7. शनि का गोचर
7.1 जन्म सूर्य पर शनि का गोचर आजीविका क्षेत्र में कठिन परिश्रम द्वारा उन्नति व सफलता देता है। या यूं कहें कि जातक की मेहनत रंग लाती है जिससे उसे धन व यशं की प्राप्ति होती है। कभी अतिरिक्त नए दायित्व का बोझ भी अवश्य पड़ता है। निश्चय ही लम्बे अर्से से चली आ रही बाधा व परेशानी दूर होती है और काम चल पड़ता है। यदि सूर्य हीन बली या पीड़ित हो तो दुर्घटना या षडयंत्र में फंसने से धनहानि व कष्ट की संभावना बढ़ती है। कभी प्रमाद, आलस्य या हठ और दुराग्रह के कारण असफलता मिलती है। पूर्वजों को धन-संपदा की प्राप्ति होती है किन्तु मनोमालिन्य व वैर-विरोध वाँछित सुख नहीं होने देता। यदि सूर्य बत्नी व शुभ हो तो जातक बच्चों और गरीब कर्मचारियों के सहयोग से उन्नति कर धन व यश पाता है। अनेक विद्वानों ने सूर्य पर शनि के गोचर को अशुभ व अनिष्टप्रद माना है। कभी पत्नी से मतभेद या अलगाव होता है तो राजनीति से जुड़े नेता बेड़ी कठिनाई व ठोस कार्यों से ही अपनी साख बचा पाते हैं। हाँ, समाज के गरीब वर्ग के कल्याण हेतु किए गए प्रयास यदि सच्चे मन से किए जाएँ तो निश्चय ही जनता का स्नेह व समर्थन भरपूर मात्रा में मिलता है। कारण, सूर्य राजा है तो शनि सेवक है। यूं तो दोनों में परस्पर वैर-विरोध है किन्तु राजा यदि प्रजावत्सल हो तो शनि उसको भरपूर समर्थन देता है। कारण, शनि अभावग्रस्त व पीड़ित वर्ग का प्रतिनिधि ही नहीं उसका हितैषी भी है।
7.2 जन्म चंद्रमा पर शनि का गोचर स्वभाव में शालीनता व सौम्यता देता है। जातक विनम्र, पर-दुखकातर व दयालु होता
यदि उपचय भाव अर्थात् 3,6,10,11 वें भाव में हो तो उस पर शनि का गोचर धन, स्वास्थ्य व सम्मान और सुख वैभव देता है। परिश्रम का परिणाम निश्चय ही शुभ होता है किंतु बहुधा मन में चिंता, बेचैनी व संताप की स्थिति बनी रहती है। यदि ये गोचर मारक दशा में आए तो जातक जटिल रोग से कष्ट (या मृत्यु भी) पाता है। कभी विवाद या झगड़े के कारण कारावास का भय होता है। घर व कार्यक्षेत्र में तनाब, मतभेद, चिंता, क्लेश, मानसिक अवसाद को बढ़ता है। विद्वानों ने इसे साढ़ेसाती का मध्य भाग या हृदय पर शनि कहा है। यदि यह जीवन की तीसरी या चौथी साढ़ेसाती हो तब तो परिणाम कुछ ज्यादा ही अनिष्टप्रद व दुखदायी हुआ करते हैं।
7.3 जन्म मंगल पर शनि का गोचर साहस, शौर्य व पराक्रम बढ़ाता है। जातक की विश्लेषण शक्ति तथा अच्छे-बुरे की पहचान व व्यक्ति को परखने की क्षमता बढ़ जाती है। सही निर्णय, कठिन परिश्रम व सार्थक पहल कार्य सिद्धि व उत्कृष्ट सफलता में सहायक होती है। कभी भाइयों पर व्यय होता है और शत्रुओं पर विजय मिलती है। कोई जातक व्यर्थ ही झगड़ा करने व अनुचित बल प्रयोग में सुख मानता है जिससे परेशानियाँ बढ़ जाती हैं। लग्न से 3,6,11 वें भाव (त्रिषडाय) में स्थित मंगल पर शनि का गोचर राजसी सुख-वैभव