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वास्तु एवं ज्योतिष >> लघुपाराशरी सिद्धांत

लघुपाराशरी सिद्धांत

एस जी खोत

प्रकाशक : मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :630
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 11250
आईएसबीएन :8120821351

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5.16 नवम भाव में राहु-केतु


ल. सू. च. मं./बु. गुरु. शु. / श. रा. के.
श्री चन्द्रशेखर (1) 1,7,3/i2,11,2/8व,3,9 (केतु नवम भाव में)
जॉर्ज वॉशिंग्टन (1) 1,9,8/10,6व,12/12,६,3 (राहु नवम भाव में)
प्रकाश पादुकोण खिलाड़ी (1) 2,10,8/3,4,7,9,3 (राहु नवम भाव में)
डॉ. सम्पूर्णानन्द (1) 9,1,7/10,9,9/5व,3,9 (केतु नवम भाव में)
पृथ्वीराज चौहान (1) 12,6,7/10,10,10/5,3,9 (केतु नवम भाव में)
चन्द्रप्रभा शास्त्री (1)7,9,10/7,4,7/7,9,3 (राहु नवम भाव में)
गुलशन कुमार (टी-सीरीज)) (1) 1,6,2,4,1/7व,9,3 (राहु नवम भाव में)
गुलजारी लाल नन्दा (1) 3,9,178,6,4/8,9,3 (राहु नवम भाव में)
नुसली वाडिया (2) 11,7,2/10,4व,972,4,10 (केतु नवम भाव में)
रवि शास्त्री (क्रिकेट) (2) 2,11,1/2,11,3/10,10,4 (केतु नवम भाव में)
सोहराब मोदी (सिनेमा) (2) 7,11,777,6,678,10,4 (राहु नवम भाव में)
मेजर ध्यानचन्द (3) 5,4,8/5,2,4/11,5,11 (केतु नवम भाव में)
देवकीनन्दन खत्री (उपन्यास) (3) 9,8,978,11,10/8,5,11 (केतु नवम भाव में)
माँ निर्मला देवी (3) 12,1,1/11,7,10/6,5,11 (केतु नवम भाव में)
मैथिलीशरण गुप्त (कवि) (3) 4,5,6/5,6,3/3,5,11 (केतु नवम भाव में)
मोरारजी देसाई, (3) 11,5,10/10,4,10/7,11,5 (राहु नवम भाव में)
समर्थ गुरुरामदास (3) 12,11,9/11,12,10/10,5,11 (केतु नवम भाव में)
शेरपा तेनसिंह (3) 2,5,48,10,/2,11,5 (राहु नवम भाव में)
इंजी. तृप्ति (3) 7,7,10/7,67/1R,11,5 (राहु नवम भाव में)
डॉ. प्रणोति (3) 9,6,7/9R,8,7/1R,11,5 (राहु नवम भाव में)
लिओ टॉल्सटॉय (4) 5.5,9/5,74/4,6,12 (केतु नवम भाव में)
लोकमान्य तिलक (4) 4,12,7/3,12,443,12,6 (राहु नवम भाव में)
जमशेदजी टाटा (4) 11,6,6/11,6,12/8,12,6 (राहु नवम भाव में)
वी.पी. सिंह (4) 3,7,5/3,4,2/9व,12,6 (राहू नवम भाव में)
स्वामी योगानन्द (5) 9,5,12/9,12,8/6,1,7 (राहू नवम भाव में)
सुरैया (सिनेमा) (5) 3,6,42,2,179,1,7 (राहु नवम भाव में)
रामविलास पासवान (6) 3,6,5/4,6,44,2,8 (राहु नवम भाव में)
हरिवंशराय बच्चन (7) 4,111,4,8/11,3,9 (राहु नवम भाव में)
महर्षि रमण (7) 9,3,178,11,8/12,9,3 (केतु नवम भाव में)
नोट : अंकों को राशि क्रमांक जानें

यहाँ पंडित वेताल शस्त्री का मत उद्धृत करना आवश्यक जान पड़ता है।

केवल लग्नेश त्रिकोणेश संबंधो अप्यत्र असंबंध इव।
यद् यद् भावेश संयुताविति अनेन शुभारूढ़ फलस्यै दार्दयात्।।


त्रिकोण या पाप राशि वाले केन्द्र में बैठे राहु-केतु केन्द्रेश या त्रिकोणेश से सम्बन्ध, न करने पर भी शुभ फल देंगे। केन्द्रेश-त्रिकोणेश के परस्पर सम्बन्ध से राजयोग होता है, यह सामान्य नियम है किन्तु राकेतु मात्र शुभ भाव में बैठने मात्र से शुभ परिणाम देते हैं, यही राहुकेतु का विशेष नियम है।

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    अनुक्रम

  1. अपनी बात
  2. अध्याय-1 : संज्ञा पाराशरी

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