वास्तु एवं ज्योतिष >> लघुपाराशरी सिद्धांत लघुपाराशरी सिद्धांतएस जी खोत
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परिशिष्ट-1
फल कथन के मुख्य नियम
1. नवांश कुंडली
उत्तर भारत में यदि जन्म कुंडली के साथ-साथ चंद्र कुंडली से भी भाव, मावेश और कारक ग्रह का विचार किया जाता है तो दक्षिण भारत के विद्वान नवांश कुंडली को जन्म कुंडली की कसौटी मानते हैं।
उनका विचार है कि-
(1) यदि कोई ग्रह जन्म कुंडली में उच्चस्थ या स्वक्षेत्री हो किन्तु नवांश कुंडली में नीचस्थ या शत्रु-क्षेत्री हो तो उसे अशुभ व अनिष्टप्रद मानना चाहिए।
(2) इसके विपरीत यदि कोई ग्रह जन्म कुंडली में नीचस्थ या पाप पीड़ित किंतु नवांश कुंडली में उच्चस्थ, स्वक्षेत्री व शुभयुक्त अथवा शुभ दृष्ट हो तो ऐसा ग्रह निश्चय ही बहुत शुभ व कल्याणकारी होता है।
अतः भाव संबंधी फल कथन के लिए नवांश कुंडली में भी उस भाव की शुभता का विचार कर के पुष्टि कर लेना आवश्यक है।
2. दशा मुक्ति गणना
जन्म के समय चंद्रमा जिस ग्रह के नक्षत्र में हो उसी ग्रह की प्रथम विंशोत्तरी दशा होती है। यदि जन्म के समय चंद्रमा, शुक्र के नक्षत्र के 10 अंश पार कर चुका हो तो नक्षत्र की तीन पद भुक्त और एक पद भोग्य होने से जन्म के समय शुक्र की चौथाई दशा अर्थात 5 वर्ष भोग्यथा शेप दशा मानी जाएगी।
ध्यान रहे, दशा गणना सौर गणना है। अतः सूर्य जन्म के समय जिस राशि और अंश-कला-विकला हो-पुनः गोचरवश उसी राशि-अंश-कला-विकली घर आने पर एक वर्ष पूर्ण माना जाएगा।
इसी प्रकार सूर्य एक राशि पूरी करने में जो समय लेगा उसे एक मास तथा एक अंश चलने में लगा समय एक दिन और सूर्य को एक कला बढ़ने में लगा समय घरी कहलाता है।
3. मूल त्रिकोण राशि का फल
विद्वानों का मत है कि मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि का दो राशियों पर अधिकार किन्तु अपनी दशा-अन्तर्दशा में वे बहुधा अपनी मूल त्रिकोण राशि वाले भाव का फल दिया करते हैं। उनके विचार से यदि किसी ग्रह की मूल त्रिकोण राशि वाले भाव का फल दिया करते हैं। उनके विचार से यदि किसी ग्रह की मूल त्रिकोण राशि केन्द्र या त्रिकोण में पड़े तो ऐसे ग्रह की दशा में जातक शुभ फल पाता है।
इसके विपरीत जब किसी ग्रह की मूल त्रिकोण राशि दुःस्थान 6, 8, 12 भाव में पड़े तो उस ग्रह की दशा-अन्तर्दशा में विध्न, बाधा, कष्ट-क्लेश पाने की संभावना बढ़ जाती है।
4. चंद्रमा का फल पक्ष-बलानुसार।
चंद्रमा का दशा फल जानने में राशि या भावगत स्थिति से अधिक महत्त्व चंद्रमा के पक्षबल का होता है। अनुभव में आया है कि नीचस्थ चंद्रमा यदि पक्षवली हो तो जातक चंद्रमा की दशा-अन्तर्दशा में शुभ परिणाम पाता है। इसके विपरीत स्वगृही या उच्चस्थ चंद्रमा पक्षबल से हीन हो तो अपनी दशा-भुक्ति में शुभ फल दे पाने में असमर्थ होता है।
