बँगला छोटा होने पर भी, सचमुच पूरी क़तार में सबसे आकर्षक लग रहा
था। घोड़े की नाल के आकार के बने बरामदे में तीन-चार रंगबिरंगी
सूप के आकार की कुरसियाँ पड़ी थीं। उन्हीं के बीच एक बाबा आदम के
जमाने की, वैसी ही आरामकुर्सी लगी थी जैसी प्रायः रेलवे वेटिंग
रूम में धरी रहती है। उस पर धरे नीले छींट के त्रिकोणी कुशन को
ठीक कर विवियन बोली, ''ले, तू यहाँ बैठ। मैं देखती हूँ-आण्टी
ने नहा लिया या नहीं।'' सहसा ठण्डी हवा के झोंके के साथ ही
मौलसिरी की खुशबू से बरामदा भर गया।
''वाह, कितनी वढ़िया खुशबू आयी-पास में कहीं मौलसिरी का पेड़ है
शायद!''
कली ने नथुने मींचकर क्षण-भर आकर अलोप हो गयी सुग्न्ध को सूँघकर
कहा।
''जी हां,'' बॉबी मोढ़ा खींचकर उसके पास खिसक आया-''तीन-तीन पेड़
हैं।
कभी-कभी तो छोटे-छोटे फूलों की चादर ही-सी बिछ जाती है।'' कली
उसके उत्तर को बिना सुने ही दीवार पर लगे बारह-सिंगा के निर्जीव
मुण्डों को देख रही थी। उनके सींगों पर किया गया काला वार्निश
ऐसा चमक रहा था, जैसे अभी-अभी कोई बुश फेरकर गया हो।
''यह सब कौरवेट के आण्टी को दिये गये उपहार हैं। आण्टी के परम
मित्र थे, कौरवेट। उनके मारे मैनईटर के बघनखों का एक दर्शनीय
नेकलस भी है आण्टी के पास।'' उसकी अनवरत बकर-बकर से कली का सर
दुखने लगा था, एक तो रात-भर सो भी नहीं पायी थी, उस पर भूख के
मारे आते कुलबुला रही थीं।''ये लो,''विवियन चप्पल फटफटाती पूरे
बँगले की परिक्रमा कर, फिर उनके सम्मुख खड़ी होकर हँसने लगी, ''हम
सारा बँगला ढूँढ़ आये कि आण्टी कहीं हैं और आण्टी सामने लेटी
सनबाथ ले रही हैं।''
हरी दूब से सँवरे मखमली लॉन में, एक इन्द्रधनुषी विराट् छाते के
नचिए, पिकनिक मैट्रेस पर, साधुओं की-सी दो गिरह की लँगोट, और
पट्टी-सी पतली कंचुकी में, विवियन की पूतना-सी अण्टी, आँखों पर
धूप का चश्मा लगाये चित पड़ी सूर्यस्नान कर रही थीं।
''बॉवी!'' विवियन ने बीबी को हाथ पकड़कर उठा दिया। ''अभी तो आण्टी
नहायी भी नहीं, उनके सनबाथ का ही रिच्युअल चल रहा है। तुम जाकर
साइमन से कह दो, हाजिरी लगा दें। कली बेचारी बहुत भूखी है...''
आण्टी की भूधराकार देह देखकर कली सहम गयी। यह औरत थी कि गैंडा!
