रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी घर का भेदीसुरेन्द्र मोहन पाठक
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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?
"तुम बहुत जहीन लड़के हो। ऐन वैसे ही जैसा कि आदमी के बच्चे को होना चाहिये।
तुम्हारे बारे में सोचता हूं तो मन में एक ही खयाल आता है कि काश तुम्हारे
जैसी औलाद मेरी होती।"
"मेरे में कोई खूबी नहीं, जनाब, अलबत्ता ऐसी खामियां जरूर हैं जिन्हें अच्छे
संस्कारों वाले लोग हकारत की निगाह से देखते हैं।"
“ये भी तुम्हारा वड़प्पन है कि तुम अपने आपको लो प्रोफाइल में पेश करते हो।"
"जनाब, आपकी बेटी में कोई खामी नहीं, सिवाय इसके कि वो ड्रग एडिक्ट है।"
“ये अकेली खामी तमाम खामियों पर भारी है।"
"वो ठीक हो जायेगी। पहले ठीक हो गयी थी तो अब भी ठीक हो जायेगी।"
"पहले तो वजह थी। पहले तो उसे गलत राह लगाने वाला इस जहान से उठ गया था।"
“अमृत तो दूसरे ने भी नहीं पिया हुआ।"
वो सकपकाया।
“आपकी बेटी का इलाज न रहे बांस न बजे बांसुरी जैसा है।
“मैं समझा नहीं।"
“कोई बात नहीं। आइन्दा दिनों में समझ जायेंगे। और...."
"और क्या?"
"अपनी पसन्द की चीज हासिल न हो तो हासिल चीज़ को पसन्द करना सीखना चाहिये।" .
"क्या?"
"व्हेन वी डोंट गैट वाट वी लाइक,वी शुड लर्न टु लाइक वाट वी गैट। ए वर्ड टु
दि वाइज़, सर। गुड नाइट।"
सर्वेट उसे पहली मंजिल पर स्थित तानिया चटवाल के कमरे में छोड़ कर गया।
"हल्लो!"--सुनील मधुर स्वर में बोला- “पहचाना मुझे?"
"सूरत पहचानी।"-वो माथे पर वल डाल कर उसे देखती हुई बोली- "लेकिन....."
"कल रात निकल चेन' में मुलाकात हुई थी। संचिता और अर्जुन की मौजूदगी में।
सुनील नाम है मेरा।"
"जर्नलिस्ट!"--वो चुटकी बजाती हुई बोली-“ब्लास्ट!"
"वही।"
“सारी, आई कुड नाट प्लेस यू इमीजियेटली। यहां कैसे पहुंच गये?"
"तुम्हीं से मिलने आया था।"
“लेकिन वो सर्वेट तो कहता था तुम पापा के पास बैठे हुये थे!"
“वहां से पर्ची कटवा रहा था।”
"पर्ची!"
"परमिशन स्लिप। तुम्हारे से मिलने की इजाजत का रुक्का ।"
"ओह! बातें बढ़िया करते हो?"
"और मुझे आता क्या है?"
"बैठो।"
"शुक्रिया।"
"क्यों मिलना चाहते थे मुझ से?"
“कई बातें हैं। समझ नहीं पा रहा हूं कि कहां से शुरू करूं?"
"कहीं से भी शुरू करो। क्या फर्क पड़ता है?"
"ये भी ठीक है। वाई दि वे, कल हमारी एक मुलाकात और भी हुई थी।"
"कब? कहां?"
"निकल चेन' में ही। लेकिन उसके मेन हाल में नहीं, निरंजन चोपड़ा के प्राइवेट
आफिस में।"
"तुम वहां थे?" .
"हां। वहां एक कुर्सी पर ढेर मुंह हैट से ढंका हुआ। जिसके बारे में निरंजन
चोपड़ा ने कहा था कि ज्यादा पी गया था।"
“वो तुम थे?"
"हां"
"क्यों पीते हो इतनी?"
"वजह वो नहीं है जो तुम्हारे कश लगाने के पीछे है।"
वो सकपकाई।
"पिछले कमरे तक मेरी निगाह नहीं पहुंच पायी थी, क्योंकि तुमने बीच का दरवाजा
बन्द कर लिया था, इसलिये मुझे नहीं मालूम कि बॉस के हुक्म के मुताबिक तुमने
वहां जाकर कपड़े उतारे थे या नहीं!"
तत्काल उसके चेहरे पर क्रोध के भाव आये।
"मिस्टर!"-वो भड़क कर बोली-“गैट आउट आफ हेयर।"
"हुक्म सिर माथे। बस सिर्फ एक फैंसी ड्रैस वाली बात और कर लेने दो।"
“फैंसी ड्रेस?"
"जो तुमने बतरा के कत्ल की रात को इमरती से सौ रुपये किराये पर लेकर पहनी थी।
ताकि जब तुम कत्ल के इरादे से पार्टी छोड़ कर ऊपर से नीचे उतरतीं तो किसी को
सपने में खयाल न आता कि वो तुम थीं। जो कोई भी तुम्हें सीढ़ियां उतरता या
कत्ल के बाद सीढ़ियां चढ़ते देखता, वो यही समझता कि इमरती आ जा रही थी। कत्ल
से पहले मकतूल की स्टडी में लगी टेबल के एक दराज में से मईर वैपन कब्जाते
वक्त भी वो ड्रैस खूब काम आयी होगी।"
वो भौचक्की-सी सुनील का मंह देखने लगी।
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