5. ग्रहों की आधी व तीन चौथाई दृष्टि
जब ग्रहों के परस्पर दृष्टि संबंध या ग्रह की भाव पर दृष्टि का विचार होता है। तो ध्यान रहे सभी ग्रह-
(i) अपने से तीसरी व 10 वीं राशि को 1/4 चौथाई दृष्टि से,
(ii) अपने से 5वीं व 9वीं राशि को 1/2 आधी दृष्टि से,
(iii) अपने से चौथी व 8 वीं राशि को 3/4 तीन चाथाई दृष्टि से तथा।
(iv) अपने से 7 वीं राशि को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं। शनि अपने स्थान से 5, 7, 10वीं राशि को पूर्ण दृष्टि से देखता है।
मंगल अपने स्थान से 4, 7, 8वीं राशि को पूर्ण दृष्टि से देखता है। गुरू अपने स्थान से 5, 7, 9वीं राशि को पूर्ण दृष्टि से देखता है।
6. मंगल दोष
किसी भी कुंडली का 12H शयन, सुख, लग्न देह व स्वभाव तो 4H मनोदशा या मानसिक सुख संतोष को दर्शाता है। इसी प्रकार 7H या सप्तम भाव वैवाहिक संबंध तथा 8H वैवाहिक सुख की आयु को दर्शाता है। द्वितीय भाव कुटम्ब और वाणी का भाव है। इनमें से किसी भी भाव में स्थित मंगल वैवाहिक जीवन के लिए अशुभ माना जाता है।
कुछ विद्वान मात्र सप्तम भाव पर मंगल की दृष्टि-युति को अशुभ मानते हैं तो अन्य चन्द्र व शुक्र कुंडली में भी मंगल विचार की सलाह देते हैं। यदि जीवन-साथी की कुंडली में 1H, 2H, 4H, TH, 8H, 12H में से कहीं भी मंगल शनि या राहु हो तो मंगल का दुष्प्रभाव नष्ट हो जाता है।
7. भुक्तिनाथ ग्रह का दशानाथ पर प्रभाव
बहुधा परस्पर दृष्टि, स्थान परिवर्तन अथवा युति करने वाले ग्रह एक-दूजे की दशा-अन्तर्दशा में फल दिया करते हैं। ऐसा भी अनुभव में आया है कि पाप ग्रह की अन्तर्दशा शुरू होने पर महादशा के शुभ फल अचानक गायब होने लगते हैं तथा : बुरे परिणाम बढ़ जाते हैं।
यूँ भी शोधकर्ताओं की मान्यता है कि दशानाथ मात्र परिणाम की दिशा निर्धारित करता है। शुभ या अशुभ फल पाने में अन्तर्दशा के स्वामी और उसकी गोचर स्थिति की भूमिका प्रमुख हुआ करती है।
8. तीसरे व ग्यारहवें भाव से स्वेच्छा व स्वप्रयास का ज्ञान
जन्म कुंडली में तृतीय भाव सहज भाव कहलाता है। इससे जातक के बल, पराक्रम, दक्षता व कार्यक्षमता का विचार किया जाता है। व्यक्ति का उत्साह, उमंग व ऊर्जा का विचार तृतीय भाव से किया जाता है।
एकादश भाव सभी प्रकार के लाभ, कार्य सिद्धि, अभिष्ट प्राप्ति व समाज में मान-प्रतिष्ठा की स्थिति को दर्शाता है। यदि तृतीय भाव को लग्न माने तो एकादश भाव, तृतीय भाव का भाग्य स्थान बनता है। अन्य शब्दों में धन लाभ और भाग्य वृद्धि के लिए पूरे उत्साह के साथ परिश्रम करना आवश्यक है। यही इन भावों में छिपा संदेश है।
9. शुभ और पाप ग्रह
