रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी घर का भेदीसुरेन्द्र मोहन पाठक
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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?
"आप को वो किस बिना पर ब्लैकमेल कर रहा था?"
“आई एम कमिंग टू दैट, इफ यू विल लैट मी।"
“सॉरी अगेन।"
“बतरा मुझे मेरी बेटी की वजह से ब्लैकमेल कर रहा था जिसका कि कनौजिया से
अफेयर था। अफेयर क्या था, उस कमीने ने पता नहीं कैसे फांसा हआ था मेरी नादान
बेटी को। चार साल पहले वो सिलसिला शुरू हुआ था, वो कमीना इस जहान से उठ न गया
होता तो अभी पता नहीं कब तक चलता। सच पूछो तो उन दोनों के अफेयर की खबर मुझे
कनौजिया की मौत के बाद ही लगी थी जब कि वो रो रो कर जान देने पर आमादा हो गयी
थी। इसी से साबित होता है कि मेरे पास उसके कत्ल का कोई उद्देश्य नहीं था। जब
तक कत्ल का उद्देश्य सामने आया था, तब तक वो मर चुका था। तब मैंने तानिया को
उसके चाचा के पास स्विट्जरलैंड भेज दिया था ताकि उसका दिल बहल पाता और उसके
मिजाज में तब्दीली आ पाती।
“वापिस कब बुलाया?"
“एक साल पहले । जब कि उसकी मां की एकाएक दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गयी।"
“आई सी।"
"फिर तीन महीने पहले मैंने तानिया में वो खास तब्दीलियां नोट की जो कि काश
मुझे जल्दी दिखाई दे गयी होतीं। मिस्टर सुनील, वो तब्दीलियां ड्रग्स से
ताल्लुक रखती थीं। ड्रग का शौक तानिया पता नहीं योरोप से साथ लायी थी या उसे
यहां आकर लगा था लेकिन ये बात निश्चित थी कि वह ड्रग एडिक्ट वन गया थी। मां
उसकी थी नहीं, मुझे अपनी बिजनेस एंगेजमेंट्स से फुरसत नहीं होती थी, और घर
में कोई सगा सम्बन्धी था नहीं, इसलिये उसके ड्रग एडिक्ट होने की बात इतना
अरसा उजागर न हुई। फिर बतरा ने आकर इस बात को बिल्कुल ही मोहरबन्द कर दिया।"
“किस बात को? कि तानिया ड्रग एडिक्ट थी?"
“हां। लेकिन सिर्फ इतनी ही बात होती तो मैं किसी तरीके से झेल लेता। लेकिन
उसने तो मुझे ये भी बताया कि तानिया जैसे पहले निरंजन चोपड़ा के भूतपूर्व
पाटर्नर विक्रम कनौजिया से फंसी हुई थी, वैसे ही अब उससे फंसी हुई थी। वो
पूरी तरह से निरंजन चोपड़ा के चंगुल में थी। पता नहीं क्या जोर था उस कमीने
का मेरी बेटी पर।"
"ड्रग्स । ड्रग्स का जोर था। वो आपकी बेटी का ड्रग सप्लायर था।"
“या कोई जादू टोना जानता था जिससे उसने तानिया को अपने वश में किया हुआ था।
बहरहाल जिस कहानी को मैं कनौजिया की मौत के साथ खत्म हो चुकी समझा था वो
निरंजन चोपड़ा की वजह से तब भी जारी थी।"
"आपने बतरा से ब्लैकमेल होना कबूल कर लिया था?"
