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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


(६) प्रेम करनेकी इच्छावालोको भगवान् श्रीरामचन्द्रजी, भगवान् श्रीकृष्णचन्द्रजीका बर्ताव याद करना चाहिये।
(७) विषयासत पुरुषोंको महाराज शुकदेवजी, ऋषभदेवजीको याद करना चाहिये।
५५ तन-मन-धनसे सेवा करनेका विषय-
(१) निष्कामभावसे दस हजार रुपया लगाना (धन)
(२) एक दिन भगवान्का भजन करना (तन)
(३) एक मिनट मनसे भगवान्का चिन्तन (मन)
फलमें तीनों बराबर है। मैं आजकल लोगोंकी सेवा शरीरसे तो एक या दो घंटा करता हूँ, बाकी मनसे १-२ घंटासे भी ज्यादा करता हूँ। मैं अपने मनमें यही सोचता रहता हूँ कि लोगोंका उद्धार किस तरह हो। यदि मेरे सन्निपात हो जाय तो यह बात वायु प्रकोपसे बाहर प्रकट
हो सकती है कि सबका कल्याण कैसे हो, उद्धार कैसे हो, इसी प्रकार बहकना होगा।
५६. श्रीगीताजीका घर-घरमें प्रचार करना चाहिये, रोम-रोममें रमानी चाहिये।
५७. संसारकी परम सेवा करनेवालोंके उद्धारमें तो संशय ही नहीं है, केवल भाव रखनेवालोंका भी उद्धार हो सकता है।
५८. अपने धर्मके पालनसे कल्याण निश्चित है। उदाहरण-गुरु गोविंदसिंहके पुत्र।
५९. श्रीगीताजीका प्रचार सम्पूर्ण जातियोंमें अंग्रेज, मुसलमानोंमें भी करना चाहिये।
६०. विद्या और त्याग जिस समाज में होगा वह समाज कभी नहीं गिर सकता। विद्या, त्याग तो मनुष्यके दो पंख हैं। असली पंख तो त्याग है, दूसरा विद्या।

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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