ज्योतिष में चंद्र, बुध, गुरु, शुक्र को सौम्य या शुभ ग्रह माना जाता है। इसके विपरीत मंगल, शनि, राहु, केतु और सूर्य को क्रूर या पाप ग्रह कहते हैं। शुभ ग्रहों का बल बढ़ने से धन, मान, स्वास्थ्य व सुयश की प्राप्ति होती है। पाप ग्रह हीन बली या पीड़ित होने पर विध्न, बाधा, रोग, शोक या मानसिक संताप कम करते हैं।
केन्द्र व त्रिकोण से संबंध करने पर पाप ग्रह बहुत शुभ व कल्याणकारी हो जाते हैं। लग्न में शुक्र की राशि वृष या तुला होने पर शनि योगकारक होता है।
इसी प्रकार यदि सूर्य अथवा चंद्रमा की राशि लग्न मैं होने पर मंगल योगकारक हो जाता है।
10. सादृश्यता
लग्न से या परस्पर केन्द्र में बैठे ग्रह विष्णु सरीखे पालनकर्ता बनते हैं। परस्पर त्रिकोण में बैठे ग्रह भी एक-दूजे की दशा-अन्तर्दशा में स्नेह, सहयोग व मैत्री से भाग्यबुद्धि करते हैं।
2H व 11H में ग्रह धन-संपदा देते हैं।
6H, 8H, 12H में बैठे ग्रह विध्न, बाधा व कष्ट देते हैं।
3H, 6H, 11H में स्थित क्रूर ग्रह जातक के बल की परीक्षा लेकर उसे सफलता प्रदान करते हैं।
11. धन, मान और आयुष्य
विज्ञ जन द्वितीय व एकादश भाव से धन, लाभ व सुयश का विचार करते हैं। आयुष्य का विचार लग्न व अष्टम भाव से होता है। अष्टम भाव की शक्ति व शुभता आयु को बढ़ाती है। शुभ ग्रह केन्द्र में तथा पाप ग्रह त्रिषडाय या त्रिकभाव में होने से व्यक्ति दीर्घायु व धनी-मानी बनता है।
12. कारको भाव नाशः
कारक ग्रह की भावगत स्थिति बहुधा कारकत्व की हानि करती है। तृतीय भाव में मंगल, चतुर्थ में चंद्रमा, पंचम में बुध, सप्तम में शुक्र, नवम में सूर्य क्रमशः भाई, वहन, माता, बुद्धि, पत्नी व पिता के सुख की हानि करते हैं।
13. वक्री ग्रह
वक्री ग्रह चेष्टा बली होने से शुभ परिणाम दिया करते हैं। विद्वानों का मत है कि नीचस्थ वक्री ग्रह उच्च सरीखा शुभ फल देता है। तो शुभ ग्रह वक्री होने से अधिक शुभ हो जाता है। कभी पाप ग्रह गोचर में वक्री होने पर शुभ परिणाम दिया करते हैं।
14. विच्छेदक ग्रह
विद्वानों ने सूर्य, शनि, राहु तथा व्ययेश को विच्छेदक ग्रह कहा है। इनकी दशा भुक्ति में कारकत्व से दूरी या अलगाव देखा जाता है। राहु को स्थान भंग या स्थान परिवर्तन का ग्रह माना जाता है।
15. आजीविका
सभी ग्रह अपने स्वभाव के अनुसार आजीविका देते हैं। सूर्य का संबंध यदि दशम भाव या दशमेश से हो तो- .
सूर्य - सत्ता-सुख, पद-प्रतिष्ठा, धन-मान वे नेतृत्व,
चंद्रमा - लोकप्रियता, धन-संपदा, व्यापार-व्यवसाय,
मंगल - तकनीकी या ऊर्जा परक कार्य में सफलता व सुयश, सुरक्षाकर्मी
बुध - पठन-पाठन, पत्रकार, व्यापार, पुस्तक लेखन, खेलकूद
गुरु - सलाहकार, विद्वान, साहित्यकार, धर्म प्रचारक, बैंक अधिकारी, वित्त प्रबंधक
शुक्र - कलाकार, सौन्दर्य प्रसाधन, माडलिंग, पर्यटन
शनि - सेवाकार्य, गूढ़ तत्ववेत्ता, शारीरिक व मानसिक श्रम साध्य, दुष्कर कार्य।
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