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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण

शिवपुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1190
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


महेश्वरि! जो रुद्राक्ष बेर के फल के बराबर होता है वह उतना छोटा होनेपर भी लोक में उत्तम फल देनेवाला तथा सुख-सौभाग्य की वृद्धि करनेवाला होता है। जो रुद्राक्ष आँवले के फल के बराबर होता है वह समस्त अरिष्टों का विनाश करनेवाला होता है तथा जो गुंजाफल के समान बहुत छोटा होता है वह सम्पूर्ण मनोरथों और फलों की सिद्धि करनेवाला है। रुद्राक्ष जैसे-जैसे छोटा होता है वैसे-ही-वैसे अधिक फल देनेवाला होता है। एक-एक बड़े रुद्राक्ष से एक-एक छोटे रुद्राक्ष को विद्वानों ने दसगुना अधिक फल देनेवाला बताया है। पापों का नाश करने के लिये रुद्राक्ष-धारण आवश्यक बताया गया है। वह निश्चय ही सम्पूर्ण अभीष्ट मनोरथों का साधक है। अत: अवश्य ही उसे धारण करना चाहिये। परमेश्वरि! लोक में मंगलमय रुद्राक्ष जैसा फल देनेवाला देखा जाता है वैसी फलदायिनी दूसरी कोई माला नहीं दिखायी देती। देवि! समान आकार-प्रकार वाले, चिकने, मजबूत, स्थूल, कण्टकयुक्त (उभरे हुए छोटे-छोटे दानोवाले) और सुन्दर रुद्राक्ष अभिलषित पदार्थों के दाता तथा सदैव भोग और मोक्ष देनेवाले हैं। जिसे कीड़ों ने दूषित कर दिया हो, जो टूटा-फूटा हो, जिसमें उभरे हुए दाने न हों, जो व्रणयुक्त हो तथा जो पूरा-पूरा गोल न हो, इन पाँच प्रकारके रुद्राक्षों को त्याग देना चाहिये। जिस रुद्राक्ष में अपने-आप ही डोरा पिरोने के योग्य छिद्र हो गया हो, वही यहाँ उत्तम माना गया है। जिसमें मनुष्य के प्रयत्न से छेद किया गया हो, वह मध्यम श्रेणी का होता है। रुद्राक्ष-धारण बड़े-बड़े पातकों का नाश करनेवाला है। इस जगत् में ग्यारह सौ रुद्राक्ष धारण करके मनुष्य जिस फलको पाता है उसका वर्णन सैकड़ों वर्षों में भी नहीं किया जा सकता। भक्तिमान् पुरुष साढ़े पाँच सौ रुद्राक्ष के दानों का सुन्दर मुकुट बना ले और उसे सिरपर धारण करे। तीन सौ साठ दानों को लंबे सूत्र में पिरोकर एक हार बना ले। वैसे-वैसे तीन हार बनाकर भक्तिपरायण पुरुष उनका यज्ञोपवीत तैयार करे और उसे यथास्थान धारण किये रहे।

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