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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण

शिवपुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1190
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


इसके बाद किस अंग में कितने रुद्राक्ष धारण करने चाहिये, यह बताकर सूतजी बोले- महर्षियो! सिर पर ईशान-मन्त्र से, कान में तत्पुरुष-मन्त्र से तथा गले और हृदय में अघोर-मन्त्र से रुद्राक्ष धारण करना चाहिये। विद्वान् पुरुष दोनों हाथों में अघोर-बीजमन्त्र से रुद्राक्ष धारण करे। उदरपर वामदेव-मन्त्र से पंद्रह रुद्राक्षों द्वारा गुँथी हुई माला धारण करे अथवा अंगों सहित प्रणव का पाँच बार जप करके रुद्राक्ष की तीन, पाँच या सात मालाएँ धारण करे अथवा मूलमन्त्र (नम: शिवाय) से ही समस्त रुद्राक्षों को धारण करे। रुद्राक्षधारी पुरुष अपने खान-पान में मदिरा, मांस, लहसुन, प्याज, सहिजन, लिसोड़ा आदि को त्याग दे। गिरिराजनन्दिनी उमे! श्वेत रुद्राक्ष केवल ब्राह्मणों को ही धारण करना चाहिये। गहरे लाल रंग का रुद्राक्ष क्षत्रियों के लिये हितकर बताया गया है। वैश्यों के लिये प्रतिदिन बार-बार पीले रुद्राक्ष को धारण करना आवश्यक है और शूद्रों को काले रंग का रुद्राक्ष धारण करना चाहिये - यह वेदोक्त मार्ग है। ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ, गृहस्थ और संन्यासी - सबको नियमपूर्वक रुद्राक्ष धारण करना उचित है। इसे धारण करने का सौभाग्य बड़े पुण्य से प्राप्त होता है। उमे! पहले आँवले के बराबर और फिर उससे भी छोटे रुद्राक्ष धारण करे। जो रोगी हों, जिनमें दाने न हों, जिन्हें कीड़ों ने खा लिया हो, जिनमें पिरोनेयोग्य छेद न हों, ऐसे रुद्राक्ष मंगलाकांक्षी पुरुषों को नहीं धारण करने चाहिये। रुद्राक्ष मेरा मंगलमय लिंग-विग्रह है। वह अन्ततोगत्वा चने के बराबर लघुतर होता है। सूक्ष्म रुद्राक्ष को ही सदा प्रशस्त माना गया है। सभी आश्रमों, समस्त वर्णों, स्त्रियों और शूद्रों को भी भगवान् शिव की आज्ञा के अनुसार सदैव रुद्राक्ष धारण करना चाहिये। यतियों के लिये प्रणव के उच्चारणपूर्वक रुद्राक्षधारण का विधान है। जिसके ललाट में त्रिपुण्ड्र लगा हो और सभी अंग रुद्राक्ष से विभूषित हों तथा जो मृत्युंजय-मन्त्र का जप कर रहा हो, उसका दर्शन करने से साक्षात् रुद्र के दर्शन का फल प्राप्त होता है।

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