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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण

शिवपुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1190
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

अध्याय २५

 

रुद्राक्षधारण की महिमा तथा उसके विविध भेदों का वर्णन


सूतजी कहते हैं- महाप्राज्ञ! महामते! शिवरूप शौनक! अब मैं संक्षेप से रुद्राक्ष का माहात्म्य बता रहा हूँ, सुनो। रुद्राक्ष शिव को बहुत ही प्रिय है। इसे परम पावन समझना चाहिये। रुद्राक्षके दर्शनसे, स्पर्शसे तथा उसपर जप करनेसे वह समस्त पापोंका अपहरण करनेवाला माना गया है। फ्रे! पूर्वकालमें परमात्मा शिवने समस्त लोकोंका उपकार करनेके लिये देवी पार्वतीके सामने रुद्राक्षकी महिमाका वर्णन किया था।

भगवान् शिव बोले- महेश्वरि शिवे! मैं तुम्हारे प्रेमवश भक्तों के हित की कामना से रुद्राक्ष की महिमा का वर्णन करता हूँ, सुनो। महेशानि! पूर्वकाल की बात है मैं मन को संयम में रखकर हजारों दिव्य वर्षों तक घोर तपस्या में लगा रहा। एक दिन सहसा मेरा मन क्षुब्ध हो उठा। परमेश्वरि! मैं सम्पूर्ण लोकों का उपकार करनेवाला स्वतंत्र परमेश्वर हूँ। अत: उस समय मैंने लीलावश ही अपने दोनों नेत्र खोले, खोलते ही मेरे मनोहर नेत्रपुटों से कुछ जल की बूँदें गिरीं। आँसू की उन बूँदों से वहाँ रुद्राक्ष नामक वृक्ष पैदा हो गया। भक्तों पर अनुग्रह करनेके लिये वे अश्रुबिन्दु स्थावर भाव को प्राप्त हो गये। वे रुद्राक्ष मैंने विष्णुभक्त को तथा चारों वर्णों के लोगों को बाँट दिये। भूतलपर अपने प्रिय रुद्राक्षोंको मैंने गौड़ देशमें उत्पन्न किया। मथुरा, अयोध्या, लंका, मलयाचल, सह्यगिरि काशी तथा अन्य देशोंमें भी उनके अंकुर उगाये। वे उत्तम रुद्राक्ष असह्य पापसमूहों का भेदन करनेवाले तथा श्रुतियों के भी प्रेरक हैं। मेरी आज्ञा से वे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र जाति के भेद से इस भूतल पर प्रकट हुए। रुद्राक्षों की ही जातिके शुभाक्ष भी हैं। उन ब्राह्मणादि जातिवाले रुद्राक्षों के वर्ण श्वेत, रक्त, पीत तथा कृष्ण जानने चाहिये। मनुष्यों को चाहिये कि वे क्रमश: वर्ण के अनुसार अपनी जाति का ही रुद्राक्ष धारण करें। भोग और मोक्ष की इच्छा रखनेवाले चारों वर्णों के लोगों और विशेषत: शिवभक्तों को शिव-पार्वती की प्रसन्नता के लिये रुद्राक्ष के फलों को अवश्य धारण करना चाहिये। आँवले के फल के बराबर जो रुद्राक्ष हो, वह श्रेष्ठ बताया गया है। जो बेर के फल के बराबर हो, उसे मध्यम श्रेणी का कहा गया है और जो चने के बराबर हो, उसकी गणना निम्नकोटि में की गयी है। अब इसकी उत्तमता को परखने की यह दूसरी उत्तम प्रक्रिया बतायी जाती है। इसे बताने का उद्देश्य है भक्तों की हितकामना। पार्वती! तुम भली भांति प्रेमपूर्वक इस विषय को सुनो।

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