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रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी

घर का भेदी

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : रवि पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : पेपर बैक
पुस्तक क्रमांक : 12544
आईएसबीएन :1234567890123

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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?


लेकिन उसने ऐसा न किया। उसने सुनील पर गोली चलाने से भी ज्यादा खतरनाक काम किया। वो बड़े वेग से दरवाजे की तरफ घूमा।
तब दो घटनायें एक साथ घटीं। चोपड़ा ने फायर किया। सुनील ने उस पर छलांग लगायी।
सुनील की छलांग की वजह से ही चोपड़ा का निशाना चूक गया। उसकी रिवॉल्वर से निकली गोली चानना के सर के ऊपर से होती हुई चौखट में जा कर लगी और वहां से लकड़ी के परखच्चे उड़ गये।
चानना की रिवॉल्वर से भी पलक झपकते जवाबी फायर हुआ और उसकी चलाई गोली चोपड़ा की छाती में जाकर लगी। तत्काल वो पीछे को लड़खड़ाया, रिवॉल्वर उसके हाथ से निकल गयी और फिर वो कालीन बिछे फर्श पर ढेर हो गया।
चेहरे पर आतंक के भाव लिये दोनों हाथों से थाम कर चोपड़ा की तरफ रिवॉल्वर ताने चानना वुत बना चौखट पर खड़ा रहा। कई क्षण के लिये जैसे वक्त थम गया।
वातावरण में मरघट का सा सन्नाटा छा गया।
फिर जैसे एकाएक चानना जड़ हुआ था, वैसे ही एकाएक गतिशील हुआ। वो लपक कर धराशायी चोपड़ा के करीब पहंचा। उसने झुककर उसका मुआयना किया।
“अभी जिन्दा है।"-फिर वो बोला।
तभी दरवाजे की चौखट पर एक हवलदार प्रकट हुआ।
“एम्बूलेंस मंगाओ।"-चानना दहाड़ा। हवलदार तत्काल वापिस भागा।
पीछे चानना ने अपनी रिवॉल्वर अपनी बैल्ट में लगे होल्स्टर में खोंसी और रुमाल में लपेट कर चोपड़ा की रिवॉल्वर फर्श पर से उठाई। उसने उसे अपनी वर्दी की एक जेब के हवाले किया और फिर चोपड़ा की जेबें टटोलीं। एक जेब से एक पुड़िया बरामद हुई। उसमें से चार पुड़ियां बरामद हुई।
उसने उनका मुआयना किया तो उसके चेहरे पर संतोप के भाव आये।
"हेरोइन।"--वो बोला-“प्योर। अनकट। सौ ग्राम से कम नहीं।"
"गुड।"-सुनील के मुंह से तब पहली बार बोल फूटा।
"आज तुमने मेरी जान बचायी। मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूं।"
"इन्पेक्टर साहब, मैं कौन होता हूं जान बचाने वाला।"
"अब तुम फूट जाओ यहां से।"
"क्या!"
"और खबरदार जो किसी से इस बात का जिक्र किया कि ये यहां कैसे पहुंचा था।" .
कैसे पहुंचा था! सवाल तो होगा इस बाबत!"
"कैसे भी पहुंचा था, पहुंचा था।"
"तुम लोग कैसे पहुंचे थे?"
"हमें एक गुमनाम टिप मिली थी कि ये आदमी डोप डीलर था और आज ये किसी को हेरोइन बेचने की नीयत से यहां पहुंच रहा था। हमने इसके लिये जाल फैलाया जिसमें ये फंस गया। गिरफ्तारी से बचने के लिये इसने पुलिस पर गोली चलाने की जुर्रत की जिसकी जवाबी कार्यवाही में इसका ये हश्र हुआ। समझ गये?'
सुनील ने उत्तर न दिया वो अनिश्चित-सा चानना की तरफ देखने लगा।
“मेरे भाई, जिस लड़की की भलाई में तुमने ये सव किया है, उसकी भलाई इसी में है। तुमने मुंह फाड़ा तो हमें उसे भी गिरफ्तार करना पड़ेगा। फिर वो और उसका बाप तुम्हारा अहसानमन्द होने की जगह तुम्हें कोस रहे होंगे। समझे?"
"समझा।"
"तो खड़े खड़े मुंह क्या देख रहे हो?"
"मुझे कैसे पता लगेगा कि पीछे क्या हुआ?"
“कल मिलना। सब पता लग जायेगा।"
"बाकी प्रेस के साथ?"
"पहले 'ब्लास्ट' को।"
"फिर ठीक है।" सुनील वहां से बाहर निकला। वो नीचे पहुंचा। तत्काल फ्लोरेंस उसके करीब पहुंची।
"सब ठीक हो गया?"-वो व्यग्र भाव से बोली।
"हां" --सुनील तनिक हांफता हुआ बोला--"अब मैं तुम्हारे साथ चियर्स बोलने के लिये तैयार हूं।"

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