ?"
"प्रवेश द्वार को बाहर की तरफ से चाबी लगा कर खोला जा सकता है। उसका ड्राइवर जगत सिंह कहता है कि वैसी एक चाबी हमेशा उसके पास होती थी।"
"ड्राइवर उसके साथ नहीं था?"
"नहीं। आज नहीं था। आज बतरा खुद कार चला रहा था और खुद ही कार चलाता वापिस लौटा था।"
"कहां से?"
“पता नहीं। वैसे उसकी बीवी कहती है कि कोई एक घन्टा _पहले उसने फोन पर उसे बताया था कि वो 'निकल चेन' में था और वहां से सीधा घर ही लौटने वाला था।"
"निकल चेन?".
"नाइट क्लब है।" रमाकान्त बोला-- "बीच रोड पर । मालिक का नाम निरंजन चोपड़ा है। दादा टाइप का आदमी है। क्लब भी बदनाम-सी है। सुना है उसकी ओट में निरंजन चोपड़ा नारकॉटिक्स का कारोबार चलाता है।"

"यानी कि नशे का-मौत का सौदागर है?"
"सुना है, प्यारयो, सुना है।"
"वारदात कब हुई?"
"कोई पक्की बात तो पुलिस का एक्सपर्ट ही आकर कह पायेगा, गुरुजी"--अर्जुन बोला-“अलबत्ता मेरा अन्दाजा साढ़े नौ के करीब का है। क्योंकि जब मैंने आपको फोन किया था, मकतूल की कनपटी से तब भी खून रिस रहा था।"
"हूं। बीवी कहां है?"
"ऊपर। अपने बेडरूम में।" सुनील की भवें उठीं।
“संचिता ने बड़ी बहन को जबरन ऊपर भेजा। बोली, उसका दिल कमजोर है। लाश के पास बने रहने से खुद उसे कुछ हो सकता था।"
“देखा अन्धेर, मालको, आजकल के जमाने का!"
रमाकान्त बोला-“खसम को 'सब कुछ' हो गया लेकिन विधवी को 'कुछ' न हो जाये, इसकी फिक्र है उसकी बहन को।"

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