नई पुस्तकें >> कृष्णकली कृष्णकलीशिवानी
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दस
दलिया, उबले अण्डे और टोस्ट सजाकर साइमन गहस्वामिनी के लिए एक
सूप-प्लेट में उबली सब्जियों का मटमैला पानी रख गया, तो आण्टी ने किसी सिर चढ़े, बीमार, अबोध बालक की तरह मुँह लटका लिया।
''देख रही हो विवियन, इस साइमन के बच्चे ने आज इस सूप में फिर मुझे जलाने के लिए शलजम डाल दिया है। तुम्हीं देखो बेटी कली, लगता है अपनी बीवी की धोती धोकर उसी का पानी गरम कर ले आया है। एक टमाटर ही डाल देता। ही कुड हैव पुट सम कलर।''
''आण्टी, तुम्हें पता है कि तुम्हारा वजन इधर फिर बढ़ने लगा है। डॉक्टर मोज़ेज़ ने जो सूप बताया है तुम्हें, इस हफ्ते वही पीना पड़ेगा।'' विवियन ने पुचकारने के स्वर में कहा और प्लेट आण्टी के सम्मुख धरकर चम्मच उनके हाथ में पकड़ा दी। एक प्लेट में दो रूखे टोस्ट उसमें डुबोकर मरे मन से खाती आण्टी, लोलुप दृटि से मेज पर धरी मक्खन की गोल बट्टी को एकटक देखती कहने लगीं, ''अगली बार उस चोट्टे मोज़ेज़ की कलेजी ही भूनकर खा लूँगी, देख लेना! आप तो मुटका खा-खाकर दिन-रात मुटा रहा है। अब तू ही बता बेटी कली, इस शरीर में भला इन दो रूखे टोस्ट और इस चुल्लू भर गँदले गुनगुने पानी से कुछ गरमाहट आएगी? रोज-रोज़ यही खाना, उस पर भी वजन बढ़ता जा रहा है! मुझे तो लगता है, जान-बूझकर ही उसने वजन तौलने की मशीन की सुई बिगाड़ दी है। असल में जवानी में मुझ पर मरता था मुटका, मैंने इसके प्रपोजल को हँसकर ठुकरा दिया था। वही बदला तो ले रहा है अब,'' आण्टी ने हँसकर कहा और झपट्टा मारकर मक्खन की पूरी बट्टी मुँह में धरकर गप से निगल, किसी चतुर बाजीगर की भाँति गर्व से मुसकराने लगीं।
''देख रहे हो बीबी, कभी-कभी तो आण्टी बच्चों को भी मात कर देती हैं-कल आप ऐसे ही झपट्टा मारकर पूरी डबल रोटी खा गयी।''
विवियन की धमकी से सहमकर आण्टी नैपकिन से मुँह पोंछती खिसियाकर उठ गयीं, ''पता नहीं क्या हो जाता है मुझे। इधर मुझे भूखी मारकर तुमने मेरी नीयत बेहद बिगाड़ दी है। खाना देखकर अपने को रोक नहीं पाती। ले विवियन, आज से पक्का क्रिश्चियन रिजोज्यूशन ले रही हूँ। बिना तुझसे पूछे खाने की एक चीज़ भी जीभ पर नहीं रखूँगी।''
''मेरा क्या बनता-बिगड़ता है आण्टी,'' विवियन काँटे-छुरी से ऑमलेट का टुकड़ा मुख में रख बोली, ''तीन-तीन घण्टे तक बन्द गोभी की तरह स्टीम में उबलती हो, गिन-गिनकर हज़ार-हज़ार रस्सी कूद कीं छलाँगें लगाती हो, पर एक छह इंच की जीभ को नहीं रोक पातीं।''
आण्टी नहाने चली गयीं तो कली बड़ी स्वाभाविकता से नाश्ते पर टूट पड़ी। अब तक आण्टी की क्षुधातुरा दृष्टि के नीचे वह एक गस्सा भी नहीं तोड़ पायी थी।
''वी काण्ट एफ़ोर्ड टु लूज हर,'' विवियन की आँखें स्नेहाश्रु से आर्द्र हो उठीं।
''तुम नहीं जानतीं, यह मेरी कैसी हीरा आण्टी हैं। मम्मी की सबसे छोटी बहन हैं।
गुझे आज तक कभी यह लगा ही नहीं कि मेरी माँ नहीं हैं। बोर्डिग में जाने से पहले जन्म के दस वर्ष तक मैं इन्हीं के पास रही। बॉबी तो जन्म के तीसरे ही साल इनके पास आ गया था। यह ससुरा तो डेली आण्टी को जन्मते ही भकोस गया।''
वह बड़े स्नेह से बॉबी की ओर देखकर मुसकरायी-आँखें नीची किये, बीबी लड़कियों की-सी नज़ाकत से क्रिस्प टोस्ट को चूहे-सा कुतर रहा था।
''अब परसों ही डॉक्टर मोज़ेज़ कह गये हैं कि आण्टी का रक्तचाप बेहद बढ़ गया है, कभी भी स्ट्रोक हो सकता है। इसी से मैं यहाँ आ गयी। सोचा, पढ़ाई के साथ-साथ आण्टी की देखभाल करती रहूँगी, पर नाऊ आई फाइण्ड, इट इज इम्पासिबुल।''
तीन-चार घण्टे बाद, स्टीम-बाथ में उबल-धुलकर आण्टी जैसे चोला ही बदल आयीं। रंग-रूप में तो वह निखालिस ऐंग्लोइण्डियन थीं ही, साज-सज्जा भी वैसी ही थी। एक हलके धानी लतापत्र बने, कैम्बिक के गाउन में उन्होंने अपना फैला मुटापा शायद यत्न से कसे गये किसी कोर्सेट में बाँधकर रख लिया था। कटे काले बालों में लगा एलिस बैण्ड, गोल गालों वाले भोले-से चेहरे को और भी भोला बना रहा था। नीली आँखें, काले बालों से जरा भी मेल नहीं खतिा थी, पर नन्हे-से अधरपुट से झाँकते आण्टी के मोची-से दाँत देखकर कली समझ नहीं पायी कि सौन्दर्य किसी प्रसिद्ध डेंण्टिस्ट के डेंचर का है या स्वयं विधाता का!
