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लघुपाराशरी सिद्धांत

एस जी खोत

प्रकाशक : मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :630
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 11250
आईएसबीएन :8120821351

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5. गुरु का गोचर


(गुरु किसी भी राशि में लगभग एक वर्ष रहता है। यह 235 दिन मार्गी तथा 120 दिन वक्री रहता है। मार्गी से वक्री होते समय लगभग 5 दिन तक स्थिर रहता है। इसके बाद पुनः वक्री से मार्गी होने से पहले लगभग 5 दिन तक गुरु स्थिर रहता है।)

5.1 जन्म सूर्य पर गुरु का गोचर स्वास्थ्य, सम्मान तथा समृद्धि एवम सुयश देता है। कारण दोनों ही सात्विक पुरुष ग्रह परस्पर मित्र भी हैं। कुछ विद्वानों ने इसे कार्य क्षेत्र या आजीविका के लिए नए युग का आरंभ माना है। साहित्य साधना या धार्मिक कृत्यों से अथवा तीथटिन या पर्यटन से विशेष लाभ होता है। कार्यक्षेत्र में प्रगति , विस्तार या पदोन्नति से धन व यश की वृद्धि होती है। कभी अचानक ऐसे व्यक्ति से मेल-मिलाप होता है। जो प्रगाढ़ मित्र व सच्चा हितैषी वन जाता है। पूंजी निवेश से बचना श्रेष्ठ है, अन्यथा पैसा डूब सकता है। यदि पिता और पुत्र एक ही घर में रहें तो निश्चय ही लाभ अधिक होता है।

5.2 जन्म चंद्रमा पर गुरु का गोचर उच्च अधिकार व सत्ता सुख दिलाता है। शत्रु पर विजय मिलती है। पत्नी कोमल स्वभाव की विनम्र व आज्ञाकारिणी होती है। वह सत्यनिष्ठ, कर्तव्य कुशल तथा स्नेहपूर्ण सहयोग देनेवाली होती है। बड़े भाई-बहन का उत्तम सुख होता है। चित्त शान्त व प्रसन्न रहता है। कभी नेत्र रोग या दृष्टि दोष की संभावना बढ़ती है। यदि 3, 6, 8वें भाव को छोड़कर अन्यत्र कहीं भी हो तो उस पर गुरु का गोचर निश्चय ही उन्नति व धन लाभ दिया करता है। कभी महिलाओं से लाभ व सुख की प्राप्ति भी होती
है।

5.3 जन्म के मंगल पर गुरु का गोचर उत्साह, साहस व शौर्य की वृद्धि करता है। जातक का भाग्योदय होने से उसकी आर्थिक व सामाजिक सिथति सुधरती है। कभी सौम्य व सदाचारी पुत्र भी थोड़ा कर्कश व आक्रामक हो जाता है। निश्चय ही धन कमाने के लिए अधिक परिश्रम करना पड़ता है। कभी दुर्घटना का भी भय हुआ करता है। थोड़ी सतर्कता व सावधानी रखना आवश्यक है। नए काम था नई योजना को शुरू करने के लिए यह समयं श्रेष्ठ माना जाता है। मंगल सेनापति, रणनीति बनाने में कुशल तथा वृहत साहसी वै पराक्रमी है। तो गुरु भी धन, मान व यश देने वाला ग्रह है। दोनों का योग प्रायः श्रेष्ठ परिणाम देता है।

5.4 जन्म के बुध पर गुरु का गोचरं मानो सभी ओर से धन की वर्षा करता है। कारण, दोनों ग्रह धन देने वाले हैं। शत्रु भयभीत होकर छिप जाते हैं तो मित्र अपने स्नेह, सहयोग व समर्थन से कारोबार बढ़ाकर धन लाभ में सहायक होते हैं। कोई संगीत या वाद्य यंत्रों से लाभ पाता है। उसका आत्मविश्वास बढ़ता है। शायद बुध पर गुरु का गोचर सभी प्रकार के सुखों को बढ़ाता है।

5.5 जन्म के गुरु पर गोचर वंश गुरु का आना मानो 12 वर्ष की अवधि के लिए नई दिशा का आरंभ करता है। जीवन में सुखदायी मोड़ आता है। भाग्यवृद्धि होती है। जातक धन, मान व यश पाता है। कभी राजा सरीखा प्रतापी व प्रतिष्ठित व्यक्ति का स्नेहपूर्ण सहयोग मिलता है। शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति व सफलता मिलती है। यात्रा या पर्यटन से लाभ होता है। नई योजना व पूंजी निवेश के लिए यह समय बहुत श्रेष्ठ होता है। निश्चय ही जन्म गुरु पर गुरु का गोचर बहुत शुभ व श्रेष्ठ परिणाम देता है।

5.6 जन्म के शुक्र पर गुरु का गोचर सभी भ्रान्तियाँ व मतभेद मिटाकर स्नेह व सौमनस्थ पूर्ण वातावरण बनाता है। कभी तो नए व लाभकारी संबंध रोमांस का सुख देते हैं। तुनकमिजाज़ी क्रोधाधिक्य निश्चय ही भयावह सिद्ध होता है। कारण, शुक स्नेह, सहयोग व समर्पण चाहता है तो गुरु भी सत्य, न्याय व समता का पोषक है। क्रोध पर नियंत्रण करना जरूरी है। खान-पान में भी उचित सावधानी बरतें अन्यथा स्वास्थ्य चौपट हो सकता है। जीवन स्तर ऊँचा उठता है तथा इस अवधि में जातक मान, सम्मान व सुयश पाता है।

5.7 जन्म शनि पर गुरु का गोचर राजसम्मान व सत्ता सुख दिलाता है। शनि यदि जन्म राशि से 3,6,10,11 वें भाव में हो तो निश्चय ही शुभ परिणाम मिलते हैं। यदि जन्म शनि, चंद्र लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम या व्यय भाव में हो तो धन नाश, अपमान, दैन्य व दरिद्रता सरीखे अनष्टि फल प्राप्त होते. हैं। इसके विपरीत जन्म या चंद्र लग्न से 3.6,10,11 वें भाव में स्थित शनि पर गुरु का गोचर धन, मान व पद प्रतिष्ठा दिलाता है। जातक उन्नति कर सत्ता सुख पाता है। कभी नौकरी या निवास परिवर्तन की संभावना बढ़ती है।

5.8 जन्म के राहु पर गुरु का गोचर सामाजिक स्थिति बेहतर बनाता है। जातक की कार्यक्षमता व कुशलता की सराहना होती है। उसका आत्मविश्वास बढ़ता है। कभी अन्य धर्म व जाति के नियम व आचरण में सहज रुचि होती है। यदि ऐसा गुरू, चंद्रमा से त्रिकोण भाव में हो तो जुआ, सट्टा या शेयर आदि से भाग्योदय की संभावना बढ़ती है। अनेक विद्वानों ने राहु को मुस्लिम या विधर्मी कहा है इस पर धर्म व अध्यात्म का कारक गुरु गोचर करे तो मुस्लिम सूफी संतों के प्रति श्रद्धा प्रेम होना स्वाभाविक है।

5.9 जन्म केतु पर गुरु का गोचर समाज में जातक की छवि धूमिल करता है।

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    अनुक्रम

  1. अपनी बात
  2. अध्याय-1 : संज्ञा पाराशरी

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