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रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी

घर का भेदी

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : रवि पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ : पेपर बैक
पुस्तक क्रमांक : 12544
आईएसबीएन :1234567890123

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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?


तत्काल सुनील वहां से हटा और वापिस अपनी खुफिया ... जगह पर पहुंच गया। उसने बदस्तूर झिरी में आंख लगा दी।
दरवाजा खुला। चोपड़ा ने बाहर कदम रखा और फिर सहज भाव से चलता हुआ लिफ्ट की ओर बढ़ गया।
सुनील ने झिरी को और चौड़ा कर लिया और लिफ्ट की दिशा में झांकने लगा।
चोपड़ा लिफ्ट में सवार हुआ, लिफ्ट का दरवाजा बंद हुआ, लिफ्ट नीचे सरक गयी।
सुनील झपट कर बाहर निकला और तानिया के करीब पहुंचा।
तानिया विस्फारित नेत्रों से उसकी तरफ देखने लगी।
"तुम्हारा काम खत्म हुआ।"--सुनील बोला- “सीढ़ियों से नीचे जाओ और पिछवाड़े से बाहर निकल जाओ। वो तुम्हें रास्ते में कहीं नहीं मिलेगा।"
तानिया का सिर सहमति में हिला।
"जल्दी करो।"
तत्काल तानिया वहां से बाहर निकल गयी।
सुनील अटैच्ड बाथरूम में पहुंचा और कमोड पर बैठ गया। उसने एक सिगरेट सुलगाया और प्रतीक्षा करने लगा।
थोड़ी देर बाद बाहर का दरवाजा खुलने और बन्द होने की आहट हुई।
“तानिया।"-फिर चोपड़ा की आवाज आयी-“बाथरूम में है?"
सुनील उठ खड़ा हुआ, आखिरी कश लगा कर उसने सिगरेट सिंक में फेंका और फिर इत्मीनान से बाहर कदम रखा।
सुनील पर निगाह पड़ते ही चोपड़ा के नेत्र फैले।
"तुम!"-उसके मुंह से निकला।
"हां।" -सुनील सहज भाव से बोला-“मैं।"
"कल की मार भूल गयी?"
"नहीं। और याद आ गयी। तभी तो यहां हूं।"
"तानिया कहां गयी?"
"तेल लेने गयी है। तुम्हें बैठ कर इन्तजार करने को बोल गयी है। आती ही होगी।"
चोपड़ा ने नर्वस भाव से पहलू बदला। "किस फिराक में हो?"-फिर वो बोला।
"कल तुमने मुझे बेवजह पिटवाया। यहां कम से कम बेवजह कुछ नहीं होगा। यहां तुम्हारे साथ जो बीतेगी, उसकी वजह होगी।”
"वजह?"
"जो कि तुम्हें मालूम है।" "क...क्या कहना चाहते हो?"
"तुम्हें कातिल करार देना चाहता हूं। गोपाल बतरा का भी और विक्रम कनौजिया का भी।"
“करार देकर खुद कहां जाना चाहते हो?"
"क्या मतलब?"
"ये मतलब!"--तत्काल चोपड़ा के हाथ में एक रिवॉल्वर प्रकट हुई- “समझ में आया मतलब?"
"तुम यहां मेरे पर गोली नहीं चला सकते।"
"क्यों ?" “आवाज सारी इमारत में गूंजेगी।"
"ये तो बहुत वाजिब बात कही तुमने। मैं उसका भी इन्तजाम करता हूं।"
उसने अपना खाली हाथ कोट की जेब में डालकर निकाला तो सुनील को उसमें साइलेंसर दिखाई दिया जिसे कि वो बड़े इत्मीनान से रिवॉल्वर की नाल पर चढ़ाने लगा।
सुनील का कंठ सूखने लगा। पता नहीं उसी रोज वो वैसी तैयारी करके आया था या उसके कहीं जाने का अन्दाज ही वो था।
"कल बच गया तो शेर हो गया।"--वो विषभरे स्वर में बोला--"लेकिन बेटा, तू शेर नहीं, गीदड़ है और जब गीदड़ की मौत आती है तो वो निरंजन चोपड़ा की तरफ भागता है।"
उसने रिवॉल्वर वाला हाथ सुनील की तरफ ताना।
"मैं शोर मचा दूंगा।"-सुनील फंसे कंठ से बोला।
"कोशिश कर। मैं पहली गोली तेरे गले में ही मारूंगा।"
"तुम मुझे मार सकते हो लेकिन यहां से बच के नहीं जा सकते।"
"देखेंगे। पहले तुझे और फिर उस कुतिया तानिया को, जो मेरे खिलाफ ऐसा षड्यन्त्र रचने में तुम्हारी मददगार बनी। अब तैयार हो जा मरने के लिये।"
तभी भड़ाक से दरवाजा खुला और चौखट पर इन्स्पेक्टर चानना प्रकट हुआ। उस घड़ी उसके हाथ में उसकी भारी सर्विस . रिवॉल्वर थी.जो कि उसने सामने तानी हुई थी।
"रिवॉल्वर फेंक दे, चोपड़ा"-चानना चिल्लाया- “वरना बेमौत मारा जायेगा।"
चोपड़ा को जैसे सांप सूंघ गया। सुनील को लगा कि वो रिवॉल्वर फेंकने वाला था।

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