की वृद्धि कर राजा सरीखा प्रतापी बनाता है। बड़ी विचित्र विडंबना तो ये है कि जातक को पैतृक संपदा तो अवश्य मिलती है किंतु सुख नहीं मिलता। भाइयों से विवाद या असफलता जनित क्लेश मन को दुख के अंधकार से भर देता है। कभी दुर्घटना, अग्नि या आग्नेयास्त्र से अंग-भंग या देह-पीड़ा की संभावना बढ़ती है। कभी अत्यधिक क्रोध, मानसिक संतुलन बिगाड़े कर ऐसा अपराध कराता है कि उसका प्रायश्चित कर पाना संभव नहीं होता। कारण, मंगल बल, पराक्रम व साहस है तो शनि दुःख है। अतः दुस्साहस में जोखिमपूर्ण कार्य दुःख का कारण बन जाता है।
7.4 जन्म बुध पर शनि का गोचर जातक की सूझ-बूझ, दक्षता व आत्म विश्वास पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। उसकी कार्य पद्धति दोष पूर्ण तथा परियोजना असंतुलित होने से असफलता हाथ लगती है। कभी तो ऐसा जातक अपने मित्रों तथा सहयोगियों का विश्वास, सहयोग, वे समर्थन पाने में भी असफल रहता है। जातक में प्रतिशोध की भावना प्रबल हो जाती है। वह कर्म से अधिक प्रतिक्रियाओं (Reaction) में यकीन कर अपनी असफलता का सूत्रधार बनं जाता है। यदि बुध बली व शुभ हो तो जातक लेखन, प्रकाशन व साहित्य संबंधी कार्यों में सफलता पाता है। आधुनिक शोधकर्ताओं की मान्यता है कि बुध परिवहन, पर्यटन व दूरसंचार माध्यम से जुड़ा है, लिखना-पढ़ना व खेल-कूद इसका शौक है। शनि भी अभावग्रस्त वर्ग का प्रतिनिधि है। यदि समाज के कमजोर वर्ग के लिए जातक शिक्षा, खेलकूद या परिवहन व्यवस्था करे तो निश्चय ही धन व सुयश पाएगा।
7.5 जन्म गुरु पर शनि का गोचर कभी मन को अशांत व संतप्त करता है। कोई जातक श्रद्धा, विश्वास तथा आस्था के मार्ग से भटक जाता है तथा कठोर परिश्रय करने पर भी स्वल्प सुख पाता है। उसे पैतृत संपदा तो मिलती है। किन्तु सुखशांति शायद नहीं मिल पाती। यदि जन्मकुंडली का गुरु शुभ स्थान में है तो सूझ-बूझ व योजनाबद्ध तरीके से किया गया काम सफलता व सुयश देता है। किन्तु अनिष्ट स्थान में बैठे गुरु पर शनि का गोचर व्यर्थ का परिश्रम व भटकाव देता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि यदि नैतिकता व अनुशासन को मान कर निस्वार्थ भाव से सेवा कार्य किया जाए तो निश्चय ही सफलता मिलती है। कारण, शनि तपस्वी है तो गुरु धर्म व अध्यात्म का समर्थक है। अतः इस अवधि में सत्य, समता व न्यायपूर्वक, कार्य करना शुभ परिणाम देगा।
7.6 जन्म शुक्र पर शनि का गोचर सभी जिम्मेदारियाँ देता है। कभी तो जातक स्वयं को बहुत अकेला पाता है मानो होड़ तोड़-परिश्रम उसकी नियति हो। कोई जातक दिन में 16 या 20 घंटे परिश्रम करता है तथा अपने सुख, सुविधा या विश्राम की तनिक भी चिन्ता नहीं करता। काम का नशा या भूत मानो उसके सिर पर सवार रहता है। उसे संबंधियों की सहायता मिलती है। अपनी आर्थिक स्थिति व प्रगति किसी को बताना अनिष्ट परिणाम देगा। कारण, शुक्र धन, वैभव तथा प्रणय सुख का कारक है तो शनि बोझ ढोने वाला श्रमिक सरीखा है। अतः शुओं पर शनि का गोचर कार्य क्षेत्र में बहुत अधिक परिश्रम कर सुख-सुविधा जुटाने की प्रवृत्ति देता है।
