भारतीय जीवन और दर्शन >> अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचित अभिज्ञानशाकुन्तलम्-कालिदास विरचितसुबोधचन्द्र पंत
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[दृश्य परिवर्तन]
[नेपथ्य में!]
गौतमी! शार्ङरव आदि से शकुन्तला को पहुंचाने जाने के लिए तैयार होने को
कहो।
प्रियंवदा : (कान लगाकर सुनती है) अनसूया! चलो, जल्दी चलो।
हस्तिनापुर जाने वाले ऋषियों की पुकार होने लगी है।
[हाथ में सामग्री लिये अनसूया का प्रवेश]
अनसूया : आओ सखि! चलें।
[दोनों का प्रस्थान]
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