लोगों की राय

गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

443 पाठक हैं

इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


(३) गीताजीका अर्थ और भावसहित मनन करना।
(४) भगवान्के नामका जप तथा श्रीमद्भगवद्रीताके मूल श्लोकोका पठन।
चौथी बातके १०० वर्ष करनेसे जितना लाभ है उतना ऊपरवाली बातोंको काममें लानेसे ५-७ वर्षमें हो सकता है। प्राय: मनुष्योंके द्वारा चौथी बात ही होती है।
३५. युक्तिसहित साधन करनेसे बहुत जल्दी परमात्माकी प्राप्ति हो जाती है।
३६. कर्म आसक्तिसे रहित होकर करे। उसके सिद्ध होने न होनेमें समान भाव रखें।
३७. मृत्युको हर समय सामने खड़ी देखे चाहे जब ले जाओ, जो इस प्रकार तैयार रहे उसका नाम कृतकृत्य है।
३८. निष्कामभावसे तन, मन, धन दूसरेके काममें लग जाय वही समय काममें आया, बाकी धूलमें गया।

३९. सत्ययुगमें केवल सतोगुणी वृत्तिसे ही कल्याण नहीं होता। स्वाभाविक ही सतोगुणी वृत्ति होती है, किन्तु कल्याण तो साधनसे ही होता है।

४०. भगवान्का भक्त जिस रूपकी प्रातिके लिये भगवान् उसी रूप से उसको प्राप्त हो जाते हैं, जैसे निराकर, साकार, दो भुजा चार भुजा, विराट्स्वरूप इत्यादि। 
४१. ऐलोपैथिक तथा होम्योपैथिक दवाई कभी नहीं लेनी चाहिये। प्राण भले ही चले जायँ। माता-पिताके कहनेपर भी नहीं लेना चाहिये, क्योंकि त्यागी हुई वस्तु को कभी ग्रहण नहीं करना चाहिये। जैसे भीष्मपितामह और श्रीरामचन्द्रजीने त्यागी हुई वस्तु ग्रहण नहीं की।
४2. दुःखों को प्राप्त होनेपर भी आनन्द ही माने।
43. श्रीगीताजीका अर्थ बहुत सरल है उसका भी सार त्यागसे भगवत्प्राप्ति है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book