“पहली बार नहीं। पहली बार तो मैंने उसे डांटकर, गिरफ्तार करा देने की धमकी दे
कर भगा दिया था। पहली बार उसने भी मेरे पर कोई खास दबाव नहीं डाला था। वो ये
कह कर हंसता मुस्कराता रुखसत हुआ था कि पहले मैं उसकी बात की तसदीक कर लूं,
वो फिर लौट कर आयेगा। उसके जाने के बाद मैंने तानिया से.बात की तो उसने सब
उगल दिया। मेरे छक्के छूट गये। मुझे उसके नशे की गुलाम होने से ज्यादा एतराज
इस बात से था कि उसके ताल्लुकात निरंजन चोपड़ा जैसे गुण्डे बदमाश और उम्रदराज
आदमी से थे। लेकिन तानिया को किसी बात से कोई एतराज नहीं था। जो बात मेरे
छक्के छुड़ा रही थी, उसे वो गम्भीरता से लेने को भी तैयार नहीं थी। मेरे मुंह
पर ही कहने लगी कि जिन्दगी उसकी थी और उसे उसको अपनी मर्जी से जीने का पूरा
अख्तियार था। यानी कि नशे की आदी बन चुकी उस लड़की का नशे से किनारा कर लेने
का कोई इरादा ही नहीं था। आजकल नशे का इलाज है जिसे कि डिएडिक्शन कहते हैं
लेकिन वो ऐसा कोई इलाज करवाने को तैयार नहीं थी। ऊपर से धमकाने लगी कि अगर
उसके साथ उसकी मर्जी के खिलाफ कोई जोर जबरदस्ती की गयी तो वो अपनी जान दे
देगी। मेरे सामने ही यहां की दूसरी मंजिल की छत पर चढ़ गयी और वहां से कूदने
को आमादा हो गयी। बड़ी मुश्किल से मैं उसे समझा बुझा कर नीचे लाया।"
वो खामोश हो गया।
सुनील ने देखा कि एकाएक उसके चेहरे पर तीव्र वेदना के भाव प्रकट हो गये थे।
"मिस्टर सुनील"-वो कातर भाव से बोला-"मेरी एक ही बेटी है जिसे कि मैं दिलोजान
से चाहता हूं। वो नशा नहीं छोड़ेगी तो आखिरकार तो मौत की गोद में ही पनाह
पायेगी। लेकिन मैं ये भी तो गंवारा नहीं कर सकता कि वो मेरी आंखों के सामने
खुदकुशी करके मर जाये। पता नहीं ये मेरे कौन से बुरे कर्मों की सजा है जो कि
मुझे अपनी जवान बेटी को इंच इंच करके निश्चित मौत की तरफ बढ़ता देखना पड़ रहा
है।"
"इस बाबत आपने निरंजन चोपडा से कोई बात न की?"
"की। मेरी हैसियत, मेरा समाजी रुतबा इस बात की इजाजत नहीं देता लेकिन फिर भी
मैं उसकी उस बदनाम क्लब में उससे मिलने गया। धमकी से लेकर फरियाद तक का हर
पैंतरा मैंने उस पर आजमाया लेकिन उस पर कोई असर न हुआ। उसने मुझे चैलेंज देकर
कहा कि अगर मैं तानिया को उसके पास आने से रोक सकता था तो रोक कर दिखाऊं।
कमीने की दीदादिलेरी ने मझे इतना भड़काया था कि मेरा दिल किया था कि मैं वहीं
उसका कत्ल कर दूं। पता नहीं कैसे मैंने अपने आप पर जब्त किया था और फिर पिटा
हुआ मुंह लेकर वापिस लौटा था।"
“बतरा आपके पास वापिस लौटा?"
"लौटा। लौटना ही था उसने। इतनी गारन्टी जो थी उसे अपनी जानकारी की!" .
"आपने उसे पैसा दिया?”
"हां"
"कितना?"
वो एक क्षण हिचकिचाया और फिर बोला- “पांच लाख।"
"लिहाजा अपना मुंह बन्द रखने की कीमत उसने आपकी पेईंग कैपेसिटी को ध्यान में
रखकर आंकी?"
"नहीं। उसने ऐसा किया होता तो उसकी मांग कहीं बड़ी होती और दोहराई भी जाती।"
"दोहराई नहीं गयी थी?"
"नहीं! दोहराई जानी भी नहीं थी, ऐसा वो मुझे आश्वासन देकर गया था। वो कहता था
कि वो फल देने वाले पेड़ को एक ही बार झिंझोड़ता था।"
"हूं। और आपको उसकी मांग भी ठीक ठाक ही लगी थी?"
"हां"
“वो आपका क्या अहित कर सकता,था? आपने कोई चोरी नहीं की थी, डाका नहीं डाला
था, खून नहीं किया था। आपके या आपकी औलाद के जन्म में कोई खोट नहीं थी। ये,
बात जगविदित हो भी जाती कि आपकी, नगर के एक बड़े उद्योगपति की, बेटी ड्रग
एडिक्ट थी और उसका एक उम्रदराज आदमी से अफेयर था तो ऐसी क्या आफत आ जाती? आज
के आधुनिक समाज में तो ये आम बातें हैं।"
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