वास्तु एवं ज्योतिष >> लघुपाराशरी सिद्धांत लघुपाराशरी सिद्धांतएस जी खोत
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5.22 विभिन्न लग्न में शुभ और पापग्रह तालिका
मेष लग्न-सूर्य, मंगल, गुरु क्रमशः 5L,1L,9L होने से शुभ हैं। शुक्र 2L,7L होने से मारक है। शनि 11L तो बुध 3L-6L होने से पापी या अशुभ है। चन्द्रमा केन्द्राधिपति दोष से पीड़ित होने से अशुभ है।
वृष लग्न-पंचमेश बुध, लग्नेश शुक्र शुभ है तो शनि केन्द्र व त्रिकोण भावेश होने से योगकारक होता है। गुरु अष्टमेश एकादशेश (8L-11L) होने से परम पापी हो गया है। मंगल 7L-12L होने पर मारक होता है।
मिथुन लग्न लग्नेश बुध, पंचमेश-व्ययेश शुक्र शुभ हैं। चन्द्रमा द्वितीयेश होकर भी मारक नहीं अपितु सम है। सूर्य तृतीयेश होने से पापी है। मंगल 11L अर्थात् एकादशेश तो गुरु सप्तमेश होने से अशुभ फल देते हैं। शनि अष्टमेश और भाग्येश होने से शुभ व अशुभ प्रभाव लिए रहता है। नवमेश शनि का दशमेश गुरु से सम्बन्ध राजयोग का फल देता है।
कर्क लग्न-सूर्य द्वितीयेश होकर भी मारक नहीं, बल्कि सम है। चन्द्र लग्नेश होने से शुभ है। बुध तृतीयेश और व्ययेश होने से पापी है। मंगल केन्द्र व त्रिकोण भाव का स्वामी होने से योगकारक कहलाता है। गुरु षष्ठेश और भाग्येश होने से शुभ फल देता है। शुक चतुर्थेश होने से केन्द्राधिपति दोष से पीड़ित है तो पुनः एकादशेश होने से भी पापी है, अतः पाप फल देगा। शनि 7L-8L अर्थात सप्तमेश-अष्टमेश होने से मारक ग्रह बन जाता है।
सिंह लग्न-लग्नेश सूर्य शुभ, व्ययेश चन्द्र सम तथा मंगल सुखेश और भाग्येश होने से योगकारक हो जाता है। बुध द्वितीयेश-एकादशेश लेने से पापी है। शुक्र दशमेश होने से केन्द्राधिपति दोष से पीड़ित तथा तृतीयेश होने से पापी है। गुरु पंचमेश-अष्टमेश होने से अल्प शुभ है। शनि षष्ठेश-सप्तमेश ह्येने से मारक बन जाता है।
कन्या लग्न-व्ययेश सूर्य सम, चन्द्रमा एकादशेश होने से पापी किन्तु लग्नेश बुध शुभ है। तृतीयेश-अष्टमेश मंगल पापी होता है। गुरु केन्द्रधिपति होने से अल्प दोषी व सप्तमेश होने से मारक होता है। शुक्र द्वितीयेश और भाग्येश होने से शुभ है। शनि पंचमेश-षष्ठेश होने से अल्प शुभ है। त्रिकोणेश होने से अनेक विद्वान शनि को शुभ मानते हैं।
तुला लग्न-सूर्य एकादशेश होने से पापी, चन्द्रमा सम तो मंगल मारक है। बुध नवमेश होने से शुभ किन्तु गुरु तृतीयेश-षष्ठेश होने से पापी या अनिष्टप्रद है। लग्नेश को अष्टमेश होने का दोष नहीं लगता अतः शुक शुभ व शनि केन्द्रेश-त्रिकोणेश होने से योगकारक है।
वृश्चिक लग्न सूर्य केन्द्रेश होने से अल्प शुभ तो चन्द्रमा भाग्येश होने से बहुत शुभ है। लग्नेश को षष्ठेश होने का दोष नहीं होता, अतः मंगल शुभ है। बुध अष्टमेश-एकादशेश होने से अशुभ है तो गुरु पंचमेश होने से बहुत शुभ है। शुक्र सप्तमेश-व्ययेश होने से पापी या मारक सरीखा है। शनि तृतीयेश-चतुर्थेश होने से अल्प पापी है।
धनु लग्न-सूर्य नवमेश होने से शुभ व योगकारक है किन्तु चन्द्रमा अष्टमेश होने पर भी मारक नहीं है अपितु सम है। मंगंल पंचम या त्रिकोण भाव का स्वामी होने से शुभ है तो बुध सप्तम-दशम भाव का स्वामी होने से केन्द्राधिपति दोष से पीड़ित है अतः सम है। गुरु लग्नेश होने से शुभ किन्तु शुक्र षष्ठ व एकादश भाव का स्वामी (त्रिषडायेश) होने से अशुभ है। शनि द्वितीयेश-तृतीयेश होने से मारक प्रभाव देता है।
मकर लग्न-सूर्य अष्टमेश होने पर भी मृत्युप्रद नहीं, अपितु सम है। चन्द्रमा सप्तमेश होने से पापी है किन्तु मंगल सुखेश-लाभेश होने से सामान्य शुभ तथा बुध भाग्येश होने से बहुत शुभ है। गुरु तृतीय व एकादश भाव का स्वामी होने से थोड़ा अशुभ या पापी होता है। शुक्र केन्द्र व त्रिकोण का स्वामी लेने से बहुतं शुभ व योगकारक है। लग्नेश कभी अशुभ नहीं होता, अतः शनि भी शुभ फल दिया करता है।
कुम्भ लग्न-सूर्य सप्तमेश होने से सम किन्तु अन्य पाप ग्रह की दृष्टि-युति पाने से मारक हो जाता है। इसी प्रकार चन्द्रमा षष्ठेश होने से अशुभ होता है। मतान्तर से चन्द्रमा षष्ठं व अष्टम भाव का स्वामी होने पर भी शुभ रहता है वह कभी पापी नहीं होता। मंगल तृतीय व दशम भाव का स्वामी होने से सम होता है। बुध त्रिकोणेश होने से शुभ तो गुरु द्वितीय व एकादश भाव का स्वामी होने से अशुभ है। शुक्र चतुर्थ व नवम भावं अर्थात् केन्द्र व त्रिकोण भाव का स्वामी होने से योगकारक होता है। शनि लग्नेश होने से शुभ होता है।
मीन लग्न-सूर्य षष्ठेश होने पर भी पापी नहीं होता, अपितु सम रहता है। चन्द्रमा पंचम या त्रिकोण भाव का स्वामी होने से शुभ व योगकारक होता है। मंगलं द्वितीयेश-नवमेश होने से शुभ व योगकारक होता है। बुध चतुर्थ व सप्तम भाव का स्वामी होने से केन्द्राधिपति दोष से पीड़ित होता है तथा सप्तमेश होने व लग्नेश का शत्रु होने से कभी मारकेश बन जाता है। गुरु लग्नेश होने से शुभ किन्तु शुक्र तृतीयेश-अष्टमेश होने से पापी है। शनि एकादश व द्वादश भाव का स्वामी होने से पापी व अशुभ है।
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