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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


(२) जो मुक्ति चाहता है उसे मुक्ति देते हैं।
(३) जो मुक्तिकी याचना नहीं करता, परन्तु वास्तव में मुक्त होना चाहता है उसे भी मुक्ति दे देते हैं।
नारदजी भगवान्के पास गये बोले सबका उद्धार कर दो। भगवान् बोले जो चाहता हो उसे ले आओ। नारदजी बहुत घूमे कोई चाहनेवाला मिला ही नहीं।
हम भगवान्की शरण हो गये और भगवान्ने स्वीकार कर लिया। यह विश्वास कर लेना चाहिये कि जीव सब प्रकारसे परतन्त्र होनेपर भी शरण जानेमें स्वतन्त्र है।

वैराग्य की आवश्यकता

आपसमें भाई लोग अपने-अपने दोषोंको एक-दूसरेसे जाननेकी चेष्टा करें और उनका सुधार करनेकी चेष्टा करें। एक-दूसरेमें आपसमें बड़ा प्रेम हो। गोपियाँ बन्दर आदि सब इकट्ठे होकर बहुत प्रेमसे भगवान्की चर्चा करते थे। हमलोग भी आपसमें इकट्ठे होकर भगवचर्चा करें। 'बोधयन्तः परस्परम्' इससे बहुत लाभ है। वैराग्य उपरामता बहुत ऊँची चीज है। भक्ति, योग, ज्ञान सब मार्गोंमें बड़ी सहायक है। संसारमें वैराग्य उपरामता किसी भी लक्ष्यसे हो जाय, चाहे दोष देखकर, चाहे घृणा देखकर किसी भी तरह हो, विषयोंसे वृत्तियाँ हटानेकी आवश्यकता है। जिस-जिस समय वैराग्यकी झलक आती है, वृत्तियाँ संसारसे खिंच जाती हैं और सात्विक सुख मिलता है। अभ्यासात् रमते-इसका फल अलौकिक सुख होता है। वैराग्यवान् पुरुष तो हमलोगोंका व्यवहार देखकर वैसे ही हँसते हैं, जैसे-हम बालकोंकी क्रीड़ा देखकर हँसते हैं। बालकोंका खेलमें रमना और विषयी पुरुषोंका विषयमें रमना एक-सी ही बात है। अगर विषयोंमें रमना ही सुख है तो वेश्या सबसे सुखी हुई, उसके ऐश, आराम, शौकीनी सबसे ज्यादा है। कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्चिताः यह आसुरी सुख है। वेश्या आदिमें बाहुल्यतासे मिलता है। वैराग्यका अर्थ बाहरी पदार्थोंका त्याग नहीं है। त्याग तो दम्भसे, हठसे, भयसे भी कर सकता है, त्याग वैराग्ययुत हो तभी उत्तम है। वैराग्य मनकी वृत्ति है न च सन्यसनादेव सिद्धि समधिगच्छति (गीता ३। ४)। प्रधानता भीतरी त्यागकी है, असली चीज तो वैराग्य है।
परमात्मा की प्राप्ति होने पर आसक्ति का मूल सहित त्याग हो जाता है।

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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