एक तो शायद आण्टी के धराशायी होने की विचित्र मुद्रा में, उनका
बेडौल मुटापा, किसी अँटे-सँटे सीमेण्ट के फटे बोरे से झरे
सीमेण्ट की ही भाँति ज़मीन पर गिरकर चारों ओर फैल-सा गया था।
दोनों मोटी-मोटी बाँहों और पुराने बरगद के मोटे तने-सी पुट
टाँगों को फैलाये, वे किसी मोटर के पहिये के नीचे पिचकी मोटी
मेंढकी-सी अचल पड़ी, सनबाथ ले रही थीं।
''इधर आण्टी स्लिमिंग के चक्कर में हैं।'' विवियन ने शायद कली की
आश्चर्यचकित सहमी दृष्टि के चोर को पकड़ लिया था। ''एक तो हाई
ब्लडप्रेशर है, उस पर यह मुटापा! डाँक्टर का कहना है कि कभी यही
मुटापा इनके प्राण ले सकता है। पर आण्टी की वीकनेस ही खाना है।
दिन-भर सब्जियों का पानी पीकर काट लेंगी, पर शाम को हम सबकी नजर
बचाकर क्वालिटी में बैठ, एक-साथ डेढ़ दर्जन
पेस्ट्री ही खा लेंगी। इसी बदपरहेज़ी से तो इस हफ्ते आण्टी ने
अपना वजन फिर तीन पौण्ड बढ़ा लिया है। चल, तू हाथ-मुँह धो ले।
तुझे तो बहुत भूख लगी है ना?"
सचमुच ही भूख के मारे कली के प्राण कण्ठगत हो आये थे। गुड़िया के
घरौंदे-से छोटे-छोटे कमरों की सज्जा देखकर कली अपनी भूख और थकान
भूल गयी थी।
"यह मेरा कमरा है, यहीं मैंने तेरा पलँग भी लगवा लिया है। कितना
मजा आएगा कली," विवियन ने उसे खींचकर, अपने गुदगुदे पलँग पर बिठा
दिया। "ठीक जैसे रैमनी की डौम में पहुँच गयी हूँ! पता नहीं तक
क्यों कलकत्ता चली गयी। मैं तो कहती हूँ फिर यहीं चली आ। तू मेरी
इस आण्टी से मिलेगी तो फिर कभी इलाहाबाद छोड़कर जाने का नाम भी
नहीं लेगी। ले, लगता है आण्टी आ गयीं। "अधलेटी कली सँभलकर बैठ
गयी।
"ओ माई डियर, क्या ताक़त है सूरज में! लग रहा है एक बार फिर सोलह
साल की हो गयी हूँ। "मुसकराती आण्टी द्वार पर खड़ी थीं।
"अच्छा, यह है तुम्हारी कली! वाह एकदम वही नक्शा है, जो जवानी
में कभी हमारा था।''
एक लम्बी साँस खींचकर आण्टी ने कली के आकर्षक अंगों पर अपनी
मुग्ध दृष्टि का फ़ोकस ऐसे बाँधकर रख दिया कि जो कली कभी पुरुषों
की ऐसी ही प्रशंसात्मक दृष्टि को भी अपने धृष्ट स्वभाव की ढाल से
झेल लेती थी, वह आज एक स्त्री की ही मुग्ध दृष्टि के वार के नीचे
लाल पड़कर रह गयी।
"थर्टीफ़ोर, नाइनटीन, थर्टीसिक्स, आई कैन बेट, यही इस नक्शे का
माप-दण्ड होगा। क्यों है ना कली? वाह, बहुत दिनों बाद एक सुन्दर
चेहरा और सुन्दर फ़िगर देखने को मिला। "बड़े-बड़े गुलाब बने
ड्रेसिंग गाउन में आण्टी की विराट् देह और भी चौरस लग रही थी।
"विवियन बेटी," आण्टी कहने लगीं, "आज मैं देर में नहाऊँगी। चलो,
पहले नाश्ता निबटा लें, कली तो भूखी होगी!''
खाने के कमरे की चमकती मेज के सिरे पर, सबसे चौड़ी कुरसी पर आण्टी
बैठती कहने लगीं, "अपनी इमारत की पूरी लम्बाई-चौड़ाई का क्षेत्रफल
देकर मैंने यह कुरसी बनवायी है कली, देख रही हो ना? इसमें
तुम्हारी-सी सात कलियाँ एक साथ समा सकती हैं! आओ, तुम मेरे पास
बैठोगी!" कली का हाथ खींचकर आण्टी ने उसे अपने पास बिठा लिया।
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