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वास्तु एवं ज्योतिष >> लघुपाराशरी सिद्धांत

लघुपाराशरी सिद्धांत

एस जी खोत

प्रकाशक : मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :630
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 11250
आईएसबीएन :8120821351

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3. मंगल का गोचर


3.1 जन्म के सूर्य पर मंगल का गोचर बहुधा अनिष्ट परिणाम देता है। देह में उष्मा या पित्त प्रकोप से ज्वर, फोड़े, फुन्सी, दुर्घटना या अग्नि से भय की संभावना बढ़ती है। यदि गोचर तथा जन्मकालीन मंगल सूर्य से ग्रस्त नहीं है तो मान, सम्मान और बल-प्रताप में निश्चय ही वृद्धि होती है। किन्तु वैर, विरोध या वैमनस्य की घटनाएँ बढ़ने से मन में उद्विग्नता व क्षोभ की मात्रा भी प्रायः बढ़ती है।

3.2 जन्म चंद्र पर मंगल का गोचर माता से मतभेद या वैर विरोध देता है। कोई जातक छल-कपट का आश्रय लेकर दूसरों को ठंगने का प्रयत्न करता है। अग्नि या विद्युतपरक कार्यों में सफलता मिलती है। कभी-कभी महिला से प्रणय संबंध सुख व सफलता के लिए अनुकूल सिद्ध होते हैं, अनेक विद्वानों ने मंगल को वक्री या उलटे काम करने वाला माना है। कभी बल व साहस स्वार्थ की ओर मुड़े तो निश्चय ही पर-धन व परदारा में आसक्ति बढ़ना स्वाभाविक है।

3.3 जन्म के मंगल पर मंगल का गोचर देह में बल, ऊर्जा व शक्ति बढ़ा कर व्यक्ति को ऊर्जावान, उत्साह युक्त व पराक्रमी बनाता है। ऐसा जातक उच्च मनोबल व साहस पूर्वक परिश्रम कर कठिन व दुसाध्य कार्य संपन्न कर धन व यश पाता है। खेल-कूद या परिश्रम साध्य स्पर्धा में सफलता मिलती है। महिलाएँ जातक के प्रति आकर्षित होती हैं किंतु उनसे बचना ही हितकर है; अन्यथा अपमान व अपयश के साथ असफलता का क्लेश भी झेलना पड़ता है। नए काम काज या प्रौजेक्ट (परियोजनाओं) के काम में उन्नति व सफलता प्राप्त होती है किन्तु विरोध में आलोचना भी बहुधो कुछ ज्यादा होती है। बेहतर होगा संयम व संतुलन कायम कर सूझ-बूझ के साथ आगे बढ़े।

3.4 जन्म के बुद्ध पर मंगल का गोचर मन को चंचल और अस्थिर बनाता है। कोई जातक परान्नसेवी (दूसरों के यहां भोज पाने वाला) तथा थोड़े में संतोष करने वाला होता है। यदि बुध केन्द्र स्थान में हो तो उस पर मंगल का गोचर औषधि या रसायन के व्यापार में लाभ देता है। कभी विवाह या वैवाहिक सुख भी अवश्य होता है तो कोई जातक किसी दुष्ट महिला से संबंध बनाने के कारण कलंक व अपयश का भागी होता है। व्यर्थं के मुतभेद परस्पर वैर-विरोध बढ़ता है। इस समय धैर्य और व्यवहार कुशलता को बनाए रखना आवश्यक
होता है।

3.5 जन्मकालीन गुरु पर मंगल को गोचर जातक के आचरण को प्रशंसनीय व धर्मानुकूल बनाता है। वह शत्रु को भी अपने गुणों से प्रभावित कर उसे मित्र बनाने में सक्षम होता है। पद, प्रतिष्ठा व धन की प्राप्ति होती है। कभी ज्योतिष, मंत्र व तंत्र शास्त्र में सफलता मिलती है। कठिन और विपरीत परिस्थतियों में दैवीय व अनापेक्षित सहायता मिलती है। परिश्रम अधिक करना पड़ता है किंतु लाभ की मात्रा भी अवश्य बढ़ती है। रोग, शोक से मुक्ति मिलती है, स्वास्थ्य लाभ मिलता है, कुल मिलाकर इस गोचर का प्रभाव प्रायः शुभ हुआ करता है।

3.6 जन्म के शुक्र पर मंगल का गोचर स्वभाव में जल्दबाजी और भावुकता बढ़ाता है। कभी काम-पिपासा मर्यादा तोड़ती जान पड़ती है। कोई जातक भावना में बह कर व्यभिचार, बलात्कार या पशुवत आचरण से रति सुख पाना चाहता है। यदि जन्मकुंडली में शुक्र पापदृष्ट्र या पापयुक्त हो तो ऐसे शुक्र पर मंगल का गोचर पति-पत्नी में अबोला, अलगाव व तलाक तक दे सकता है। कभी विवाहेतर संबंध या इसकी अफवाह कलंक व अपयश देता है। ध्यान रहे, विद्वानों ने शुक्र और मंगल के परस्पर संबंध को काम शक्ति, रति सुख देने की क्षमता तथा अमर्यादित व प्रबल कामेच्छा से जोड़ा है। अन्य विद्वानों ने इसे यौनदुराचार का मुख्य कारण माना है। कभी तो शुक्र पर मंगल का गोचर निर्दोष व्यक्ति को भी मिथ्या दोष व कलेक दिया करता है।

3.7 जन्म शनि पर मंगल का गोचर कभी भाइयों से मतभेद तथा वैर-विरोध देता है तो कभी नए शत्रुओं को जन्म देता है। बड़े व महत्वपूर्ण निर्णय करने का शायद ये उचित समय है। जीवन में क्षोभ तथा वात और पित्तजन्य रोगों से क्लेश होता हैं। कभी संबंधी या प्रियजन की मृत्यु या वियोग तो कभी चोरी या डकैती से धन व आभूषणों की हानि भी दुःख बढ़ाती है। कदाचित यह समय संयम, सावधानी व पूरी सतर्कता के साथ रहने का है।

3.8 जन्म के राहु पर मंगल का गोचर जातक को अधिक सक्रिय व उत्साहपूर्वक काम करने वाला बनाता है। उसे भाइयों और मित्रों का सहयोग मिलता है। कार्य क्षेत्र में सफलता से संपन्नता बढ़ती है। खेल-कूद (क्रीड़ा स्पर्धा) में रुचि होती है। कोई जातक रतिसुख लोभी होकर यौन दुराचार में लिप्त होता है तथा कलंक वे अपयश पाता है। मंगल देह बल और मनोबल बढ़ाता है तो राहु
कभी आचरण में दोष या स्वार्थ को बढ़ावा देता है।

3.9 जन्म कुंडली के केतु पर मंगल का गोचर लौकिक सुख संपदा के प्रति लोभासक्ति देता है। जातक पद प्रतिष्ठा के लोभ में पड़कर कभी अनीतिपूर्ण व अनुचित कार्य भी निसंकोच करता है। कुर्सी पाने की दौड़ में शामिल होकर वह अपनी प्रतिष्ठा व कीर्ति को कलंकित करता है तो कभी कार्यक्षेत्र में भी हानि उठाता है। पद लोलुपता या सत्ता लोभ उजागर होने पर मित्रों के सहयोग
व समर्थन से वंचित होना पड़ता है। निश्चय ही इस अवधि में धैर्य, संयम व सावधानी की आवश्यकता होती है।

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    अनुक्रम

  1. अपनी बात
  2. अध्याय-1 : संज्ञा पाराशरी

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