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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


२७. नीच पुरुष भी भगवान्की भक्ति करनेसे उत्तम ही समझनेके योग्य है। जैसे-अजामिल।
२८. चार बातें बहुत कीमती हैं
(१) कोई व्यक्ति छोटे दरजेसे ऊँचे दरजेपर पहुँच जाय तो उसको बड़ा ही मानना चाहिये।
(२) किसीका पदाफाश नहीं करना चाहिये।
(३) नौकरसे होनेलायक काम नौकरसे ही करवाना चाहिये।
(४) जिससे मन फट जाय उसके पास नहीं रहना चाहिये।
२९. समयकी अमोलकताकी हर समय याद रखना चाहिये।
३०. मन लगाकर भजन और शास्त्रका अभ्यास करनेसे जितना लाभ एक वर्षमें होता है, उतना लाभ बिना मनके करनेसे १०० वर्षमें भी नहीं होता।
३१. दो बातोंसे परमात्माकी प्राप्ति नहीं होती-एक तो साधनके न करनेसे, दूसरा युक्ति नहीं जाननेसे।
३२. भगवान्के भजनके समान पापका नाश करनेवाली संसारमें
कोई वस्तु नहीं है। भगवान्के एक नामकी इतनी सामथ्र्य है कि सम्पूर्ण पापोंको नष्ट कर सकता है।
३३. मन लगाकर भजन-ध्यान-सत्संग करनेके लिये मनसे हरदम लड़ाई करता रहे और मनको समझाता रहे कि ऐसी अवस्थामें तेरी मृत्यु हो जायगी तो तेरी क्या दशा होगी।
३४. ज्यादा लाभ हो ऐसे काममें समय बिताना चाहिये। सबसे ऊँचा काम यह है-
(१) ऊँचे दरजेकी वार्ता अनुभवी पुरुषोंद्वारा सुननी।
(२) जपसहित ध्यान।

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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