वास्तु एवं ज्योतिष >> लघुपाराशरी सिद्धांत लघुपाराशरी सिद्धांतएस जी खोत
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5.17 शुक्र-राहु में धन, यश व प्रतिष्ठा
विश्लेषण-
(i) शुक्र लग्नेश होकर 8 चन्द्र शुक दशमेश चन्द्रमा के साथ धन भाव में है।
(ii) योगकारक शनि लग्न में धनेश मंगल से दृष्ट है।
(iii) दशानाथ शुक्र धन भाव में दशमेश चन्द्रमा की युति पाने से कार्य क्षेत्र में सफलता व धन प्राप्ति का योग दर्शाता है।
(iv) भुक्तिनाथ राहु दशम भाव में होने से अपनी अन्तर्दशा में कार्य क्षेत्र में धन, मान व यश दिलाएगा।
(v) दशमस्थ राहु पर योगकारक शनि की दृष्टि है तो राहु स्वयं, दशमेश चन्द्रमा, लग्नेश शुक्र व धनेश मंगल को देख रहा है।
तथ्य-जातक ने शुक्र-राहु में धन, मान व यश पाया।
5.18 पाप ग्रह की दशा
पापा यदि दशानाथः
शुभानां तद् असंयुजाम।
भुक्तयः पाप फल दास्-
-तत्तयुक्त शुभ भुक्तयः।।37।।
भवन्ति मिश्र फलदा
भुक्तयो योगकारिणीम्
अत्यन्त पाप फलदा
भवन्ति तद् असंयुजाम्।।38।।
(i) पाप ग्रह की महादशा में ऐसे शुभ ग्रह की भुक्ति जो पाप ग्रह से कुछ भी सम्बन्ध न रखे, निश्चय ही पाप फल देती है।
(ii) शुभ ग्रह का यदि पापी दशानाथ से दृष्टि-युति सम्बन्ध हो तो शुभ ग्रह की भुक्ति पाप फल में कमी कर, थोड़े शुभ फल भी अवश्य देती है। इस अवधि में जातक मिश्रित फल पाता है।
(iii) पाप ग्रह की महादशा में दृष्टि-युति सम्बन्ध करने वाले योगकारक ग्रह की अन्र्तदशा शुभ मिश्रित फल दिया करती है।
(iv) असम्बन्धित योगकारक ग्रह की भुक्ति, पाप ग्रह की महादशा में शुभ फल नहीं दे पाती, कभी तो जातक पाप फल पाता है।
टिप्पणी–
महादशानाथ यदि 3,6,11,8वें भाव का स्वामी हो तो उत्तरोत्तर उसे अधिक पापी माना जाता है। यहाँ तृतीयेश अल्प पापी, षष्ठेश पापी, एकादशेश अधिक पापी तो अष्टमेश को सर्वाधिक पापी जानें। पापी ग्रह की दशा में ऐसा शुभ ग्रह जिसका दशानाथ से दृष्टि-युति सम्बन्ध नहीं है, कुछ भी शुभ फल नहीं दे पाएगा तथा अशुभ फल की प्रधानता बनी रहेगी।
इसके विपरीत, दशानाथ पाप ग्रह से दृष्टि युति करने वाला शुभ ग्रह निश्चय ही कुछ शुभ फल भी अवश्य देगा जिससे अनिष्ट प्रभाव में कुछ कमी आएगी। इस अवधि में मिश्रित फल प्राप्त होंगे।
कुछ ऐसी ही बात योगकारक ग्रह की अन्तर्दशा की जानें। पाप ग्रह की महादशा में असम्बन्धित योगकारक की भुक्ति शुभ फल नहीं दे पाती जबकि पापी दशानाथ से सम्बन्ध करने वाला योगकारक ग्रह निश्चय ही कुछ शुभ फल भी अवश्य देगा। जातक पाप फल में कमी व शुभ फल की झलक पाने से राहत महसूस करेगा। अन्य शब्दों में-
(अ) पाप ग्रह की दशा में शुभ या योगकारक ग्रह की भुक्ति, जब शुभ ग्रह का पाप ग्रह से सम्बन्ध नहीं हो = मात्र पाप फल, राहत नहीं।
(ब) पाप ग्रह की दशा में शुभ या योगकारक ग्रह की भुक्ति, जब शुभ ग्रह का पाप ग्रह से दृष्टि-युति या स्थान सम्बन्ध हो = पाप फल में कमी तथा थोड़े शुभ फल पाने से राहत।
कुछ विद्वान पाप, सम, शुभ और योगकारक के आठ भेद निम्न प्रकार करते हैं-
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