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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


मोरें मन प्रभु अस बिस्वासा। राम ते अधिक राम कर दासा।

यो मामेवमसम्मूढो जानाति पुरुषोत्तमम्।
स सर्वविद्रजति मां सर्वभावेन भारत।।
(गीता १५।१।९)

हे भारत! जो ज्ञानी पुरुष मुझको इस प्रकार तत्त्वसे पुरुषोत्तम जानता है, वह सर्वज्ञ पुरुष सब प्रकारसे निरन्तर मुझ वासुदेव परमेश्वरको ही भजता है।

यह भक्त की दृष्टि है। तुलसीदासजीका कहना भगवान्की दृष्टिसे ही है- रामसिन्धु घन सजन धीरा। जल समुद्रका ही है, पर जीवनका आधार तो बादल ही है, वही जल बरसाता है। मोर, पपीहा बादलको देखकर मुग्ध हो जाते हैं। किसान हर्षित होता है। बादल जल बरसाता है, भगवान्के भक्त प्रेम बरसाते हैं, वाणीके द्वारा सबको तृप्त कर देते हैं। जिज्ञासु लोग प्रेमकी बातें सुनना चाहते हैं। जगत् में बादल न होते तो समुद्रका जल हमारे क्या काम आता। तरसकर मर जाते। बादलके मुखमें आकर खारा जल मीठा हो जाता है। भगवान्के भक्तोंके द्वारा अमृत वर्षा होती है। यह प्रेमका दृष्टान्त है। दूसरा ज्ञानका दृष्टान्त है- चन्दन तरु हरि सन्त समीरा/भक्त ज्ञानी सबको ब्रह्ममय बना देता है। वायुकी विशेषता है, लाखों वृक्षोंको चन्दन बना देता है। संसारमें जितने ज्ञानी, महात्मा हुये हैं सब भक्तोंकी ही कृपा है। भगवान्की महिमा संसारमें भक्तोंको लेकर ही है। रामसे बढ़कर रामके दास होते हैं। भगवान्ने दुर्वासाको कहा 'अहं भक्त पराधीन:' मैं भक्तोंके आधीन हूँ।

निरपेक्षं मुनिं शान्तं निर्वैरं समदर्शनम्।
अनुव्रजाम्यहं नित्यं पूयेयेत्यडिस्ररेणुभिः।।
(भा० ११।१४।१६)

मेरे जो भक्त कुछ भी इच्छा नहीं रखते, हमेशा भगवचिन्तनमें मग्न
रहते हैं शान्त स्वभाव हैं, किसीके साथ भी जिनका वैरभाव नहीं है, सबमें समदृष्टि हैं ऐसे मेरे निष्काम प्रेमीजनके पीछे-पीछे मैं नित्य फिरा करता हूँ कि इनकी चरणधूलि मेरेपर पड़ जाय तो मैं पवित्र हो जाऊँ।

भगवान्का भक्त भगवान्की चरणधूलि चाहता है इसलिये भगवान्को भी यह चाहना करनी पड़ती है, अन्यथा भगवान् भक्त के ऋणसे मुक्त नहीं होते। भक्त मानता है कि मैं भगवान्के अधीन हूँ भगवान् अपनेको भक्तके अधीन मानते हैं। भक्त भगवान्का ध्यान करे तो भगवान् भक्तका करते हैं। अपनी-अपनी दृष्टिकी बात है। भगवान्का कहना अपनी दृष्टिसे है, तुलसीदासजीका कहना विनोदमें और भगवान्की दृष्टिसे है। तीन बातें कानून की हैं-

(१) भगवान्की स्वाभाविक दया सबपर है, भगवान् बिना कारण दया करते हैं, मनुष्य-शरीर देते हैं, सबको मौका देते हैं, यह विशेष कानून है।

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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