रहस्य-रोमांच >> घर का भेदी घर का भेदीसुरेन्द्र मोहन पाठक
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अखबार वाला या ब्लैकमेलर?
सुनील वहां से बाहर निकला और गलियारा पार करके सामने कमरे में चला गया। उसने
कमरे के दरवाजे के करीब एक कुर्सी खींच ली और दरवाजे में झिरी बनाकर उसमें
आंख लगा कर बैठ गया।
ठीक नौ बजे गलियारे में सूट बूट में सजे धजे निरंजन चोपड़ा के कदम पड़े। वो
सामने दरवाजे के करीब पहुंच कर ठिठका और फिर उसे ठेलकर भीतर दाखिल हो गया।
दरवाजा निशब्द उसके पीछे बन्द हो गया।
सुनील अपने स्थान से उठा, गलियारे में पहुंचा और फिर सामने दरवाजे के पास
उकड़ूँ होकर बैठ गया। उसने की-होल में आंख लगाकर भीतर झांका।
"हल्लो, तानिया।"-भीतर से निरंजन चोपड़ा की धीमी आवाज़ आयी-“आज तो बहुत हसीन
लग रही हो। बल्कि कहर ढा रही हो।"
"ऐसी कोई बात नहीं।"-तानिया की आवाज आयी।
"है कैसे नहीं? उठ के खड़ी हो।"
तानिया उठी।
"इधर आ।"
तानिया दो कदम आगे बढ़कर उसके करीब पहुंची। तत्काल चोपड़ा ने उसे अपनी बांहों
में दबोच लिया।
"छोड़ो।"-तानिया बोली।
"क्यों भई? क्यों भला?"
"मेरा मतलब है, जल्दी क्या है? आज मैंने कौन-सा लौट के घर जाना है?"
“ओह! ये तो मैं भूल ही गया था। यानी कि सारी रात अपनी है।”
“सारी नहीं तो काफी सारी तो अपनी है ही।"
चोपड़ा ने उसे बंधनमुक्त कर दिया। फिर वो दोनों आमने सामने बैठ गये।
"ये जगह कैसे सूझी?"-चोपड़ा बोला।
“एक सहेली ने सुझाई।"
"अच्छी जगह है। तो तेरा डैडी फिर तेरी शादी के पीछे पड़ा है।”
"हां"
"पागल है साला। खामखाह...."
"सब ठीक हो जायेगा। पिछली बार भी तो हुआ ही था।"
"वो तो है। वैसे भी मुझे तेरे पर यकीन है कि तू सब ठीक कर लेगी।"
"तुम्हारी खातिर।"
"थै क्यू, माई लव।"
"मेरी चीज लाये हो?"
"हां"
"निकालो।"
"गाड़ी में है।"
"गाड़ी में क्यों है? साथ क्यों नहीं लाये?"
"पहले मैं यहां का माहौल देखना परखना चाहता था, इस बात की तसदीक करना चाहता
था कि तू यहां अकेली है।"
“अब हो गयी तसल्ली?"
"हां"
"तो जाओ पहले मेरी चीज लेकर आओ।"
"जल्दी क्या है?"
"तुम्हें नहीं मालूम? टाइम देख रहे हो?"
"है तो तेरी खुराक का ही टाइम।"
"तो फिर? जानबूझ कर अनजान बनते हो?"
"यानी कि पहले अपना मजा लेगी फिर मेरी बारी आयेगी?"
"मजे से मजा दोबाला हो जाता है।"
"ये तो तू ठीक कह रही है। ठीक है, लाता हूं।"
"मेरी पूरी सप्लाई?"
"हां भई।"
"थैक्यू । यू आर सो काइन्ड। आई लव यू।"
चोपड़ा सोफाचेयर पर से उठा।
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