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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


50. श्रद्धा का विषय-
(१) उत्तम श्रद्धा राजा द्रुपदकी महादेवजीके वचनों में थी। उनके वचन से अपनी कन्या को पुत्र मानकर उसका विवाह भी कर दिया।
(२) जबालाके पुत्र सत्यकामकी गुरुके वचनोंमें।
(३) शुकदेवजीकी राजा जनकके वचनोंमें।
(४) द्रोणाचार्यकी महाराज युधिष्ठिरके वचनोंमें।

५१. भगवान् चाहे न मिलें, अनन्य प्रेम जल्दी होना चाहिये।
५२. भगवान्में प्रेम होकर संसारमें जीना हो तो उससे बढ़कर
५३. भगवान्के भक्तोंकी पहचान यह है कि जिनके भगवान्में प्रेम हो, भगवान्की याद आये।
५४. महात्मा पुरुषोंके आचरणोंको याद करनेसे बहुत लाभ है-
(१) चाहे जितनीं शारीरिक व्याधि हो उस समय भीष्मजीको याद कर ले।
(२) जिस जगह न्याय करनेका काम पड़े उस जगह प्रहादजीको याद कर ले।
(३) अपने साथ द्वेष करनेवालोंपर भी दया करनी जैसे जयदेव कवि।
(४) अपने शत्रुओंकी भी दूसरोंसे रक्षा करनेमें महाराज युधिष्ठिर।
(५) माता-पिताकी सेवा करनेमें श्रवण एवं आज्ञा-पालनमें रामजी।

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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