7.7 जन्म शनि पर शनि का गोचर लगभग 80 वर्ष में एक बार होता है। इसे विद्वानों ने परिवर्तन व प्रगति का कारक माना है। पहले योग में नौकरी, विवाह, संतान व ससुराल के लोगों से संबंध जिन्दगी में बदलाव लाते हैं। तो दूसरी बार युति होने पर जातक वृद्धावस्था की देहलीज पर होता है। उसके बच्चे बड़े हो जाते हैं। कभी नौकरी या घर बदलने की आवश्यकता पड़ती है। कोई जातक अपना काम व अपना मकान का सपना साकार करता है। बहुधा आधे अधूरे या रुके काम पूरे हो जाते हैं। मनुष्य में आशा, उत्साह व उमंग का संचार होता है। जातक बाबा या नाना के रूप में दूसरी पारी खेलने के . लिए स्वयं को तैयार करता है। शोधकर्ताओं ने जन्मशनि पर गोचर शनि को बहुत शुभ व कल्याणकारी माना है। प्रायः यह भाग्योदय में सहायक होता है।
7.8 जन्म राहु पर शनि का गोचर कभी धर्म व नैतिक मूल्यों के प्रति अनास्था, व अविश्वास या अंश्रद्धा देता है। जातक की धर्म व धार्मिक कृत्यों में रुचि नहीं रहती है। वह इन सब बातों का उपहास करता है तो कभी इन कृत्यों को हेय दृष्टि से देखता है। कार्यक्षेत्र या नौकरी में बाधा पड़ने से आर्थिक संकट बढ़ता है। कभी मन व्यर्थ की चिन्ताओं में उलझकर संताप पाता है। कभी मित्र व सहयोगियों से कट जाने के कारण जातक स्वयं को एकाकी पाता है। अकेलापन उसको भीतर से तोड़ता है। यदि जातक निस्वार्थ भाव से जनता की सेवा करे या लोककल्याण के कार्यों से जुड़े तो निश्चय ही समय भली प्रकार बीता है। कारण, शनि लौकिक सुख के प्रति मोह भंग कर अनासक्ति देता है तो राहु भी घर परिवार से दूर करने वाला विच्छेदक ग्रह है। अतः सांसारिक बन्धन तोड़कर स्वयं को जनकल्याण में समर्पित करना ही शुभ फल देगा।
7.9 जन्म कुंडली के केतु पर शनि का गोचर धर्म व समाज विरोधी अनैतिक कार्यों में रुचि देता है। धर्म व नैतिकता में उसकी आस्था नहीं होती। कोई जातक हीन भावना से पीड़ित होने के कारण मिथ्याचार वे कपट का आश्रय लेता है। उसे असफलता व असंतोष का मुँह देखना पड़ता है। निश्चय ही यह अंशुभ व अनिष्टप्रद गोचर है जिसमें धैर्य, सावधानी व अनुशासन बना। रखना नितान्त आवश्यक है। कभी निकट संबंधी प्रियजन की मृत्यु या वियोग का दुःख भी झेलना पड़ता है। नए काम या परियोजना आरंभ करने के लिए
यह समय ठीक नहीं।
टिप्पणी :
शनि मन्दगामी ग्रह होने से सुदीर्घकाल तक प्रभावी रहता है। शनि महादशा में शनि का गोचर विशेष परिणाम देता है तथा जीवन में उतार-चढ़ाव ' का कारण बनता है। सद्भाव, सहयोग, सेवा व समर्पण शनि के अनिष्ट प्रभाव दूर कर शुभता की वृद्धि करता है।
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