''ओ माई डियर कली, तुम्हें मैं किस भी नहीं कर पायी, सारे बदन में हरामी आया ने ढाई सेर ओलिव ऑयल मलकर रख दिया था। तुम्हें चूमकर स्वागत करती भी कैसे! मोस्ट वेल्कम माई ब्यूटी,'' आण्टी ने अपनी गुदगुदी हथेली में कली का चेहरा थाम, दोनों गालों को ऐसी तबीयत से चूमा कि कली को लगा मक्खन की बट्टी की भाँति, आण्टी उसके दोनों गालों को भी निगल गयी है। लैवेण्डर की मादक सुगन्ध से कली की आँखें मुँद गयी। किसी विदेशी सेण्ट की खुली बोतल-सी ही आण्टी कुरसी खींचकर बैठ गयीं।
''पर यह क्या सुन रही थी मैं अभी कि तुम इस इतवार को ही चली जाओगी! क्या सात ही दिन में तुम तड़पाकर कलकत्ता चल दोगी? क्यों विवियन, तब तो इसे आज ही पैक कर वापस भेज दो...''
बड़े प्रेम से कली के दोनों हाथ पकड़कर आण्टी ने बनावटी क्रोध से झकझोर दिये।
''मेरी छुट्टी ही नहीं है, वह तो एक नुमाइश में आयी थी, इसी से इधर चली आयी-कभी-कभी तो दो घण्टा भी नहीं सो पाती हूँ।''
''पता नहीं क्या सोचकर तू इस लाइन में चली गयी,'' विवियन कहने लगी। ''अच्छी-खासी थी पढ़ने में, क्यों 'सिक्स प्वाइण्ट्स' थे ना तेरे एस. सी. में? मैंने तो इससे कई बार कहा था आण्टी, कि चलना ही है तो इलाहाबाद चल, पर इसे तो
कलकत्ता की धुन लगी थी। हारकर मैंने इसे लौरीन आण्टी का पता दे दिया था।''
''हाय, मैं मर गयी,'' आण्टी ने दोनों बेलन-सी बांहें आकाश की ओर उठा दी, ''अरी कम्बख्त, तूने इसे लोशन के पास भेज दिया! इससे तो रोशनी के पिंजरे में डाल दिया होता। क्यों कली, उस चुड़ैल ने कहीं तुझसे वही काम तो नहीं लिया, जो सूजन की लकड़ी की टाँग से लेती है?''
''क्या कह रही हो आण्टी?'' आश्चर्य से विवियन आण्टी की ओर मुड़ गयी। ''कितनी अच्छी हैं लौरीन आण्टी, मुझे सोलहवीं सालगिरह पर यह घड़ी उन्हीं ने तो भेजी थी कली, याद है ना?''
''हाय, मेरी भोली बेटी! मुफ्त में उपहार दे, ऐसी मूर्ख नहीं है लोरीन। उसका बस चले तो वह दुनिया की हर सोलह साल की सुन्दरी लड़की की कलाई में हीरे की घड़ी बाँध दे। मुझे जैसे ही पता चला कि उसने तुझे कान्वेण्ट में घड़ी भेजी है, वो मरम्मत की थी मैंने चुड़ैल की कि पैर पकड़कर रोने लगी। तुम दोनों से मैंने कभी कुछ नहीं कहा। बॉबी ऐसी बातें देर में समझता है और तुम समझने के लिए बहुत छोटी थीं। और हाय! ऐसी प्यारी बच्ची को तुमने वहाँ भेज दिया? कली, मेरी बच्ची, मुझसे फुछ मत छिपाना।''
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